जन्म के साथ ही , एक अद्भुत रिश्ता मेरे साथ जुड़ गया था। सबसे पहले वह रिश्ता तो मेरी मां से था जिनके कारण मैंने इस संसार में अपनी आंखें खोलीं। साथ ही मेरे साथ कोई और भी था जो दोस्ती का रिश्ता निभा रहा था। वह हरदम मेरे साथ था। महसूस होता था किन्तु दिखालाई नहीं देता था। वो हमेशा मेरे साथ था , मैं अपनी इच्छा से प्रत्येक कार्य कर रही थी , कभी-कभी डर भी जाती थी , तब वह मेरे अंदर साहस भरता, मेरा आत्मविश्वास मेरे अंदर जगाता। जो बात मैं अपने परिवार से, या किसी से कह नहीं पाती थी, वह पहले ही समझ जाता था।
शुरू -शुरू में मैं ,उसे समझ नहीं पायी ,उस रिश्ते को पहचान नहीं पाई किन्तु मुझे लगता था ,कोई तो है ,जो हमेशा से मेरे संग है। संसार में जब लोगों से मिलना- जुलना हुआ, कुछ अच्छे लोग भी मिले, कुछ बुरे लोग भी मिले, कुछ मेरे जैसे भी थे। उन लोगों से दोस्ती भी हुई लेकिन उसकी और मेरी दोस्ती निराली थी। मैं अक्सर उससे एकांत में बातें करती, वो मेरे विचारों में समा जाता ,अपने आप को परखने का प्रयास करती। सही राह क्या है और क्या गलत है ? जब इस चक्रव्यूह में फंसा महसूस करती तो वही मेरे अंदर आत्मविश्वास जगा देता। कभी पुस्तकों के शब्दों के माध्यम से ,कभी साहस के बल पर ,मेरा आत्मविश्वास मुझमें जगाता।
मैंने उसे खोजने का प्रयास भी किया किन्तु मुझे वो कहीं भी दिखलाई तो नहीं दिया ,अंदर से आवाज़ आई ,पगली ! मैं तुझमें ही तो हूँ ,अपने अंदर झांक तुझे मिल जाऊंगा। जब भी कोई अच्छा कार्य मुझसे हो जाता ,तो वो मेरी ही मुस्कान में मुझे दिखलाई दे जाता ,लगता वो है ,कोई उसे 'परमात्मा 'कहता तो कोई उसे 'ईश्वर 'के नाम से जानने का प्रयास करता किन्तु मुझे उसमें मेरा 'हमसफ़र' भी और एक' अनोखा मित्र' नजर आता। दिखता नहीं ,फिर भी थामे हुए है ,मेरा हाथ !
जो मेरे ही अंदर स्थित है ,मेरे साथ है ,सुख -दुःख में साथ रहता। लगता जो भी मैं कर्म कर रही हूँ ,वो हमेशा से ही उसका साक्षी रहा है। कभी -कभी परेशान होती तो किताबों की किसी लाइन में नजर आता जो मेरे प्रश्नों का जबाब होता। उसका और मेरा यह सिलसिला बहुत पुराना है ,हमारी दोस्ती किसी को दिखलाई नहीं देती किन्तु ये ''अनोखी दोस्ती ''वो आज भी निभा रहा है। जब लिखने बैठती हूँ ,लगता है ,वो मुझे देख रहा है ,समझा रहा है ,कभी -कभी लगता विचार भी तो वही परोस रहा है। मेरा भी उससे बहुत लगाव हो गया है ,उस पर विश्वास है वो कभी गलत होने ही नहीं देगा। उसकी और मेरी दोस्ती अटूट है ,अद्भुत है, मेरा मित्र ! साथ रहकर भी टोकता नहीं ,दिखता नहीं ,मार्गदर्शन करता है ,उसका कोई नाम नहीं फिर भी मैं उसका कहा मान आगे बढ़ जाती हूँ।