शिखा, जिस कमरे में पहले रहती थी ,उस कमरे को बंद कर दिया गया था। अब वह यही सोच रही थी -मैं कहाँ जाऊँ ? उस कमरे में कैसे चली जाऊँ ? जहाँ मेरे साथ मेरे जीवन की जो, सबसे सुंदर रात्रि होनी चाहिए थी वही कालिख़ में बदल गयी। वह इन्हीं सब उलझनों में उलझी हुई थी किन्तु उसने अपने मन के भाव चेहरे पर न आने दिए। वह सहजता से सभी कार्य करती है।
सबको यही लगता है ,शायद वह भी अपनी जिंदगी से धीरे-धीरे समझौता कर लेगी। जब दमयंती के चारों बच्चे भोजन करने आए तो वह वहां से जाने लगी ,किन्तु उसे महसूस हुआ , ''इधर कुंआ तो उधर खाई है'' इसीलिए रसोईघर के अंदर चली गयी। वहां की खिड़की में से वह उन चारों को ठीक से देख पा रही थी। भोजन बनाने वाला उसे देखकर बोला -छोटी मालकिन! कैसे आना हुआ ,क्या कुछ चाहिए।
नहीं ,तुम जो कर रहे हो ,करते रहो !
शिखा को इस तरह खिड़की से बाहर देखते हुए वो समझ नहीं पा रहा था ,जब इन्हें किसी कार्य में हाथ बंटाना ही नहीं था ,तब ये यहां क्यों आई हैं ?शिखा उस खिड़की के सामने बैठे उन चारों भाइयों में से उस एक चेहरे को ढूंढ रही थी जो कल रात्रि में उसके साथ था।
आज उसने पहली बार उन सबको नजरभरकर देखा है किन्तु कोई भी उसे ऐसा नहीं लग रहा था जिसने उसके साथ यह गलत हरक़त की हो हालाँकि वो इससे पहले भी एक -दो बार उसके कमरे में भी गये थे किन्तु इनसे कभी ठीक से बात ही नहीं हुई। जब भी आये ,झड़प ही हुई ,तब इनमें से किसी पर भी कैसे इल्ज़ाम लगा सकती हूँ ? किसी को भी देखकर उसे नहीं लगा इनमें से कोई एक तो था।
अपने आप पर उसे गुस्सा आता है अच्छे से कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है ? तब वह सोचती है - मैंने जो फल अपने लिए रखे हैं उन्हें ही खाउंगी। हवेली में इतने सारे कमरे हैं, वह कहीं भी जाकर सो सकती है यही सोच कर वह हवेली से एक कमरे में चली जाती है। वह कमरा व्यवस्थित था ,साफ -सुथरा बिस्तर बिछा हुआ था। न जाने, किसका कमरा है ?लेकिन विपरीत परिस्थिति से बचने के लिए, यह कमरा बेहतर होगा।
उस कमरे में आरामदेह बिस्तर बिछा हुआ था, सब कुछ साफ सुथरा था वह आराम से बिस्तर पर लेट गई उसे बड़े सुकून का एहसास हुआ न जाने कब उसकी आंख लग गई ,उसे पता ही नहीं चला।
अर्धरात्रि के करीब, उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई उसे उठा रहा है, वह उठकर खड़ी होती है उसने एक महिला को देखा, जो उससे कह रही थी -शिखा !तुम्हें संभलना होगा। संभलकर चलना होगा। ये लोग, बहुत ही खतरनाक हैं।
आप कौन हैं ?कौन लोग ख़तरनाक हैं ?शिखा ने पूछा।
तभी उसके सामने एक दृश्य आता है। कोई है ,जो उस महिला को मार रहा है ,वो महिला चीख़ रही है , चिल्ला रही है। मुझे बचाओ !मुझे बचाओ !जैसे ही शिखा उन्हें बचाने के लिए आगे बढ़ती है ,उसे लगता है ,जैसे एकदम से किसी ने कसकर उसका गला पकड़ लिया है। शिखा उससे अपना गला छुड़वाने का प्रयास करती है किन्तु उसे वहाँ कोई नजर नहीं आ रहा था वह उसका गला नहीं छोड़ रहा था उसका दबाब बनता जा रहा था।
अब वह महिला मुस्कुराने लगती है और जोर-जोर से हंसती है और कहती है - अब इससे मेरी जान छूटी कहते हुए वह हवा में उड़ने लगती है। शिखा को यह देखकर आश्चर्य होता है, कि वह महिला हवा में उड़ रही है। कुछ देर पहले तो रो रही थी , उसके गले पर दबाव बनता जा रहा था , उसकी सांसें अटक रहीं थीं। शिखा, चीखने का प्रयास करती है किंतु उसके गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी।उसके शब्द और उसकी साँसें जैसे गले में ही अटककर रह गयीं। तभी एकदम से उसकी आंखें खुल जाती हैं, तब वह क्या देखती है ? वह अपना गला ही स्वयं दबा रही थी, एकदम से अपने हाथ हटाती है, और गहरी- गहरी सांसें लेने लगती है। अपने समीप पानी ढूंढने का प्रयास करती है किंतु वहां पर पानी नहीं था। वह तो स्वयं ही छुपकर इस कमरे में आई थी,यहाँ पानी कैसे आएगा ?
वह समझ नहीं पा रही थी, कि यह सपना था कि सच ! उस सपने से बाहर आने का प्रयास करती है और उसी सपने के विषय में सोचती है , क्या मुझे सच में ही, किसी ने चेतावनी दी है या सिर्फ यह महज ही एक सपना था। प्यास के कारण, उसका गला सूख रहा था ,उस एकांत में घड़ी की टिकटिक खूब सुनाई दे रही थी। अनायास ही ,शिखा की नजर उस ओर जाती है , घड़ी में समय देखती हैं, जिसकी सुइंयाँ अंधेरे में भी, चमक रही थीं। तकरीबन दो -ढाई बजे का समय होगा शिखा चुपचाप उस कमरे के बिस्तर से उठती है और उस कमरे से बाहर आ जाती है ,अब उसे यहां सोते हुए ड़र महसूस हो रहा था। उसका सारा शरीर अभी भी काँप रहा था।
वह बिना आहट के बाहर आने का प्रयास करती है, ताकि वह पानी पी सके , उस डरावने सपने को देखकर, उसे वैसे ही अब उस कमरे में डर लग रहा था। मन ही मन सोच रही थी,-इंसानों से डर कर यहां सोई थी, किंतु मुझे लगता है, इस हवेली में शैतान भी बसते हैं। मुझे यहां किस-किस से बचना होगा ? धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ रही थी।
जब वह फ्रिज में से पानी लेकर पी रही थी, उसे ऐसा लगा जैसे, कोई उसके पीछे है उसने घबराकर पीछे मुड़कर देखा, तो कोई नहीं था। पानी पीकर उसे थोड़ी राहत मिलती है, और मन ही मन सोचती है , उस स्वप्न को देखकर मुझे ऐसा आभास हो रहा है जैसे कोई मेरे पीछे है। यह सिर्फ मेरा डर है , अपने आप को संभालने का प्रयास करती है। पानी पीकर जैसे ही वह जाने लगती है , तब उसी कमरे में झाँकती है , वह यह देखने का प्रयास करती है, क्या रात्रि में यहां कोई आया था ? किंतु उस समय वहां पर कोई नहीं था। उस अनजान कमरे में, जाने से अब उसे डर लग रहा था इसलिए उसने सोचा-क्यों ना, मैं यही सो जाऊं ? यही सोच कर, वह उसे कमरे में प्रवेश करती है और कुंडी लगाकर सो जाती है।
प्रातः काल जब शिखा की , आंखें खुली , तब उसे लगा जैसे कोई उस कमरे दरवाजे को जोर-जोर से पीट रहा है। हड़बड़ा कर उठ बैठी है, न जाने कौन है ? बाहर उनका नौकर रामदीन चाय की ट्रे लिए हुए खड़ा था जैसे ही शिखा ने दरवाजा खोला -उसे देखते ही बोला -छोटी मालकिन आज आपने उठने में बहुत देर कर दी। बड़ी मालकिन आपके विषय में पूछ रही थीं , लीजिए चाय पी लीजिए ,आपकी तबीयत तो ठीक है।
हां मेरी तबियत ठीक है, यह कहते हुए निशा ने उससे चाय की ट्रे ले ली। अंदर आते हुए उसने घड़ी में समय देखा उस समय 9:00 बज रहे थे। रात्रि में ठीक से नहीं सो पाई थी इसलिए आंखें नहीं खुली किंतु मन ही मन उसको इस बात की राहत थी। कल की रात्रि मेरी, ठीक से बीत गई। तब मन में विचार आया , क्या किसी को मालूम नहीं था कि मैं किसी अन्य कमरे में हूं या कोई यहां आया ही नहीं,किसी ने मुझे ढूंढ़ने का प्रयास भी नहीं किया। दमयंती के लिए सोच रही थी-उन्होंने तो कहा था, कोई आएगा।