मौन हूँ , क्या दर्द नहीं होता ?
सहन करती हूँ, क्या एहसास नहीं होता ?
दिल की बात कहूं ,किससे ?
जिनके लिए शब्दों का कोई मोल नहीं होता।
शब्दों को जो समझ सके न......
उनके लिए' मौन' का कोई मोल नहीं होता।
पीड़ा मुझे भी होती है,समझा लेते हैं,
दिल को, शायद, उनकी कोई मजबूरियां होंगी।
यह दिल हर किसी का'' तलबग़ार '' नहीं होता।
एहसासों तले, अश्रु की एक बूंद, पिघल उठती है।
इन आंसुओं का हर कोई कदर दान नहीं होता।
देख उसे, आंखों की नमी को छुपा लेते हैं।
आंसू छुपा जो मुस्कुरा दे........
ऐसा ,हर कोई कलाकार नहीं होता।
उभर आती है कभी, टीस उन रिश्तों की,
रिश्तों को निभा दे जो, हर कोई समझदार नहीं होता।
अज़नबी रिश्ते !
कैसे, अजनबी से रिश्ते हो गए हैं ?
जानते हैं पर ,पहचानने मुश्किल हो गए हैं।
दर्द का एहसास उठता है,रह -रहकर.....
थामे जो हाथ, कहे,हम आपके साथ हो गए हैं।
दिखते हैं अपने से, किंतु बेग़ाने हो गए हैं।
एहसासों से बेपरवाह रिश्ते, खुदग़र्ज हो गए हैं।
न समाज का डर है, न रिश्तों का लिहाज़ !
दीखते हैं साथ, रिश्तों से' बेपरवाह' हो गए हैं।