सरला तो जैसे किशोरीलाल जी की ही प्रतीक्षा कर रही थी ,उनके अंदर आते ही पूछा -शिखा कहाँ है ?उसे साथ लेकर नहीं आये।
किशोरीलाल जी ,कुछ देर चुप रहने के पश्चात बोले - वह तो आ रही थी, किंतु उनके यहां एक रस्म है, 'तेहरवीं' के पश्चात घर का कोई भी सदस्य बाहर नहीं जाता।
यह कौन सी प्रथा है ? भौंहे सिकोड़कर सरला ने पूछा।
उनके यहां ऐसी कोई प्रथा होती होगी, हर जगह का अपना -अपना चलन है। जानते तो वे भी थे, वह सब उन्होंने शिखा को न भेजने का बहाना बनाया है किंतु यदि सरला से ऐसे कहते तो वह परेशान हो जाती।सरला को सोचते देखकर बोले - चिंता की कोई बात नहीं है, इस बार नहीं तो उसे, अगली बार बुला लेंगे।
उनके जवाब से सरला संतुष्ट हुई और पूछा - हमारी बेटी कैसी है ? वह सुख से तो रह रही है।
हां -हां, उसे क्या परेशानी होगी ?पैसे वाले लोग हैं ,खानदानी लोग हैं, हमारी बेटी के लिए अलग से एक नौकरानी रखी हुई है ताकि उसे किसी भी बात की परेशानी न हो।
यह बात सुनकर सरला मन ही मन प्रसन्न हुई और बोली -कोई बात नहीं, कुछ दिनों के पश्चात या किसी त्योे हार पर बिटिया को बुला लेंगे। सरला ने प्रत्यक्ष सरपंच जी को दिखलाना चाहा ,जैसे वो उनकी बात से संन्तुष्ट है और रसोईघर में चाय बनाने चली गयी। मन में अजीब सी बेचैनी हो रही थी ,जब वह चाय बनाकर बाहर आई ,तो उससे रुका नहीं गया और सरपंच जी को चाय देते हुए बोली - आपसे एक बात पूछूं ,उनके जबाब की प्रतीक्षा में ,किशोरीलाल जी की तरफ देखती रही।
किशोरीलाल जी, अपने को व्यस्त दिखला रहे थे किन्तु अंदर ही अंदर घबराकर सोच रहे थे,न जाने, क्या पूछ बैठे ? वे भी उन लोगों के व्यवहार से क्षुब्ध थे। अपने मन की बेचैनी को छुपाने का प्रयास कर रहे थे ,जब सरला ने एक बात पूछने के लिए स्वीकृति मांगी ,तो चाय का घूंट भरते हुए बोले -पूछो !क्या पूछना चाहती हो ? मुझे पता है ,बेटी के विषय में ही जानना चाहती हो।
आप यह सब मेरा मन रखने के लिए ही कह रहें हैं ,न..... कहते हुए भावुक हो गयीं ,वो वहां कैसे खुश रह सकती है ?जो लड़की एक बेवा बनकर इस घर से विदा हुई है ,वो कैसे खुश रह सकती है ?कहते हुए रोने लगी।
किशोरीलाल जी समझ गए ,सरला मेरे जबाबों से संतुष्ट नहीं हुई है ,तब वे बोले -पता नहीं, उसकी किस्मत में क्या लिखा है ?सोच रहा था -उसे घर ले आऊंगा ,उसकी पढ़ाई पूरी करवाकर शहर भेज दूंगा ,वहीं किसी अच्छे लड़के से उसका विवाह भी करवा दूंगा किन्तु अब तो लगता है ,जैसे -हमारी ही बेटी पर, हमारा अधिकार नहीं रहा, कहते हुए उनके मन का दर्द भी उनकी आँखों में छलक आया।
मुझे लग ही रहा था, अवश्य ही कोई बात हुई है जो आप मुझसे नहीं बता रहे हैं।
तुम्हें क्या बताता ? तुम स्वयं परेशान हो जातीं , दुख के सिवा क्या मिलता ? देखने से तो लग रहा है, कि बेटी को वहां कोई कष्ट नहीं होगा किंतु यह भी कैसा सुख है ? जिसमें कोई हमदर्द नहीं, हमसफ़र नहीं ,किससे अपना सुख- दुख कहेगी ? हर बात अपने सास- ससुर से तो नहीं कह सकती। कल को ,अन्य बच्चों के विवाह भी होंगे ,इतनी लंबी उम्र पड़ी है, कभी तो उसे एहसास होगा। पति के साथ रहती, तो कभी शहर में कभी गांव में आती- जाती रहती, यूँ ही जीवन कट जाता है। तुमने उसे सफेद साड़ी में नहीं देखा ,मैंने देखा है। लग रहा था ,जैसे सभी रंग उससे मुख मोड़ गए हैं।
किससे अपने मन की बात कहेगी। न जाने क्यों वे लोग ! उसे वहां रखने के लिए, एक तरीके से देखा जाए तो लगता है, जबरन ही उसे रखना चाहते हैं। इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य हो सकता है ? कुछ समझ नहीं आ रहा।
कल को उनके अन्य बेटों का विवाह भी होगा , और जब हमारी बेटी, उन्हें अपनी पत्नियों के साथ हंसते -खिलखिलाते देखेगी। तब उस पर क्या बीतेगी ?कहने वाले तो यह भी कह सकते हैं ,ये तो नासमझ ,नादान थी ,माता -पिता तो समझदार थे। सब एक जैसे होते भी नहीं , कल को वे उसे ताने भी सुना सकते हैं तब क्या होगा ?
हमारी बेटी तो घुट- घुटकर मर जाएगी, वो तो ऐसी है ,अपना दुख हमसे भी नहीं कहेगी।
बात यही नहीं है, बात यह है, हम भी कब तक जिंदा रहेंगे ?
कोई बात नहीं, अबकी बार उन्होंने बहाना बना लिया, अगली बार क्या बहाना बनाएंगे ?अबकी बार तो, उसे बुला ही लेंगे ढृढ़ निश्चय से वो बोलीं। फिर चाहे कुछ भी हो जाए अपनी शिखा को जाने नहीं देंगे। दोनों के अंदर, विश्वास की एक सी लहर बह रही थी किंतु आंखों में एक उम्मीद भी थी कि वह बेटी को वापस अपने घर लायेंगे और उसके जीवन को फिर से सँवार देंगे। उसे इस तरह तमाम उम्र ''बेवा ''के रूप में नहीं रहने देंगे।
उस हवेली में एक आंगन है, छत पर खड़े होकर, उस आंगन के प्रत्येक कमरे पर दृष्टि जाती है। पीछे की तरफ जाने से, आसपास का गांव भी दिख जाता है। दमयंती जी , शिखा से ज्यादा बात नहीं करती थीं और जब भी बात करती थीं , बड़े ही प्यार से , उसे अपनी बातें समझातीं। कभी-कभी तो शिखा को भी भ्रम हो जाता, और उसे लगता - इनकी इतनी मिठास के पीछे की सच्चाई कुछ और है। सोचने पर मजबूर हो जाती ,इनका असली रूप क्या है ? जब से मैं यहां आई हूं, एक बार भी, यह मुझ पर नाराज नहीं हुईं। इनका बेटा चला गया कभी अपने बेटे से संबंधित बातें नहीं की।
शिखा भी, अब घर में घूमने लगी थी, किंतु घर के बड़ों के सामने नहीं आती थी , दमयंती ने ही मना किया था। तेजस के चार भाई और थे, उनसे भी कभी ज्यादा बात नहीं हुई। जबकि दमयंती जी कहती थीं -कम से कम इनसे बात किया करो !इनसे घुलो -मिलो ! ये तेजस के भाई ही तो हैं,तुम्हारे तो देवर लगते हैं , किन्तु उनके सामने भी शिखा शांत और सहमी सी रहती। यहां आकर उसे पता चला , तेजस से बड़े दो भाई हैं ,गर्वित और गौरव !
शिखा ने बंदिनी से पूछा - ये मेरे देवर कैसे हुए ? कायदे से देखा जाए तो , मेरे जेठ लगेंगे।
क्या इनका विवाह नहीं हुआ ?