डरा सहमा सा रूद्र कक्षा के अंदर प्रवेश करता है, आज इस विद्यालय में और इस कक्षा में उसका पहला दिन है। उसे देखकर पुराने बच्चे मुस्कुराते हैं ,और उसे बैठने के लिए जगह नहीं देते हैं। पहले वह पहली बैंच पर जाता है, तो पहले आए बच्चे उस जगह को घेर लेते हैं। दूसरी बेंच पर जाता है, वहां भी, कुछ बच्चे उसे बैठने नहीं देते हैं ,इस तरह वह सबसे पिछली बेंच पर जाकर बैठ जाता है। ऐसा नहीं, कि वह बुद्धू है, हीन भावना से ग्रसित है बल्कि अभी वह मासूम है और इस कक्षा में नया आया है किसी को ठीक से जानता भी नहीं। कक्षा में तालमेल बैठाने के लिए, उसे कुछ दिन तो अवश्य लगेंगे। वह चुपचाप पिछली बेंच पर जाकर बैठ जाता है बच्चे उसे देखकर मुस्कुराते हैं। अध्यापक के आने पर सभी खड़े होकर उनका अभिवादन करते हैं।
शिक्षक सभी छात्रों से, एक दूसरे का परिचय करवाते हैं, वैसे तो वे सभी बच्चे , पहले से ही, एक दूसरे से परिचित थे किंतु नए बच्चों के लिए, अन्य छात्रों से मिलने से घुलने- मिलने में आसानी हो जाती है इसीलिए अध्यापक ने ही यह कार्यभार संभाला।
अध्यापक के जाने की पश्चात , अन्य बच्चे खेलने लगते हैं, रुद्र चुपचाप अपना कार्य करने लगता है। कुछ देर पश्चात, वह कागज का एक जहाज बनाता है और उसे उड़ाने लगता है, बच्चे उसकी तरफ देखते हैं , उसका इस तरह 'कागज का जहाज' बनाकर उड़ाना उन्हें अच्छा लगता है। सभी बच्चे' कागज का जहाज' बनाना नहीं जानते थे , इसीलिए कुछ बच्चे रुद्र के समीप आ गए और बोले - हमारा जहाज भी बनाकर दो ! हम भी उड़ाएंगे।
रूद्र ने बिना किसी ना नुकूर के उनका जहाज भी बनाया और उड़ाना भी सिखाया इस तरह धीरे-धीरे सभी बच्चे उससे बातें करने लगे, और कुछ बच्चों से तो रूद्र की दोस्ती भी हो गयी।
रुद्र पढ़ने में अच्छा था, किंतु कभी भी उसने आगे की बेंच के लिए झगड़ा नहीं किया हालांकि उसने अपने घर पर आकर अपने पापा से बताया था कि किस तरह बच्चों ने उसे, आगे बेंच पर नहीं बैठने दिया।
तब रुद्र के पिता बोले -बेंच आगे हो या पीछे! बेंच तो बेंच है ,उससे क्या फर्क पड़ता है ?बैठने के लिए एक स्थान चाहिए ,इससे तुम्हारी काबिलियत में तो कोई कमी नहीं आएगी। तुम एक होनहार छात्र हो। तुम शीघ्र ही सभी बच्चों को, अपने समीप ले आओगे !तुम देखना, सभी बच्चे, तुम्हारे साथ, पीछे बेंच पर ही आ जाएंगे या फिर तुम्हें अपने समीप आगे बुला लेंगे।
क्या तुम जानते हो? पीछे की बेंच की बहुत कीमत होती है। वीआईपी लोग, पीछे ही बैठते हैं। रुद्र के मन में पीछे की बेंच के प्रति जो हीन भावना थी, वह उसके पिता ने मिटा दी थी। उन्होंने उसे समझा दिया था, लाइन में आगे खड़े रहने से कोई आदमी होशियार या अक़्लमंद नहीं होता वह अपनी काबिलियत और परिश्रम के दम पर, आगे बढ़ता है।
पिता का कथन सच ही हुआ, अब कुछ बच्चे उससे अपने प्रश्नों के हल पूछने आते, कभी उसकी क्राफ्ट की योग्यता को देख प्रसन्न होते,उससे दोस्ती करना चाहते। यह सब देख रूद्र मन ही मन खुश हो जाता।