शिखा की इच्छा के बिना, उसका 'मान मर्दन' तो हुआ है जिसके कारण वो बहुत आहत हुई है। उसे तो विश्वास ही नहीं था ,उसके साथ ऐसा भी कुछ हो सकता था। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था और वह जानना चाहती थी- उसके साथ, यह सब किसने किया? किंतु दमयंती जी ,बात को अभी भी संभाल लेना चाहती थीं और वह उससे कहती हैं -' हम अभी भी बात को संभाल सकते हैं , जिससे भी यह गलती हुई है, वही तुमसे विवाह करेगा।
हालांकि ठाकुर परिवार का, शिखा को तेजस के न होने पर भी,यहाँ लाने के पीछे उनका उद्देश्य सही नहीं था किंतु अब वह उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते थे किंतु शिखा को न जाने क्यों ? उनके चारों लड़कों में से कोई भी पसंद नहीं आ रहा था। इसका कारण ,क्या उसका पूर्व प्रेमी नरेंद्र तो नहीं ,हो सकता है, किंतु उसके लिए भी वह स्पष्ट रूप से यह नहीं कह सकती थी कि हां, वह अभी भी उसकी प्रतीक्षा कर रहा है।
फ़िलहाल ,वह इन सब से दूर, स्वतंत्र होकर जीवन जीना चाहती थी ताकि वह अपने आप को समझ सके अब वह और कोई भी रिश्ता, अपने ऊपर जबरन ओढ़ना नहीं चाहती थी।तेजस के साथ जो उसके मन में भाव थे ,वे अब न जाने कहाँ तिरोहित हो चुके हैं ? मन में , जीने की इच्छा तो है किंतु वह क्या चाहती है ?अभी वो स्वयं ही नहीं जानती। शायद उसे थोड़ा और वक़्त चाहिए था किन्तु ठाकुर परिवार के लोग, उसे हवेली से बाहर भेजना भी नहीं चाहते थे।
उन्हें एक उम्मीद थी ,अभी इसकी उम्र ही क्या है ?समय के साथ, अवश्य ही इस परिवार में घुल- मिल जाएगी किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और जब पुनीत ने उसको किसी अन्य के ख्यालों में खोते हुए देखा तो उसे कुछ भी ठीक नहीं लगा। वो लोग तो अब तक उसे, अपने घर की धरोहर समझे बैठे थे। इसके लिए उन्हें शिखा के पिता की भी सहमति मिल चुकी थी।
कल जब पानी के टब में नहाते हुए वो मुस्कुरा रही थी ,वो भूल चुकी थी कि वहां कोई आ गया था।तब पुनीत ने निश्चय कर लिया था ,अब इसे और समय नहीं देना है ,वह सभी की पसंद तो पहले ही बन चुकी थी। पुनीत ने अपने कमरे को सजाने का आदेश दिया। सबसे छोटा था तो क्या हुआ ? जवान था, मर्द था ,उसने एक जवान लड़की को अपने सामने नहाते देखा है। वह चाहता तो वहां भी उसके साथ, प्रेम की पींगे भर सकता था किन्तु इतना समझता था ,आसानी से ये स्वयं चलकर मेरे पास आने से तो रही ,अब इसको मजबूर ही किया जा सकता है।
शिखा भी कम चालाक नहीं थी,उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। किसी के साथ छिना -झपटी, ये ठाकुरों की शान के विरुद्ध था। जब उसने देखा ,कि वो बाहर नहीं आ रही है ,तब उसने शिखा के लिए भोजन भिजवाने का उपक्रम किया। पुनीत ने अपने अन्य भाइयों से भी पूछा था किन्तु उन्होंने उसको ''रंगीन रात ''के लिए बधाई दी।
घर का पुराना विश्वसनीय नौकर 'रामदीन' उसके सभी कार्य कर रहा था ,उसका कार्य आदेश का पालन करना था ,वो कभी कुछ नहीं बोलता था। उस रात्रि भी भोजन करने के पश्चात जब शिखा अपने होश खो बैठी ,रामदीन उसे पुनीत के कमरे में ले आया। पुनीत के बड़े भाई तो होटल में भी, अपनी रातों को रंगीन कर लेते थे ,किन्तु ये पुनीत के लिए पहली बार था। उसके भाई ने ही, उसे शराब पीने की सलाह दी थी। अपने कमरे में बैठा वो उसके बिस्तर पर लेटी ,अचेत शिखा को देख रहा था। उसके करीब जाते हुए, उसकी धड़कनें तेज़ हो रहीं थीं।
पुनीत सोती हुई शिखा के समीप जाकर लेट गया ,जब शिखा थोड़ी होश में आई ,तो उसे अपनी वही ख़ुशनुमा बातें स्मरण हो आईं और वो अपने सपनों की दुनिया में नरेंद्र के सीने से लगी ,अपने मन की प्यास बुझा रही थी। वह नहीं जानती थी ,उसके समीप नरेंद्र नहीं ,वह पुनीत का सीना है ,दोनों ही , एक दूसरे के आगोश में समाए हुए थे। शिखा को होश नहीं था, किंतु वह पुनीत का पूरा साथ दे रही थी। जब दोनों की ''प्रेम पिपाशा '' शांत हो गई ,तब दोनों ही एक दूसरे में लिपट कर सो गए।
तड़के ही ,अचानक पुनीत की आँखें खुली उसने देखा ,उसके समीप ही शिखा नग्नावस्था में पड़ी थी ,उसे देख मुस्कुराया ,उसके अधरों को चूमा ,वह ऐसे ही जा रहा था किन्तु न जाने क्या सोचकर ठहर गया और उसने, उसे कपड़े पहनाये और बाहर निकल गया।
दमयंती से झगड़ा करके, अपने मन की भड़ास निकाल कर भी, शिखा को कोई लाभ नजर नहीं आया,इस अवस्था में बाहर भी नहीं जा सकती थी। तब वह, अपने बदन को साफ करने के लिए स्नान घर पर घुस गई। अपने सभी वस्त्र, उसने उतार फेंके। स्नानघर में लगे आईने में, वह अपने को देख रही थी और बार-बार उस समय को स्मरण कर रही थी जब उससे एक भूल हो गई , भूल हुई भी तो कैसे ? उसके भोजन में उन लोगों ने कुछ मिला जो दिया था ,इस बात की तो उसे दूर-दूर तक भी उम्मीद नहीं थी। अपने नग्न बदन पर, वह निशान देखती है जो उसके गले पर सीने पर और उदर पर थे।
वह निशानों को, रगड़कर साफ कर देना चाहती है , उनसे दर्द ही होता है किंतु निशान साफ नहीं हो रहे थे । वह उन्हें पानी से धोती है, और बार -बार पानी को अपने ऊपर उड़ेलती रहती है, उड़ेलती रहती है, जो जख्म उसके तन पर पड़े हैं वे तो शायद, कुछ दिनों में ठीक हो जाएंगे किंतु जो घाव उसके मन को मिले हैं , वह शायद कभी नहीं भर पाएंगे।
ठाकुरों का विचार था-' जैसे हर लड़की कभी न कभी ,किसी न किसी परिस्थिति से समझौता कर ही लेती है इसी तरह शिखा भी कुछ समय पश्चात, हमारे व्यवहार, और शानो - शौकत देखकर, प्रभावित होकर परिस्थिति से समझौता कर ही लेगी किंतु हर लड़की एक जैसी नहीं होती। शिखा भी उनमें से एक थी।
शिखा को तेजस से प्रेम हुआ उसके प्रेम की खातिर, अपना वादा निभाने के लिए वह उनके घर चली आई किंतु अब उसे एहसास हो रहा था , जैसे वे लोग, जबरन ही उससे रिश्ता बना लेना चाहते हैं जो उसका मन स्वीकार नहीं कर पा रहा है। यहां रहकर भी, वह अब अपने को बंधन में महसूस कर रही थी हालांकि उसे कोई कुछ नहीं कह रहा था किंतु कुछ तो ऐसा था जिसके कारण, शिखा को वहां रहकर छटपटाहट होती थी और वह यहां से दूर चली जाना चाहती थी।
उसने फिर से अपने आप को आईने में देखा, उसे लगा रहा था जैसे ,वह अपना सबकुछ गंवा चुकी है। अपने को बहुत ही खोखला और बौना महसूस कर रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे उसका अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। उसने आईने में अपने आप को फिर से देखा,वह उस शिखा को पहचान ही नहीं पा रही थी।
