Bachapan

 '' बचपन'' कितना भोला, कितना मासूम और कितना प्यारा होता है ?' बचपन' मानव जीवन की पहली अवस्था होती है, जिससे वह इस संसार में प्रवेश करता है जब इंसान का जन्म होता है तो वह एक अबोध बालक के रूप में इस संसार में आता है। इस अनोखे संसार में आकर, इस दुनिया से परिचित होता है। जो लोग उसे इस दुनिया में लाते हैं, उन्हें माता-पिता का दर्जा दिया जाता है। कहने को तो सब यही कहते हैं- कि जो भी कर रहा है, भगवान कर रहा है किंतु उसने माता-पिता को' नवजीवन' को इस संसार में लाने का माध्यम चुना गया है। बचपन कितना मासूम होता है ?एक कच्ची मिट्टी के समान जो धीरे-धीरे जीवन रूपी भट्टी की अग्नि में तपकर वह' मानव' के रूप में परिवर्तित होता है। 


जब जीव ' बाल रूप' को धारण करता है, तो किसी को वह मासूम, भोला, तो किसी को उसमें कान्हा नजर आता है। बचपन जीवन की अनेक परेशानियों से अनजान, अपने उम्र के पढ़ाव को हँसते -खेलते तय करता है। बालपन में, बच्चा माता-पिता पर आश्रित रहता है,उनकी सुरक्षा में धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है और रिश्तों से परिचित होता है उनको समझने लगता है। उसे पहचान होती है -कौन अपना है, कौन पराया है ? माता-पिता अपने अनुभवों के आधार पर उसको जीवन में मिलने वाले गलत इंसानों से,ग़लत कर्मों से बचने के लिए, उसे समझाते हैं ,उन्हें ड़र रहता है कि कहीं वह किसी गलत व्यक्ति के हाथ में ना पड़ जाए। उसकी सुरक्षा का दायित्व अपने ऊपर समझते हैं क्योंकि वह उनका लहू है।

जिस परिवार में उसका जन्म होता है,उसमें उसे माता-पिता के अलावा, दादी-दादा , बुआ, चाचा- चाची , और ताई जैसे रिश्तों से परिचय होता है।  दादी -बाबा के अधिक करीब रहता है क्योंकि वे बढ़ती उम्र में उस बच्चे के साथ बच्चों  जैसा व्यवहार करते हैं। उनका बचपन फिर से लौट आता है। उस बालक को  सुंदर राजकुमारी की, बहादुर राजकुमार की कहानी सुनाते हैं जिससे उसकी कल्पना शक्ति का विस्तार होता है। 

यह बचपन, वह बचपन है जब वह बच्चा किसी परिवार में पैदा होता है, किंतु कुछ बचपन ऐसे होते हैं, जिनको सुनने और समझने वाला कोई नहीं होता, वे इस अनजान दुनिया में भटक जाते हैं या भटकते रहते हैं। एक ऐसा बचपन जिसका नाम होता है गरीब ! उसको' गरीब बचपन' नाम देना उचित रहेगा , जो ऐसे परिवार में पैदा होता है , जहां पर आर्थिक परेशानियां हमेशा मुँह बाए खड़ी रहती है। यह बचपन आरंभ से ही अभाव और परेशानियों से जूझता है। उसकी मासूमियत, उसका भोलापन, सब गरीबी  की भेंट चढ़ जाते हैं। उसे कोई कहानी तो  क्या सुनाएगा ? उसकी मां को, उसे समय पर रोटी देने का भी समय नहीं मिलता रोटी मिली भी तो, वह भी रूखी सूखी ! वह बचपन सड़क के किनारे या झुग्गी झोपड़िया में पल रहा होता हैं। खेलने के लिए खिलौने नहीं होते, वह धूल- मिट्टी में, खेल कूद कर बड़ा होता है।  

एक ऐसा बचपन, जिसकी कोई पहचान नहीं, न चाहते हुए भी, वह संसार में आ जाता है। उस बचपन की किसी को आवश्यकता ही नहीं है। उसके पास कोई 'सुरक्षा कवच ' के रूप में परिवार नहीं है, रिश्तो को नहीं जान पाता है ,न समझ पाता है। किसी की दया पर पल रहा होता है,'' नाजायज़ बचपन !'' इसका न कोई घर होता है, और न ही परिवार अपने जीवन यापन के लिए, अपने को जिंदा रखने के लिए , वह बचपन से ही संघर्ष करता है या वह किसी अनाथ आश्रम में पल रहा होता है ''अनाथ बचपन !' न जाने कौन उसके माता-पिता थे, वह स्वयं भी नहीं जानता। जब उसने इस दुनिया में आंख खोली, तो अपने आपको, कई लोगों से घिरा हुआ पाया। अभी उसे दुनिया को समझने की समझ भी नहीं आई किंतु उसकी पेट की आग को बुझाने के लिए, उसे कमाना भी है या भीख मांगना पड़ता है। वह भी बचपन है ''संघर्ष भरा बचपन !'

 उस बचपन को उसके माता-पिता की समझ नहीं, कहने को इस दुनिया में उसका कोई नहीं ,फिर भी जीवन जी रहा है। वह स्वयं ही दुनिया में रहकर दुनिया के लोगों को जानने और समझने लगता है और वह ''बचपन,'' उम्र से पहले ही बड़ा हो जाता है। 

यह बचपन भी ,दोस्तों संग मस्ती करता है , वह भी क्रिकेट खेलता है, किसी पुरानी थपकी से, या किसी पुराने फट्टे से, किसी की  पुरानी गेंद से, या फिर जुगाड़ से बनाई गई कतरनों की गेंद से ,खेल का आनंद लेता है। वह भी खेलना चाहता है कल्पना करता है लेकिन उसका बचपन'' जुगाड़ करके'' अपनी कल्पनाओं को अंजाम देता है। साइकिल के पुराने पहिए से ही खेलने लगता है। अमीर बच्चों के फेंके गए खिलौने को संजोकर खुश हो लेता है और उनमें ही जिंदगी ढूंढता है। उसकी भी खूबसूरत यादें उसके साथ रह जाती है,बचपन से ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है। कई बार, बहुत सारे गम भी उसे यही बचपन देकर जाता हैं। उसकी कोई पाठशाला तो नहीं होती किन्तु जिंदगी हर पल उसे एक नया सबक़ सिखलाती है। कई बार ,अपने कटु अनुभवों का लाभ उठा जाता है तो कई बार उसके वे अनुभव उसके लिए नासूर बन जाते हैं।  तमाम उम्र वह उन्हें सोच कर, दुखी होता है, और कई बार तो अपने इस जीवन पर ही लानत भेजता है। वो दर्द भरा 'बचपन 'या तो उसे उठा देता है या फिर गिरा देता है। 

''बचपन'' तो मासूम ही था,भोला था ,अबोध !बढ़ती उम्र और ज़िंदगी ने उसे क्या से क्या बना दिया ? 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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