दमयंती को बहुत कोशिशों के पश्चात ,' ज्वाला' मिल तो जाता है , ज्वाला उससे, प्यार भी करता है और अपने प्रेम का इजहार भी कर देता है किंतु वह चाहता है, कि दमयंती उसके भाई की पत्नी ही बनकर रहे।भाई की ख़ुशी में ही मेरी भी ख़ुशी है। दमयंती अपने प्यार के लिए उसके सामने गिडगिड़ाती है और कहती है -''यह मुझसे नहीं हो पाएगा, तुम मेरे प्यार की परीक्षा मत लो ! कहते हुए रोने लगती है। ज्वाला भी अपने सीने पर पत्थर रख लेता है, और दमयंती को मनाने का प्रयास करता है। तब वह उससे पूछता है -क्या कमरे में भाई नहीं है ?
नहीं, वो तो नहीं है ,तभी तो मैं इधर आ पाई ,अब जब वो सब जान गए होंगे तो उन्हें अब आना भी नहीं चाहिए।
यह तुम क्या कह रही हो ?दमयंती के इतना कहने पर, ज्वाला समझ गया, कि वे सब जान गए हैं और इसी कारण से हमारे बीच से हटने का प्रयास कर रहे हैं। हो ना हो, वे इस रात्रि को होटल में ही बिता रहे हैं। तब ज्वाला कहता है -तुम्हें अब अपने कमरे में वापस जाना चाहिए। कहते हुए ,घड़ी में समय देखता है, तो रात्रि के 2:00 बज रहे थे,तब वो एकाएक कहता है , इस तरह हमारा मिलना उचित नहीं है।
दमयंती समझ नहीं पा रही थी, वह तरह से क्यों व्यवहार कर रहा है ? अब तो सबको मालूम हो ही गया है , इससे क्या फर्क पड़ता है ?मैं यहां रुकूँ या फिर अपने कमरे में जाऊं। हमें यहां कोई देखने वाला भी नहीं है। वह चाहती है कि कुछ देर यूं ही, ज्वाला के साथ बैठकर ढेर सारी बातें करें किंतु ज्वाला को तो जैसे उसकी परवाह ही नहीं है ,बस अपने भाई के विषय में ही सोच रहा है। वह उससे किसी बेल की भांति लिपट जाना चाहती थी ,उससे लिपटकर अपने में समा लेना चाहती थी किन्तु 'ज्वाला 'ने उसे वापस भेज दिया।
दमयंती अपने कमरे में, वापस तो आ गई किंतु परेशान थी, उसे नींद ही नहीं आई।आखिर' ज्वाला' क्या चाहता है ?''जगत ''ने मुझे छुआ है ,अवश्य ही उसके मन में ये बात होगी ,तभी तो मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर पा रहा है। वह समझ ही नहीं पा रही थी, वह क्या करें और कहां जाए ?वो प्रेम भी करता है किन्तु उस प्रेम को स्वीकार क्यों नहीं कर रहा है।
अगले दिन सुनयना देवी ,दमयंती के समीप आईं और बोलीं -ऐसा नहीं है, कि ठाकुर खानदान को लड़की और पैसे की कमी है किंतु कमी है, तो एक सच्चे साथी की, एक ऐसी लड़की की जो इस घर को संभाल सके इस घर को वारिस दे सके। मैं मानती हूँ, तुम परेशान हो किन्तु जिसके साथ तुम्हारा' गठबंधन' हुआ है उस रिश्ते को भी तो नकार नहीं सकते। मेरा 'जगत 'बहुत ही अच्छा है ,जबसे उसका तुम्हारे साथ विवाह तय हुआ था ,तबसे उसने किसी लड़की को छुआ तक नहीं है। जब तुमसे रिश्ता तय हुआ था ,बहुत ही खुश नजर आ रहा था किन्तु अब उसकी आँखों में, मैं वही सूनापन देख रही हूँ। वो उदास है ,मेरे बेटे की वही ख़ुशियाँ तुम्हें लानी होगीं ,जब वो खुश होगा तो ज्वाला स्वतः ही खुश हो जायेगा।
उनकी बातें सुनकर दमयंती को आश्चर्य होता है कि ये औरत होकर एक औरत को क्या शिक्षा दे रहीं हैं ?
तब वो बोली - किन्तु मेरा क्या ?मैं तो' ज्वाला' से प्यार करती हूँ। मैं क्यों अपने प्यार का बलिदान करूं ?
जानती हूँ ,दमयंती के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली -किन्तु उस त्याग में भी एक सुखद एहसास है ,'जिससे प्यार होता है ,जरूरी नहीं उसके साथ शारीरिक संबंध भी हों ,तुम उससे प्यार करती रहो !किसने रोका है ?
मुझे आप ये किस दुविधा में डाल रहीं हैं ? आपके कहने का मतलब है ,आपके एक बेटे से प्यार करूं और दूसरे के साथ पत्नी बनकर रहूं।
समय सभी दुविधाओं का इलाज़ है ,धीरे -धीरे यहाँ रहोगी ,इस घर की मिटटी में रमने लगोगी ,इससे प्यार होने लगेगा तो यहाँ के लोगों को भी अपना लोगी ,कहते हुए बोलीं -कुछ खाओगी ,रात्रि में भी देर से सोईं थीं ,मेरा कहा मानो !कुछ खा लो !और एक चैन की नींद लो !जब दिमाग़ शांत होगा तब अपने आप ही उचित निर्णय लेने लगोगी।
पता नहीं, ये लोग कैसे हैं ? मुझसे क्या चाहते हैं ?जब इन्हें सारी बातें मैंने पहले ही स्पष्ट कर दीं हैं ,तब ज्वाला कुछ कहता है ,उसकी माँ कुछ और कह रही है। ज्वाला का, ये कैसा प्यार है ? क्या अपने भाई की बांहों में अपने प्यार को देखकर,उसे क्रोध नहीं आएगा ,जलन नहीं होगी। खिड़की के समीप बैठी ,वो बाहर तो देख रही थी किन्तु उसे बाहरी दुनिया से कोई मतलब नहीं था ,वो तो अपनी उलझनों में ही उलझी थी ,तभी उसके मन में विचार आया ,'ऐसी बड़ी -बड़ी बातें कहना आसान है किन्तु सहन कर पाना बहुत ही मुश्किल है। यदि वो ऐसा चाहता है तो ऐसा ही होगा ,मन ही मन एक निर्णय लेते हुए दमयंती भोजन करती है और आराम से सो जाती है।
दमयंती जब उठती है तो शाम के चार बज रहे थे ,उठकर नहाती है ,एक नई साड़ी निकालती है ,सुनयना जी उसके कमरे में आईं तो मन ही मन बहुत ही प्रसन्न हुईं और बोलीं -तुम अब ठीक हो,कहते हुए ,उसे एक अलमारी की चाबी दी, जिसमें बहुत सारे गहने थे।
वो उसके पीछे आईं बोलीं - जो भी चाहो ,चुन लो !सब तुम्हारे लिए ही हैं।
इन गहनों का मैं क्या करुँगी ?जो गहना मुझे पसंद है , मिल ही नहीं रहा।
क्या सोच रही हो ?
कुछ नहीं , मन में रह -रहकर कई विचार आ जा रहे थे ,ज्वाला के लिए तो ये जेवर भी कम पड़ जाते किन्तु.... उसने तभी एक करधनी उठाई खूबसूरत थी और भी कई गहने उठा लिए और अलमारी बंद करके चाबी सुनयना जी को दे दी। उसकी इस बात से वो बहुत ही प्रभावित हुईं और मन ही मन सोचा ,यही इस हवेली की मालकिन बनेगी।
दमयंती ने सोलह श्रंगार किये और अपने को आईने में निहारा।
आखिर दमयंती के मन में क्या चल रहा है ?क्या वो 'जगत सिंह ''को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लेगी या उसकी ये कोई चाल है,आइये आगे बढ़ते हैं।