Angare ugalana

 देख रहे हैं ,आज छोटी बिना किसी से कहे ,अपने पति को लेकर फ़िल्म देखने गयी है ,तन्वी ने अपने पति से शिकायत भरे लहज़े में कहा। 

विनय ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और चुपचाप अपने कमरे में चला गया पति के इस व्यवहार से वह बुरी तरह तिलमिला गयी। जब वो इस घर में ब्याहकर आई थी , तभी सास के सख़्त रवैये से उसका परिचय हुआ था। बहु ! हमारे घर में यह नहीं होता ,वह नहीं होता।


 एक दिन,किसी बात पर वह अपने पति विनय से ही, हंस -हंसकर बतला रही थी ,तभी उसकी सास वहां आ गयी और अपने बेटे विनय से तो कुछ नहीं कहा ,बल्कि वो माँ को देखकर, चुपचाप वहां से चला गया। 

तब उसकी सास बोली -बहु !क्या सारी शर्म -लिहाज़ सब घोंटकर पी गयी हो ,घर की बहुएँ इस तरह खी खी करके हँसती हैं ,बड़ी हंसी आ ही रही है ,तो अपने कमरे में जाकर खूब हंसो !किसने रोका है ?तन्वी को समझ नहीं आया ,वह अपने घर में अपने पति के संग खड़ी थी ,इसमें मैंने ऐसा क्या गलत काम कर दिया ?जो मुझे वो इस तरह डांट रही थीं। 

कमरे में आकर, जब उसने ये बात विनय को बताई तो बोले -सही तो कह रहीं हैं ,ऐसे अच्छा नहीं लगता ,आगे से ध्यान रखना !वो हमारी बड़ी हैं ,जो भी कह रहीं हैं ,अच्छे के लिए ही कह रहीं हैं ,उनकी बात मानने में क्या जाता है ?

एक दिन तन्वी का मूड़ बहुत अच्छा था,तब वह अपने पति से बोली -आज कोई अच्छी सी फ़िल्म देखकर आते हैं किन्तु जब विनय ने मम्मी से पूछा ,तो उन्होंने  तुरंत ही मना कर दिया। घर में खाना कौन बनाएगा ?तुम दोनों तो बाहर फ़िल्म देखोगे और बाहर ही खा लोगे किन्तु घर के अन्य लोगों का क्या होगा ? परिवार में ऐसे नहीं चलता है। 

मम्मी की बात सुनकर विनय का मूड़ खराब हो गया और बोला -ठीक है ,हम नहीं जायेंगे।

 जब वह अंदर कमरे में आया तो तन्वी को तैयार देख थोड़ा ठहर गया किन्तु तन्वी ने उसके उदास चेहरे को देखा तो बोली -क्या हुआ ? 

कुछ नहीं ,हमारा जाना नहीं हो पायेगा। 

क्यों क्या बात है ?कुछ भी न समझते हुए तन्वी ने पूछा। 

मुझे अभी किसी जरूरी काम से बाहर जाना होगा, सॉरी !मैंने तुम्हारा मूड़ खराब कर दिया। 

यह सुनकर तन्वी को दुःख हुआ और वो बिस्तर पर बैठ गयी, किन्तु पति की मजबूरी समझ बोली -कोई बात नहीं ,हम फिर कभी चले जायेंगे ,कहते हुए ,उसकी आँखे नम हो आईं किन्तु उसने उन्हें विनय से छुपा लिया और घर के कार्यों में व्यस्त हो गयी। वो तो उसे बाद में पता चला ,कि उन्हें मम्मी जी ने नहीं जाने दिया था।तब उसे विनय पर बहुत क्रोध आया था किन्तु जो घटना घट गयी अब उसे कहने से क्या लाभ ?

  इस घर में ऐसी बहुत सी छोटी -छोटी घटनाएं थीं जिनके कारण तन्वी के मन में एक गांठ सी बन गयी थी। तब उसने सोचा ,जब देवरानी आएगी तब दोनों साथ मिलकर हंस -बोलकर समय काट लिया करेंगे। उसको भी तो ये सब झेलना होगा किन्तु जब देवरानी आई तो उसकी जैसी इच्छा होती,वैसे कपड़े पहनती ,जहाँ जी करता, दोनों हँसते -बोलते। तन्वी अपनी सास की तरफ देखती कि वो अब उसे समझाएंगी या कुछ कहेंगी किन्तु उन्हें तो जैसे कुछ दिख ही नहीं रहा था। 

आज तो हद ही हो गयी ,जब देवर और देवरानी ने सास से पूछा भी नहीं और दोनों फ़िल्म देखने चले गये ,तब तन्वी को अपने वो दिन स्मरण हो आये ,जब वो तैयार होकर भी सास के इंकार करने पर, फ़िल्म देखने नहीं जा पाई थी।इतने पर भी जब तन्वी ने अपनी सास से कहा -अब आपको घर की मान -मर्यादा ,संस्कार दिखलाई नहीं देते ,तब सास ने उससे तो कुछ नहीं कहा किन्तु जब देवरानी से यह कहते सुना -'ये तुझसे जलती है ,वह क्रोध में 'खून के घूंट पीकर रह गयी। '

 तब आज उसने विनय से यह बात शिकायत भरे लहजे में बताई तो विनय के पास तन्वी की बातों का कोई जबाब नहीं था, तन्वी के अंदर जो इतने दिनों से कुछ बातें इकट्ठा हुई थीं ,वे आज क्रोध बनकर बाहर आ गयीं और विनय के पास जाकर बोली -अब आप कुछ नहीं कहेंगे ,बड़ों का कहना मानना ,संस्कारों की बात नहीं करेंगे ! ये सब, क्या मेरे लिए ही था ? क्रोधावेश में तन्वी ने उसे '' बहुत जली -कटी सुनाई।''और उससे अपने प्रश्नों के जबाब चाहे ,क्या ये सब बंधन मेरे लिए ही थे ?

तब विनय बोला -हमारा कार्य अपने बड़ों का कहना मानना था ,हमने उनकी बातों का मान भी रक्खा ,अब जब छोटा अपने उत्तरदायित्व नहीं समझ रहा है या अपने बड़ों की बात का मान नहीं रख रहा है ,यह उसका अपना व्यवहार है ,हो सकता है ,मम्मी भी उन्हें इसीलिए नहीं टोकती होगी ,क्यों उससे कुछ कहकर अपना अपमान करवाना ?बड़े भी तो उसे ही कहते हैं ,जिसे अपना समझते हैं ,जिन पर अधिकार समझते हैं। हमें अपने व्यवहार से अपने लिए ठीक रहना है ,हम किसी के लिए नहीं बदलेंगे। ये हमारी अपनी सोच और व्यवहार है ,छोटे की अपनी सोच और उसका व्यवहार है। तुम क्या समझती हो ?मम्मी कुछ नहीं जानती या समझती हैं। वो सब जानती हैं किन्तु अपनी इज्जत की खातिर चुप हैं।     

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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