Mysterious nights [part 62]

शिखा स्नानघर के आईने में ,अपने आपको ढूंढ़ रही थी। पहली शिखा और आज की शिखा में उसे बहुत अंतर् नजर आ रहा था। अपने उन अंगों को छूने से ड़र रही थी ,जिनको न जाने, किसने अपनी हवस का शिकार बनाया था ? तब उसने, मन ही मन दृढ़ संकल्प किया इस जीवन में तो मैं, अब किसी की नहीं होऊंगी। अपने उस 'अक्श'  से वादा किया और बाहर आ गई। बाहर आकर, उसने साफ- सुथरे कपड़े पहने। वह उस कमरे से बाहर चली जाना चाहती थी। जैसे ही वह दरवाजे तक आई, दमयंती जी उसे सामने ही दिख गईं  और उसे देखकर बोलीं -कहां जाना चाहती हो ?

अपने कमरे में, वह दृढ़ता से बोली। 


 अब यही तुम्हारा कमरा है। 

 क्या मतलब ? मैं अब इस कमरे में नहीं रहूंगी,जहाँ मेरा अपमान हुआ है,वहां रहना मुझे मंज़ूर नहीं।   

तुम बात को समझती क्यों नहीं हो ?ये तुम गलत कह रही हो ,यह तुम्हारा अपमान नहीं बल्कि इस घर ने तुम्हें अपनाया है ,''बिन ब्याही सुहागरात '' देखो ! हमने तुम्हें पहले ही समझाया था। अब तुम वापस अपने कमरे में चली जाओ !आज तुम्हें, तुम्हारा वो अपराधी मिल जायेगा। तब तुम उसे जीभर कर देख लेना ,कहकर वो मुस्कुरा दीं। 

उनकी मुस्कुराहट देख ,शिखा बुरी तरह तिलमिला गयी और बोली - क्या ऐसी ही, शिक्षा आपने अपने बच्चों को दी है ? औरत होकर भी ,मेरा अपमान करवाते हुए ,तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं आई। 

मैं तुम्हारा दर्द और परेशानी समझ सकती हूं किन्तु अब तुम जो भी कदम उठाओगी ,सोच -समझकर उठाना क्योंकि इसका असर तुम्हारे ऊपर ही नहीं ,हम सभी के जीवन पर भी होगा। अपने उस व्यवहार की तुम स्वयं जिम्मेदार होंगी। 

 
ये आप मुझे धमकी दे रहीं हैं ,गुस्से से आँखे तरेरते हुए शिखा बोली। आप कुछ भी नहीं समझती हैं और न ही समझ सकती हैं क्योंकि मैं आप जैसी नहीं हूं, वह गुस्से से बोली।

ऐसे'' बुझे हुए तीर'' शिखा ने उस पर कई चलाये थे किन्तु दमयंती नजरअंदाज करती रही , दमयंती उसके करीब आई और उससे पूछा -कैसी हूं ? मैं ! मेरे विषय में क्या जानती या समझती हो ? 

मैंने सब देखा है , तुम क्या हो ? और क्या करती हो ?घृणा से शिखा बोली। 

चलो !आज तुमको, वहां घुमा लाते हैं, कल को तुम भी तो इस हवेली की मालकिन बन जाओगी ,क्रोध से ''दाँत पीसते हुए'' दमयंती ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लगभग खींचते हुए ,आगे बढ़ गईं । तुम्हें बड़ी चाहत थी, इस घर में कोई महिला क्यों नहीं रहती है ? मैंने क्यों पूरे घर पर अधिकार जमाया हुआ है ? तुम क्या समझती हो? तुम जब उस कमरे में बेहोश हो गई थीं , क्या हम नहीं समझते हैं ? तुम वहां क्या करने गई थीं ? क्या जानना चाहती हो ? कहते हुए उसे, एक कमरे के करीब ले जाकर खड़ी हो गईं, जो ''जगत सिंह जी'' का था। तुम इन्हीं कमरों का रहस्य जानना चाहती थी न..... मैं तुम्हें दिखलाती हूं ,यह कमरा कहते हुए उसने दरवाजा खोला - यह कमरा मेरे पति'' जगत सिंह'' का है क्योंकि इनसे मेरा धोखे से विवाह हुआ था।  उस धोखे की सजा मैं आज भी भुगत रही हूं, धोखा भी कुछ नहीं था,बस  एक' गलतफहमी' थी। जो बहुत देर होने के पश्चात दूर हुई। 

मैंने जब पहली बार 'ज्वाला सिंह' को देखा था , उन्हीं को जानने लगी थी, पसंद भी करने लगी थी किंतु यह नहीं जानती थी कि जिससे मेरा विवाह हो रहा है, वह उन्हीं का बड़ा भाई है। ऐसा नहीं कि इन लोगों ने धोखा दिया, या मेरे घर वालों को धोखा हुआ। दोनों तरफ गलतफहमियां थीं, पहली रात्रि जब मुझे असलियत का पता चला ,तब तुम्हारी तरह मैं भी बहुत रोई थी ,यहां से चली जाना चाहती थी, बहुत दूर चली जाना चाहती थी।

 मैं विदेश में पढ़ी-लिखी हूं, शहर में रही हूं किंतु सोच मेरी वही थी,मैंने भी एक सुंदर सपना देखा था ,हँसते -खेलते परिवार का सपना था। ' समय और परिस्थिति लोगों की विचारधारा बदल देते हैं' जो करना चाहता है वह नहीं कर पाता है। मैं अपने घर वापस आ गई थी , मैं अपनी ससुराल वापस नहीं जाना चाहती थी क्योंकि वह सब मुझे धोखा लग रहा था। मुझे तो 'ज्वाला' पसंद थे,उनसे ही प्रेम किया था किंतु उस समय पर उन्होंने भी, अपने को विवश दिखलाया।

 अब वह यह तो नहीं कह सकते थे, कि बड़े भाई को छोड़कर मेरे पास चली आओ ! घर एक था, परिवार एक था। हम लोग बहुत दुविधा में फंसे हुए थे, क्या करें ? मैं बहुत दिनों तक अपनी ससुराल नहीं गई, घर पर ही रह रही थी, अपने घर वालों को भी कुछ नहीं बताया था। उनसे क्या कहती ? कि  जिसे मैंने  समझा था वह वो लड़का नहीं है किंतु कब तक उनसे यह सब छुपाए रखती ?एक दिन मम्मी ने पूछ लिया -'कि तुम अपनी ससुराल  वापस क्यों नहीं जा रही हो ? '

तब मैंने रोते-रोते, उन्हें संपूर्ण कहानी सुनाइ , जिसे सुनकर वह थोड़ी सी आश्चर्यचकित हो गई और शांत हो गई उन्होंने यह बात पापा को भी बतलाई। पापा ! मेरी यह बात सुनकर, एकदम मोेन हो गए,परेशान भी हुए ,ब्याही भरी बेटी घर वापस आकर बैठ गयी। अब क्या करें ?यह गलती कैसे हो गयी ? तब उन्होंने यह बात अपने मित्र यानी कि तुम्हारे ससुर के पिता'' ठाकुर अमर प्रताप सिंह जी'' से बताई - बेटी' ज्वाला सिंह 'के कारण यहां नहीं आ रही है।

 क्या बात है ? कुछ शांत लग रहे हैं और परेशान भी हैं। क्या कुछ हुआ है, अमर प्रताप जी की पत्नी सुनयना देवी ने अपने पति से पूछा। 

क्या बताऊं ? बहुत बड़ी परेशानियां सामने आ गई है, जिसका मुझे कोई हल दिखलाई नहीं दे रहा है, समझ ही नहीं आ रहा है, क्या करूं ?

हुआ क्या है ? मुझे भी कुछ बतलाएंगे या नहीं। 

दमयंती बहू ,अब वापस नहीं आना चाहती है। 

यह आप क्या कह रहे हैं ? क्या हुआ है ? वह यहां भी परेशान थी ,रो रही थी आखिर वो चाहती क्या है ? विवाह तो उसकी इच्छा से ही हुआ है। 

 उसकी इच्छा से ही हुआ है, किंतु थोड़ी गलतफहमी हो गई है वह अपने' जगत' को नहीं,' ज्वाला' को पसंद करती है।

 यह क्या कह रहे हैं ?' ज्वाला' ने तो कभी इस बात का जिक्र ही नहीं किया था ,आश्चर्य से सुनैना जी ने कहा। 

वही तो बता रहा हूं, मैंने ज्वाला से बात की है और वह कह रहा है- यह सब गलतफहमी है, जौहरी की दुकान से जो अंगूठी उसने खरीदी थी , दमयंती की पसंद की हुई थी, यह लोग शहर में मिले थे। दमयंती ने 'ज्वाला' को ही, हमारा बेटा समझा था ।' जगत' के विषय में, उसने कुछ सोचा ही नहीं था। यहां आकर उसे एहसास हुआ, कि उससे कितनी बड़ी गलती हो गई है ?


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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