Mysterious nights [part 63]

आज सुनयना जी को ,दमयंती के रोने का कारण समझ आया। तभी वो कह रही थी -'ये मेरा पति नहीं है।  ओह ! उस दिन उसके रोने का कारण,यही था ,किन्तु एक बात समझ में नहीं आई, ये गलतफ़हमी हमें हुई है या उस लड़की को..... क्या अपना' ज्वाला' भी उसे पसंद करता है ?

शायद ! कह नहीं सकता ,अब जो हो गया सो हो गया , उसको बदला तो नहीं जा सकता,अब इसका कोई उपाय भी है या नहीं।  

 यही बात श्यामलाल जी की बेटी की समझ में नहीं आ रही है और वह इसीलिए आना भी नहीं चाहती। सोचते हुए सुनयना जी सोच रहीं थीं ,ह्म्म्मम्म !



उन्हें सोचते देख ,अमर प्रताप सिंह जी बोले - इस तरह तो बहुत बदनामी हो जाएगी। वैसे ही, हमारे बेटों के रिश्ते नहीं आ रहे हैं, यह बात घर से बाहर नहीं जानी चाहिए।लोग क्या कहेंगे ?इतने दिनों में एक लड़के का विवाह हुआ और अब उसकी पत्नी भी, घर वापस नहीं आ रही है। लोग न जाने कैसी -कैसी अटकलें लगाने लगते हैं। वो तो गांव में ,हमारे विषय में किसी को ज्यादा कुछ मालूम नहीं है ,जिन्हें मालूम है, मुँह नहीं खोल पाते ,हमारा ड़र भी है किन्तु एक बार बात बाहर आ गयी ,तो समाज में' सर उठाकर नहीं चल पाएंगे।'  इसका कोई हल तो होगा, अमर  प्रताप सिंह जी थोड़ी देर यूँ ही, करवटें बदलते रहे और शीघ्र ही उन्हें नींद आ गयी। 

 वही तो समझ नहीं आ रहा है,गहन सोच में डूबी  सुनयना जी ने अपने पति की तरफ देखा ,वो तो खर्राटें ले रहे थे किन्तु उन्हें नींद नहीं आई ,मैं इस लड़की को अपने परिवार के मान -सम्मान के साथ खेलने नहीं दूंगी वो रात भर परेशानी में करवटें बदलती रहीं , मन में अनेक विचार आते- जाते रहे ,इस समस्या का कोई हल नहीं सूझ रहा था। न जाने कब उन्हें, सोचते- सोचते नींद आ गई ? सुबह जब उठीं तो काफी दिन निकल चुका था।

 अरे !आज तो बहुत देर हो गयी,उन्होंने घड़ी में समय देखा, आठ बज रहे थे। अपने बिस्तर के दूसरी तरफ देखा ,ठाकुर साहब उठकर जा चुके थे। मन में बेचैनी हुई ,कहीं बिना खाये ही, घर से बाहर न चले जाएँ। सब कुछ ऐसे ही छोड़ ,फुर्ती से बाहर आईं ,अरे !अरे !इतनी तेजी से कहाँ जा रही हो ?

ठाकुर साहब ! के शब्द सुनकर उनके कदम जैसे वहीं थम गए और उन्होंने मुड़कर देखा ,ठाकुर साहब को देखकर चैन की स्वांस ली और बोली -आपके लिए ही जा रही थी ,कहीं आप बिना नाश्ता किये ही बाहर न चले जाएँ ,तब शिकायत भरे लहज़े में बोली -आपने मुझे उठाया क्यों नहीं, आज मुझे उठने में कितनी देर हो गयी ? 

तभी एक ट्रे में, दो कप चाय लेकर सुंदरी आ गयी ,उसे देखकर वे बोले -परेशान होने की आवश्यकता नहीं है ,मुझे लगता है ,तुम देर रात तक जगी हुई थीं ,इसीलिए यही सोचकर मैंने तुम्हें नहीं उठाया ,तुम्हें परेशान होने की भी आवश्यकता नहीं है। ये घर तुम्हारा है ,तुम इस घर की मालकिन हो ,आराम से उठो ! मुस्कुराते हुए ठाकुर साहब बोले। 

 सुनयना जी के मन में फिर से वही विचार उत्पन्न होने लगे, अचानक ही एक विचार मन में  प्रबल हो उठा  और वे अपने पति के समीप जाकर बोलीं  -क्या ऐसा हो सकता है ? इस घर की एकता और शांति के लिए ही, मैं यह सब कह रही हूं। 

तुम कहना क्या चाहती हो ? मुझे भी तो पता चले। 

वही तो बताने जा रही हूं, हालांकि यह बात थोड़ी देर से हजम होगी, लेकिन इसमें कोई बुराई नहीं है। 

कौन सी बात! तुम क्या कहना चाहती हो ?

' जगत' से उसका विवाह हो चुका है, गांववालों और समाज के सामने ,अब वह हमारे बड़े बेटे' जगत' की पत्नी है किन्तु अपने 'ज्वाला' से प्रेम करती है। बहु को जगत की पत्नी के रूप में ही लेकर यहाँ आएंगे। 

वह तो आना ही नहीं चाहती ,यहां आकर किसी को भी चुन ले , दोनों ही अपने बेटे हैं।

 यह सब तुम क्या कह रही हो ?क्या ऐसा भी कहीं कुछ होता है ,मेरे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा है। 

एक बार मुझे, आप श्यामलाल जी से मिलवा दीजिए !मैं उन्हें सब समझा दूंगी, सुनयना ने अपने पति से कहा। 

जिस होटल से यह कहानी शुरू हुई थी, उसी होटल में 'सुनयना देवी' और' श्याम लाल जी' की मुलाकात होती है। कुछ देर की मुलाकात के पश्चात, श्यामलाल जी चुपचाप वापस अपने घर चले जाते हैं। घर जाकर बेटी से कहते हैं -तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है, ज्वाला भी उसी घर में ही रहता है फिर दोनों आपस में मिल भी सकते हो, इसमें क्या बुराई है ?

इस बात को सुनकर, श्याम लाल जी की पत्नी को गुस्सा आया और बोली -यह आप अपनी बेटी से किस तरह की बातें कर रहे हैं ?

सही तो कह रहा हूं , उस घर पर राज करेगी , मुझसे सुनयना जी ने कहा है -इसके रहते घर में, कोई और लड़की नहीं आएगी जो कुछ भी होगा वह सब इसी का होगा। जो भी संपत्ति हमारे पास है वह सब इसी के बच्चों की होगी। घर की एकता और समृद्धि को बनाए रखने के लिए , इसमें क्या बुराई है ? कोई दूसरी आती है, तो वह उस संपत्ति को बाँट लेगी और उसके बच्चों में भी बटेगी। घर उसका है, घर के परिवार के लोग, उसका कहना मानेंगे ! जो कुछ भी सम्पत्ति होगी ,सब इसी की होगी।

यह सब क्या कह रहे हैं ?आपको ऐसी बातें कहते तनिक भी शर्म नहीं आ रही है। 

 द्रौपदी के भी तो पांच पति थे,वो तो राजा की बेटी थी ,उसे भी परिस्थिति के अनुसार समझौते करने पड़े या नहीं ,इससे कौन ,कोई जबरदस्ती कर रहा है? इसे, जिसके साथ रहना है ,उसके साथ रहे किन्तु 'समाज के  सामने तो' जगत' की पत्नी ही बनकर रहेगी।  इसमें बुराई ही क्या है ? यदि ये विवाह तोड़ती है ,तब भी 'ज्वाला 'से इसका विवाह नहीं हो पायेगा ,न ही, उससे मिल पायेगी ,छुटी हुई औरत का कलंक और लग जायेगा। तुम समाज को नहीं जानती हो ,औरत को ही बुराई मिलती है ,उसे ही चार बातें सुनने को मिलती हैं। न जाने क्या -क्या इल्ज़ाम इस पर लगा दें। जरा समझदारी से सोचकर देखो ! यदि ये वहां आराम से चली जाती है तो कोई भी इसे अपने साथ रहने के लिए बाध्य नहीं करेगा ,अपनी  इच्छा से 'ज्वाला' के संग रहे।  

यह सुनयना जी ने, श्याम लाल जी को कैसा पाठ पढ़ाया  है ?दमयंती जानती थी कि उसके पिता उसकी सास से मिलने गए थे।  कुछ समझ ही नहीं आ रहा था , उन्होंने यह कैसी शर्त रखी है ? उसे वापस जाने पर मजबूर होना पड़ेगा। क्या दमयंती उनकी यह शर्त स्वीकार कर लेती है या नहीं ,क्या दमयंती  अपने प्यार के लिए, अपने पिता की बात का मान रखती है या नहीं , चलिए आगे बढ़ते हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post