Dard nhi hota

 मौन हूँ , क्या दर्द नहीं होता ?

सहन करती हूँ, क्या एहसास नहीं होता ? 

दिल की बात कहूं ,किससे ?

 जिनके लिए शब्दों का कोई मोल नहीं होता। 



 शब्दों  को जो समझ सके न...... 

उनके लिए' मौन' का कोई मोल नहीं होता। 

 पीड़ा मुझे भी होती है,समझा लेते हैं,

 दिल को, शायद, उनकी कोई मजबूरियां होंगी। 

यह दिल हर किसी का'' तलबग़ार '' नहीं होता। 

एहसासों तले, अश्रु की एक बूंद, पिघल उठती है। 

इन आंसुओं का हर कोई कदर दान नहीं होता। 

देख उसे, आंखों की नमी को छुपा लेते हैं। 

आंसू छुपा जो मुस्कुरा दे........ 

 ऐसा ,हर कोई कलाकार नहीं होता। 

उभर आती है कभी, टीस उन रिश्तों की,

रिश्तों को निभा दे जो, हर कोई समझदार नहीं होता।

 

अज़नबी रिश्ते !

 कैसे, अजनबी से रिश्ते हो गए हैं ?

जानते हैं पर ,पहचानने मुश्किल हो गए हैं। 

 दर्द का एहसास उठता है,रह -रहकर..... 

थामे जो हाथ, कहे,हम आपके साथ हो गए हैं। 

दिखते हैं अपने से, किंतु बेग़ाने हो गए हैं। 

एहसासों से बेपरवाह रिश्ते, खुदग़र्ज हो गए हैं। 

न  समाज का डर है, न रिश्तों का लिहाज़ !

 दीखते हैं साथ, रिश्तों से' बेपरवाह' हो गए हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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