जब नितिन को ,रोहित ने बताया कि इस कॉलिज में दो हत्याएं हुई हैं किन्तु पुलिस इस हत्याओं को ,उन बाहर हुई लड़कियों की हत्याओं से जोड़कर देख रही है ,तो नितिन एकदम से चौंक गया और बोला -क्या ?
उसकी ऐसी हरकत देखकर ,सुमित ने पूछा -तू क्यों परेशान है ? क्या तू उन हत्याओं के विषय में कुछ जानता है।
नहीं ,नहीं तो.... नितिन थोड़ा हकलाया।मैंने सुना तो था ,कि कुछ लड़कियों को बड़ी दरिंदगी से किसी ने मार डाला किन्तु इस सबमें कविता के केस से क्या मतलब ?
उसके भी तो टुकड़े मिले हैं ,कोई तो है, जो लड़कियों के ज़िस्म से खेलता है और बड़ी बेरहमी से मार डालता है ,अच्छा एक बात बताओ !हम लोग तो उस पार्टी से आ गए थे किन्तु तुम रातभर कहाँ रहे ? कहीं तुम ही तो कविता। .....
चुप रहो !नितिन जोर से चिल्लाया ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,मैंने कविता के साथ कुछ नहीं किया।
तुम चिल्ला क्यों रहे हो ? हम तो बस यही जानना चाहते थे कि उस रात्रि तुम कहाँ थे ?क्योंकि कविता भी हॉस्टल में नहीं आई थी। क्या तुम दोनों साथ में थे ?और ये सवाल हम ही नहीं, पुलिस भी जानना चाहेगी और यदि कविता तुम्हारे साथ थी तो उसकी मौत कैसे हुई ? सीधा -सीधा शक़ तुम पर ही जाता है।
मैं तो नशे में था ,मुझे लगता है ,कविता मेरे साथ तो थी किन्तु वह मेरे साथ कितनी देर तक रही ? मुझे कुछ भी याद नहीं।
नशा करना तो तुम्हारा काम ही है, किन्तु हत्या !तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
मैं हत्या कैसे कर सकता हूँ ?जब मैं उठा तो होटल में ही सोया हुआ था और रही बात इस नशे की ,ये लत भी तो तुम लोगों के कारण ही लगी। अब तो मुझे दुःख होता है ,मैं पहले ही ठीक था।
ये तो अपना -अपना निर्णय है , तुम हमें सुधार न सके किन्तु हमने तुम्हें अपने जैसा बना लिया किन्तु इसमें भी निर्णय तुम्हारा अपना था कहते हुए रोहित हंसने लगा।
अचानक ही सुमित ने पूछा - तब वो किसके साथ थी ?हमें तो लगता था, वो तुमसे प्रेम करती है ,तुम्हारे साथ ही होगी।
मुझे लगता है ,यह सब वही कर रहा है वो मुझे बर्बाद कर देना चाहता है ,नितिन परेशान होते हुए बोला।
तुम किसकी बात कर रहे हो ?अचानक ही वे दोनों उठ खड़े हुए।
वही, जो मुझे उस'' मिटटी के घर'' में मिला था ,उदास स्वर में नितिन बोला।
कौन है ,वो !क्या तुम उसे जानते हो ? आश्चर्य से दोनों दोस्तों ने पूछा
नहीं, मैं उसे जानता तो नहीं हूं, किंतु तुम्हें यह बात मैं पहले भी बता चुका हूं, वह मुझे उसी घर में मिला था हवन कर रहा था न जाने, उसने ऐसा क्या किया? जब भी मुझे कोई घंटी का स्वर सुनाई देता है तो मुझे कुछ भी याद नहीं रहता मुझे कोई भी परेशानी होती तो मैं तुम लोगों को बताता किंतु मुझे लग रहा है कि अवश्य ही मेरे साथ, कुछ गलत तो हो रहा है लेकिन मैं कह नहीं सकता कि वह क्या है ?
रात्रि को जब तुम, हॉस्टल से बाहर जाते हो तो क्या तुम्हें कुछ भी पता नहीं रहता ?
मुझे तो यही पता नहीं है, कि मैं कब हॉस्टल से बाहर जाता हूं और क्यों जाता हूं? उसकी बात सुनकर दोनों दोस्त आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं अभी भी उन्हें नितिन की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्हें लग रहा था- यह अपने बचाव के लिए, ऐसा कह रहा है। जब वे लोग उसका पीछा करते हुए, वहां गए थे तो उन्होंने वहां किसी को नहीं देखा बल्कि यही उन पर घातक प्रहार करता है। ऐसा कैसे हो सकता है ? यह हमारे साथ लड़ाई -झगड़ा भी करता है और इसे याद नहीं रहता, देखकर तो ऐसा नहीं लगता, कि ये अपने आप में नहीं रहता है। तुम कह रहे हो तो मान लेते हैं, किंतु इस बात पर पुलिस विश्वास नहीं करेगी। उन्हें प्रमाण की आवश्यकता होती है। वह प्रत्यक्ष पर विश्वास करती है, और दिखता यही है कि तुम कुछ न कुछ अवश्य करते हो। जो कुछ भी हो रहा है ,वो तुमसे ही जुड़ा है ,ऋचा की हत्या में भी तुम्हारा हाथ है या नहीं ,हम नहीं जानते क्योंकि उस रात्रि हम तीनो ने ही पी थी।
तभी अचानक से रोहित को एक उपाय सूझा और बोला -जब तुमने कुछ किया ही नहीं है, तो क्यों न पुलिस का ध्यान उसे और आकर्षित किया जाए पुलिस अपने आप ही उस व्यक्ति को ढूंढ लेगी लेकिन तुम क्या कहते हो ?
यह बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई? पुलिस का ध्यान उस और आकर्षित करना आवश्यक है, अवश्य ही वहां कोई ऐसा व्यक्ति रहता है, जो वहीं बैठे-बैठे अपने मनमर्जियां कर रहा है या करवा रहा है। मैंने ऐसे ही एक विद्या सुनी है'' सम्मोहन विद्या'' कहीं यह सम्मोहन तो नहीं है। वह सम्मोहन के माध्यम से, नितिन से यह पाप कर्म करवा रहा है।
वह करवा रहा है या यह कर रहा है, इससे क्या फर्क पड़ता है ? हत्याएं तो हो रही हैं इनके पीछे कातिल का मकसद क्या है ?यह तो उसको पकड़ने के पश्चात ही पता चलेगा। हमारी इस कहानी पर कोई विश्वास भी नहीं करेगा। अभी पुलिस अपनी तरीके से छानबीन कर रही है , अब उसका शिकंजा किसकी तरफ है , कौन उसके शिकंजे में फँसता है ?यह तो समय ही बताएगा या उनका पता चलेगा।
नितिन इतनी देर से शिवानी को फोन लगाये जा रहा था, लेकिन शिवानी ने फोन नहीं उठाया। वह शिवानी के प्रति चिंतित है। वह जानना चाहता है, कि शिवानी अपनी ससुराल में खुश तो है। वह फिर से फोन लगा ता है -उधर से आवाज आती है -हेेलो ! आप कौन बोल रहे हैं ?
जी मैं नितिन बोल रहा हूं, आप कौन ? यह तो शिवानी का नंबर है न......
मैं' शिवानी' का पति 'पारस' बोल रहा हूं , उसकी बात सुनकर नितिन बुरी तरह घबरा गया , उसे लगा पारस ने अवश्य ही, शिवानी को कुछ कर दिया है।उसका मन न जाने कैसी -कैसी कल्पनाएं करने लगा ? तब नितिन ने पूछा- शिवानी !कहां है ?
साले, साहब ! क्या अपनी बहन से ही बातें करेंगे ,क्या अपने जीजा से बात नहीं करेंगे ?
ऐसी बात तो नहीं है, बस ऐसे ही हाल-चाल पूछने के लिए फोन किया था ,वह क्या कर रही है ? अभी वह खाना बनाने में व्यस्त है। तुम कहो तो उससे तुम्हारी बात करा देता हूं या कुछ देर बाद फोन कर लेना।
जी, मैं कुछ देर बाद फोन कर लूँगा लेकिन मैं पूछना चाहता हूं- आप लोग कहीं घूमने नहीं गए।
अभी जाएंगे, ऑफिस में बहुत काम बाकी है।
आपको'' शिमला'' कैसा लगता है ?
कुछ देर वहां पर, चुप्पी रही, तब पारस बोला -अच्छा ही होगा , मैं तो कभी वहां गया ही नहीं, अबकी बार तुम्हारी दीदी को लेकर जाऊंगा। सुना है, अच्छा 'पहाड़ी स्थल' है।
क्या आप वहां कभी नहीं गए हैं ?
नहीं तो....... तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो ?