Mysterious nights[ part 69]

दमयंती ,शिखा को उसके कुछ सवालों के जबाब देने के लिए ,उसे अपने कमरे में ले जाती है ,वहां अपने और ठाकुर परिवार के रिश्ते के विषय में बताती है किन्तु अपनी कहानी कहते,सुनाते  न जाने कब समय बिता और शाम होने लगी ,तब वो बोलीं - अब तुम्हें चलना चाहिए ,बहुत देर हो चुकी है ,बाक़ी की कहानी कल सुनना।  

 नहीं, मैं आज ही,सब  जानना चाहती हूँ आखिर आपके साथ ऐसा क्या हुआ ?और आपने ऐसी जिंदगी से कैसे समझौता कर लिया ?

कैसी ज़िंदगी ? क्या यहाँ मेरा सम्मान नहीं है ? क्या इस घर के लोगों को मुझसे प्यार नहीं है ,क्या ये घर-परिवार  मेरा नहीं है। मेरे पास सब कुछ तो है। 


आपके पास दर्द है ,दर्द भरी आहें हैं ,वो यादें हैं ,जो मन को कड़वाहट से भर देती हैं ,समझौते हैं ,इस घर की मालकिन होने का झूठा गुरुर है।  

तुम कितना तीखा और कड़वा बोलती हो ?चाहते हुए भी दमयंती को शिखा पर क्रोध नहीं आता ,उसे लगता है ,इसकी बातों में कुछ तो सच्चाई है ,तब वो बोलीं - समय के साथ सब समझ जाओगी ,अब हमें यहां से  चलना चाहिए। 

क्या मेरे साथ भी यही सब इसीलिए हो रहा है ?ताकि इस हवेली में जो पहले से होता आया है ,मैं भी इसे अपना लूँ और नसीब समझकर  इस हवेली में ही रम जाऊं। इससे बाहर भी दुनिया है ,मुझे झूठे भ्र्म में नहीं फंसना है। 

'ये सम्पूर्ण दुनिया ही एक भ्र्म है ,तब इसी झूठे  भ्र्म में ही जीकर देख लो !जितना संसार में भटकोगी उतने ही न जाने कितने धोखे ,नजर आएंगे। हम सभी किसी न किसी भ्र्म में ही जीते हैं ,वरना इस दुनिया में अपना कहने को है, ही क्या ?माना कि ये हवेली घर -संसार मेरा भ्र्म है किन्तु जो भी है ,मुझे अपना तो लगता है ,यही मेरी दुनिया है। तुम्हारे लिए भी हम यही सोचते हैं ,तुम भी जितना शीघ्र हो सके इस भर्मित संसार को अपना लो ! हम सब के लिए भी यही अच्छा होगा और ज़िंदगी सुकून से कट जाएगी।

 सभी एक जैसे नहीं होते,जो आपने सहा या समझौते किये ,मैं नहीं करूंगी अब तक शिखा, दमयंती की कहानी से बाहर आ गयी थी और अब उसे फिर से अपने होने का और अपने ऊपर हुए व्यभिचार का स्मरण हो आया था। कहने को तो ये एक आलिशान हवेली है किन्तु इसमें न जाने कितने अरमानों ने दम तोड़े हैं ?और भी न जाने क्या -क्या हुआ होगा ,जो इसने[हवेली ] चुपचाप देखा और सहा होगा। तभी उसके विचारों की शृंखला में बाधा बनते हुए दमयंती ने उससे पूछा -आज का क्या इरादा है ?

क्या मतलब ?कल की तरह ही अपनी रात्रि बितानी है ,या तुम उससे मिलना चाहती हो उसे देखना चाहती हो ?वो कौन है ?जो ज़बरन ही तुम्हारे तन का मालिक बन बैठा है।

 ऐसी बातें करते हुए आपको तनिक भी लज्जा का एहसास नहीं होता, नाराज होते हुए शिखा ने कहा। 

जब इस घर में रहना ही है, तो क्यों ना इस घर के उसूलों के आधार पर चला जाए ? 

मैं यहां जबरन नहीं रह रही हूं, अपनी इच्छा से आई थी और अब जाना चाहती हूं।उसूल बनाने वाले कौन हैं ?ये उसूल भगवान ने तो नहीं बनाये ,इस हवेली के लोगों ने ही बनाये हैं ,वो भी अपने स्वार्थ को ध्यान में रखकर..... क्या ,मैं एक बात पूछ सकती हूँ।

हाँ ,पूछो !

इस हवेली में यह रिवाज़ कबसे है ?

कौन सा ?

यही जो आपके साथ हुआ। 

पता नहीं ,मेरे ससुर तो अपने पिता की इकलौती संतान थे। 

तब तो यह बात स्पष्ट है ये रिवाज़ पहले नहीं था ,आपके आने पर ही बना।   

हम जानते हैं ,ये विचार हमारे मन में भी आया था किन्तु हम अपने दिल के हाथों मजबूर थे। दिल की मजबूरी कोई भी नियम बना और तोड़ सकती है। 

किन्तु मेरे साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं है ,जिससे चाहत थी ,उसके लिए यहाँ आई और अब जाना चाहती हूँ। यह हम मानते हैं, तुम अपनी इच्छा से आई थी, किंतु तुम्हारा जाना और न जाना अब इस परिवार के लोगों के विचारों पर निर्भर करता है। तुम्हारे लिए भोजन वही भिजवा दिया जाएगा। 

नहीं, मुझे भोजन नहीं करना है, मन ही मन शिखा ,ने सोचा -हो सकता है उस खाने में यह लोग,कल की तरह ही कुछ मिला दें। शिखा ने पहले ही, अपने कमरे में, कुछ फल लाकर रख लिए थे जिन्हें वो रात्रि  में खाने वाली थी। उसने निर्णय कर लिया था अब वह अपने साथ कुछ भी ऐसा नहीं होने देगी। दमयंती की उसे अंदर लाकर, वहां से चली गई थे। 

 शिखा अपने कमरे में जाना चाहती थी, जिसमें वह इतने दिनों से रह रही थी किन्तु वह कमरा बंद था। अब उसे घबराहट होने लगी थी, इतने लोगों के मध्य वह कैसे बच पाएगी ? उसका दिमाग तेजी से कार्य कर रहा था किंतु कुछ भी उपाय नहीं सूझ रहा था। वह कमरे का परीक्षण करती है, कमरे में उसे कुछ भी ऐसा अनुचित महसूस नहीं हुआ। 

रात्रि होने में अभी भी समय था , तब  दुमंजिले पर जाती है, और बेचैनी के कारण इधर-उधर टहलने लगती है। तभी उसने देखा, हरिराम जी, पीछे के बगीचे में जा रहे थे। वे चुपचाप आगे बढ़ रहे थे। उनका इस तरह  से छुपकर जाना उसे शंका से भर रहा था क्योंकि वे इधर-उधर देख रहे थे। अपनी परेशानी और बेचैनियों को भूलाकर, शिखा उनकी हरकतों पर ध्यान देने लगी।

उसने देखा,वो एक बड़े पेड़ के नीचे गए और हाथ जोड़कर, कुछ देर तक वहीं बैठे रहे। शिखा आसपास देखने का प्रयास कर रही थी , वहां ऐसा कुछ भी नहीं था जिसके सामने हाथ जोड़े जाएं। तब वह किसके हाथ जोड़ रहे थे ? वहां पर ऐसा क्या था ? कुछ तो ऐसा था जो बहुत ही अजीब था। कुछ देर हरिराम जी इसी तरह बैठे रहे, सूरज ढल चुका था किन्तु अभी भी रौशनी थी, सभी पंछी अपने- अपने घोसलों की तरफ जा रहे थे। तब  हरिराम जी ने इधर-उधर देखा और चुपचाप वहां से उठकर वापस चले गए। 

आखिर इस हवेली में क्या चल रहा है ? सबकी अपनी- अपनी एक अलग कहानी है। कहीं मैं भी ,एक कहानी बनकर न रह जाऊं उदास हो ,उस सूनेगगन में देखती है ,जो अब धीरे -धीरे अँधेरे की गर्त में जा रहा है। शिखा को अपने बचाव का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था। इन लोगों को लगता है ,शायद मैं भी ऐसी ज़िंदगी से समझौता कर लूंगी किन्तु मेरे रहते ऐसा नहीं होगा किन्तु ये होगा कैसे ?यही सोच रही थी।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post