उठो , पथिक ! क्यों क्लांत हुए ,थक गए ?
भानु ! नवजीवन,नवीन सवेरा लेकर आया है।
पथ पर हो अग्रसर, अब आगे बढ़ते जाना है।
नई सुबह की उजास से पथ प्रशस्त करना है।
साहस का दामन थाम, ग़म की कालिख़ जाएगी।
तेरे साहस के आगे,दुःख की अंधियारी छंट जाएगी।
मंज़िल पर पैर जमाएंगे, विजय पताका लहरायेगी।
उठ ,देख मुसाफिर ! उमंगों भरी नई सुबह आई है।
पंछियों के कलरव ने ,नवीन प्रीत की धुन सुनाई है।
कूकती कोयल,आम्रमंजरी पर अलि की पंक्ति छाई है।
प्रातःकाल की बेला सी , जीवन में उमंगें होंगी।
कोलाहल दूर होगा ,जब मौन में भी वाणी होगी।
अंधकार अज्ञान का दूर होगा ,जब ज्ञान की दृष्टि होगी।
नवीन सूरज निकलेगा ,जब नई सुनहरी सुबह आएगी।
जीवन सी मडराती तितली ,जब' नीलभ' राग सुनाएगी।
मधु सी जीवन में मिठास होगी, सपनों की सुबह आयेगी।