Jangali phool

 फूल तो फूल होता है, वह खिलता जंगल में तो क्या ? 

अपनी महक सुंदरता से ,''जंगल में भी मंगल' करता।

जंगली पुष्प,रहता खिलता परवाह उसकी ईश्वर करता।

तूफ़ाँ हो या फिर बरसात ,जीवन उसका संघर्ष करता।

  

खुला गगन उसका घर ,न ही, उसका कोई माली है।

क्या कलाकारी की ईश्वर ने ?ये उसकी अपनी संतान है।  

कहने को, जंगली पुष्प ,नहीं शोभा ,किसी उपवन की।

 बन जाता औषधि !जो परखे, जाने, जिसने पहचान की। 



जंगली फूल सहता सब, उपवन और माली से अनजान ! 

न की किसी ने खाद -पानी, निगरानी ,ये गुणों की खान।

हर हाल में बढ़ता, खिलता, पत्थर हो या फिर हो मैदान !

 न चढ़ता कभी ईश्वर पर ,जंगली पुष्प कह करते अपमान।  

   


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post