बिस्तर से उठते हुए, दमयंती कहती है-आज भी, उन दिनों को याद करती हूं , तो अपनी वह बच्चों जैसी हरकतें सोच कर हंसी आती है किंतु मेरे अंदर एक जुनून था ,' ज्वाला 'से मिलने का। शिखा उसकी बातें ध्यान से सुन रही थी। इस तरह कहानी को मध्य में छोड़कर, दमयंती अपने वर्तमान में आ गई थी जो शिखा को अच्छा नहीं लगा। उसे यह कहानी इतनी रोचक लगी ,वह दमयंती की संपूर्ण कहानी जान लेना चाहती थी तब वह पूछती है -तब आपने क्या किया ? आप वापस अपने कमरे में आ गईं या अपने प्रेमी से मिलीं।
शिखा के यह कहने पर दमयंती बोली - तुम उन्हें पापा कह सकती हो,कहना भी चाहिए।
'पापा' क्यों ? वह तो आपके पति के भाई हैं।
दमयंती ने उसे ध्यान से देखा, और बोली -तुम नहीं समझोगी।
आप समझाएंगीं तो समझ जाऊंगी, उन्होंने आपको देखा, आपने भी उन्हें देख लिया तब आप लोग आपस में मिले या नहीं।
दमयंती फिर से, अपने अतीत की खिड़कियों में झांकने लगी, और गंभीर होते हुए बोली -मिलने की तो बहुत इच्छा थी किंतु जब ज्वाला सामने आए, मैं,न जाने क्यों घबरा गई थी ? अंदर जाने का साहस ही नहीं हो रहा था। सोचा-' वापस चली जाऊं। ' दूसरे ही पल मन ने समझाया , इतना परिश्रम किस लिए किया था ? क्या, वापस जाने के लिए ? यही सब सोचते हुए मैं अपने मन को तैयार कर रही थी। एक बार सोचा, दोबारा झांक कर देख लेती हूं, हो सकता है उन्होंने मुझे देखा ही न हो, मुझे कोई गलतफहमी हो गई हो इसलिए मैं पुनः खिड़की के करीब गई किंतु अब कमरे में कोई नहीं था। मुझे आश्चर्य हुआ, कहीं ऐसा तो नहीं मैंने किसी और को देख लिया हो किंतु मैं ज्वाला को ही ढूंढ रही थी इसलिए मुझे ज्वाला ही नजर आया किंतु अब तो वह इंसान भी नजर नहीं आ रहा ,न जाने, अचानक से कहां चला गया ?
तभी मैंने महसूस किया, जैसे किसी ने मुझे पकड़ लिया है मेरी चीख़ निकलते- निकलते, गले में ही घूट कर रह गई , मैंने नीचे देखा , मुझे ज्वाला ने पकड़ा हुआ था और धीरे से बोला -क्या देखना है ? आराम से देख लो ! कहीं गिर ना जाओ !इसलिए मैंने पकड़ लिया है। उसके लिए ही तो यहां आई थी, वह मुझे थामे खड़ा था, मैंने उसकी बाँहों के घेरे से आपको छुड़ाने का प्रयास करने के लिए उस चौकी से उतरने लगी किन्तु उसने मुझे छोड़ा नहीं,मैं दबाब बनाते हुए धीरे -धीरे खिसकने लगी, मेरी नजरें उसकी नजरों टकराई। हम एक- दूसरे को देख रहे थे, तुरंत ही उसने फुर्ती दिखाई और मुझे ऐसे ही पकड़ कर कमरे के अंदर ले गया।
मैं समझ रही थी, कि कहीं कोई देख न ले, इसीलिए उसने ऐसी हरकत की, कमरे के अंदर पहुंचकर बोला -तुम यहां क्यों आई हो ? क्या यह उचित है ? भाई कहां है ?
मैं उसकी नजरों में, अपने लिए प्यार ढूंढ रही थी किंतु वह अपने भाई की चिंता में था। मैंने कहा -तुम तो बीमार थे।
हाँ , किंतु अब ठीक हूं , तुम्हारे लिए ही तो मैं यहां वापस आई हूं, क्या इस बात का तुम्हें पता नहीं है ?उसके चेहरे को पढ़ने का प्रयास मैंने पूछा।
मेरी बात सुनकर वह गंभीर हो गया, उसने मेरी आंखों में झांका और पूछा -क्या यह उचित है ?
इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैं विश्वास के साथ बोली।
किंतु अब गलती तो हो गई है।
क्या उस गलती का,खामियाज़ा तमाम उम्र मैं ही भरूंगी ,मैंने उसकी तरफ उम्मीद से देखा।
तुम क्या चाहती हो ? क्या, मैं अपने भाई, से मना कर दूं।
वो सब जानते हैं, स्वयं ही पीछे हट जाएंगे।
तुम भी क्या ,बच्चों वाली बातें करती हो , उसके पश्चात क्या तुम यहां रह सकोगी ?
मैं उस तर्क- वितर्क के मूड में नहीं थी, मैं तो कुछ और ही सोच रही थी ,मुझे देखते ही ज्वाला खुश होगा ,मुझसे मिलने आएगा ,उसकी बीमारी हालत में यदि मैं उससे मिलती हूँ ,उसकी सेवा करूंगी तो खुश होगा किन्तु मैंने देखा वो बीमार ही नहीं था, स्वस्थ था , तब मेरे मन में एक विचार कौंधा , क्या यह बीमारी का बहाना, मुझे यहां बुलाने के लिए किया गया था ? तब मैंने पूछा -तुम बीमार ही नहीं थे , मुझे यहां बहाने से बुलाया गया है।मैंने, तुम्हें मिलने के लिए बुलाया था , तुम तब भी नहीं आये,मैंने शिकायत भरे लहज़े में कहा।
तुम यह सब समझती हो, तब फिर पूछ क्यों रही हो ? क्या तुम्हें यहां आना नहीं था ?
आना तो चाहती थी, 'सिर्फ तुम्हारे लिए !'
ऐसा कैसे हो सकता है ?
क्या तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है ?जब तुम्हें पता चला कि मेरा विवाह तुमसे नहीं, तुम्हारे भाई से हुआ है ,क्या तुम्हें दुःख नहीं हुआ ?अपने प्यार के खो जाने का ड़र नहीं हुआ।
वो तो खो गया था उदास स्वर में वो बोला।
क्या, उसे पाने और ढूंढने की चाहत भी खो दी ?
अब क्या लाभ ? तुम भाई के जीवन में आ गयीं थीं,इस बात को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता ,मैं अपने स्वार्थ के लिए भाई की खुशियां तो नहीं छीन सकता।
मैं तुम्हारे भाई की ख़ुशी कब थी ?कहीं ऐसा तो नहीं ,तुम्हारे भाई ने मेरे साथ एक रात्रि बिताई है ,उसके कारण तुम मुझसे दूर जा रहे हो।
यह क्या कह रही हो ?वो तड़प उठा ,तुमसे प्यार किया है ,तुम्हारे तन से नहीं।
उसके मुँह से ये शब्द सुनकर मैं जैसे जी उठी ,उसके सीने से लगकर बोली -यही तो सुनना चाहती थी ,तुम्हें भी मुझसे प्यार है या मैं ही......
नहीं ,ऐसा सोचना गलत है किन्तु प्यार पाना ही तो सब कुछ नहीं ,त्याग का नाम भी प्यार है ,तुम्हे भाई के साथ खुश देखकर मुझे भी ख़ुशी हो होगी और मैं तुमसे उम्मीद करता हूँ कि तुम भी, भाई के प्यार का अपमान नहीं करोगी।
नहीं ,मुझसे ये सब नहीं होगा ,मैं यहाँ तुम्हारे लिए वापस आई हूँ ,मैं रोते हुए उससे लिपट गयी थी। रात्रि बढ़ती जा रही थी किन्तु मेरे प्यार की उम्र जैसे घट गयी थी। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ,मैं ज्वाला से दूर जाना नहीं चाहती थी और ज्वाला अपने भाई के लिए, मेरे प्यार का त्याग कर रहा था और मुझसे भी यही अपेक्षा रख रहा था। मेरे प्यार के लिए इतना तो कर ही सकती हो। उसने मेरे कंधे सहलाते हुए कहा।
नहीं ,मैं ये नहीं कर पाऊँगी ,मैंने रोते हुए उससे विनय की।
उस रात्रि तुमने मुझे समझा था ,अन्य रात्रि भी यही समझना।
वो तो अनजाने में हुआ किन्तु अब नहीं.... मुझे ऐसी सजा मत दो ! मैं तुम्हारे बिन नहीं रह पाऊँगी।
इन दोनों के प्यार का अंजाम क्या होगा ?क्या शिखा वापस चली जाएगी ?या इनकी ज़िंदगी एक नया मोड़ लेकर आएगी,इन दोनों में सही कौन है ?इन्हें आगे क्या क़दम उठाने चाहिए ,समीक्षा द्वारा अपने विचारों से अवगत कराइये !