फूल तो फूल होता है, वह खिलता जंगल में तो क्या ?
अपनी महक सुंदरता से ,''जंगल में भी मंगल' करता।
जंगली पुष्प,रहता खिलता परवाह उसकी ईश्वर करता।
तूफ़ाँ हो या फिर बरसात ,जीवन उसका संघर्ष करता।
खुला गगन उसका घर ,न ही, उसका कोई माली है।
क्या कलाकारी की ईश्वर ने ?ये उसकी अपनी संतान है।
कहने को, जंगली पुष्प ,नहीं शोभा ,किसी उपवन की।
बन जाता औषधि !जो परखे, जाने, जिसने पहचान की।
जंगली फूल सहता सब, उपवन और माली से अनजान !
न की किसी ने खाद -पानी, निगरानी ,ये गुणों की खान।
हर हाल में बढ़ता, खिलता, पत्थर हो या फिर हो मैदान !
न चढ़ता कभी ईश्वर पर ,जंगली पुष्प कह करते अपमान।