Shaitani mann [part 96]

कुछ लड़के नितिन को एक कमरे में बंद कर देते हैं, नितिन वहां से निकलने का बहुत प्रयास करता है किंतु असफल रहता है। वह लड़के  उसे मारना भी नहीं चाहते थे, किंतु वे  नहीं चाहते थे, कि उनका भाई और  दोस्त' पारस' के विवाह में कोई भी अड़चन आए। नितिन के कारण उन्हें लग रहा था, यह परेशानी खड़ी कर सकता है इसलिए उन्होंने उसे एक कमरे में बंद कर दिया। 

कमरे में  बंद होने के पश्चात, नितिन को अब अपने विषय में सोचने का मौका मिल रहा था। उस एकांत में अपने आपको टटोल रहा था। कहते हैं ,न..... 'इंसान कितने भी पाप करे ?एक न एक दिन तो उसकी आत्मा उसे कचोटती ही है ,जब आत्मा पर पाप का बोझ बहुत अधिक बढ़ जाता है। '' वह सोच रहा था, वह जिंदगी में कहां से कहां आ गया ? जिन्हें आज वह अपना दोस्त समझता है , कभी उनसे दूर भागता था , वे लोग [रोहित और सुमित ]उसे अच्छे नहीं लगते थे और आज मैं भी उनके रंग में रंग गया हूँ बल्कि उनसे कहीं आगे निकल गया हूँ। मैंने इन वर्षों में क्या -क्या नहीं किया ?


प्यार किया, धोखा खाया। अपनी इच्छा से जीता हूं ,एक ऐसी जिंदगी जी रहा हूं , जिस पर मुझे तो क्या मेरे माता-पिता को भी गर्व नहीं होगा। जब उन्हें मेरी वास्तविकता का पता चलेगा, तो उन पर क्या बीतेगी ? शिवानी जो आज किसी बहरूपिये  के चंगुल में फंस रही है, और मैं उसे उस कुएं में से गिरने से बचा भी नहीं सकता।इतना सब सोचते हुए भी ,वह रस्सी खोलने का प्रयास जारी रखता है। अपने हाथों की रस्सी पर जोर डालते हुए, उसे झटके से खोलने का प्रयास करता है। सालों ने ! कितनी कसकर रस्सी बाँधी है ?

फिर से उठकर इधर -उधर टहलने लगा , मन ही मन सोच कर बेचैन हो उठा, अब तो उसके फेरे हो रहे होंगे, विवाह संपन्न हो जाएगा , यदि मैं यहां से छूट भी जाता हूं, तो क्या होगा ? विवाह तो हो ही जाएगा। ये  लोग, इतने सारे थे तभी हेकड़ी दिखा रहे थे। मेरे दोस्तों में से तो, किसी को पता ही नहीं है , कि मैं कहां पर हूं ?उनसे कहकर  आया था -'बहन के विवाह में जा रहा हूँ। मुझे ऐसा पता होता ,तो एक -दो को साथ लेकर आता  इनकी सारी' दादागिरी' निकाल देता किंतु इस सबसे क्या होगा ?अपनी विवशता पर उसे क्रोध आ रहा था। सभी के सब बदमाश ही है ,चोर ! झूठे !साले ! धोखा देकर विवाह कर रहे हैं,वह झुंझलाया।  

दूसरों को देखने से पहले, उनके विषय में सोचने से पहले,अपने अंदर तो झांक कर देख ! वे लड़कियां भी तो ऐसी ही होगीं , जिन्हें तूने काट डाला उसके अंदर से आवाज आई। आज वह अपने अंदर की आवाज सुन पा रहा था, क्योंकि आज उसकी बहन भी, कुछ इसी तरह की स्थिति में फंसी हुई थी , पारस के विषय में उसे सम्पूर्ण जानकारी भी नहीं है फिर वही गलत है या उसको फंसाया गया था।

 किंतु तूने तो उस लड़की को फसाया था , जो तुझे पहाड़ियों पर मिली थी , कितनी सीधी -सादी, सच्ची लड़की लग रही थी उसने तुझ पर विश्वास भी किया था। तू पंद्रह  दिनों तक उसके साथ मौज -मस्ती करता रहा। तू तो सौम्या का गम भुलाने गया था। तू, वहां गम भुला  रहा था, या मौज मस्ती कर रहा था। तुझे भी तो कितना गुरूर हो गया था ? तूने उसे प्यार के जाल में फंसाया, उसे शादी का झांसा दिया और फिर क्या किया ?

नहीं ,मैंने उसे कोई धोखा नहीं दिया ,क्या मैंने उससे कहा था ,मुझसे प्यार करे। 

तब सौम्या ने इंकार किया तो तुझे क्यों बुरा लगा ?क्या सौम्या ने तुझसे कहा था कि तू उससे प्यार करे। 

क्या करता ? मुझे सौम्या पर गुस्सा आ रहा था। पूरे कॉलेज में, सबको लगता था सौम्या मुझे पसंद करती है किंतु क्या हुआ ? उसने मुझे मना कर दिया, मना तो किया ही, किंतु उसने मेरी उम्मीद भी तोड़ दी, उस दीपक से रिश्ता करके , यदि मुझे वह दीपक मिल जाता या दिख जाता, तो मैं उसे भी मार डालता।क्या मैं ,इतना बुरा हूँ ,उसने मेरे जन्मदिन पर मुझे बधाई भी नहीं दी और चली गयी। उसे अपने आप पर बहुत ही घमंड़ था।

 मैं, उसका घमंड तोडना चाहता था, किन्तु सौम्या के प्रति कठोर न हो सका और अन्य लड़कियों पर मेरा कहर टूट गया। सुलेखा ! विवाह के लिए जिद करने लगी, मैं अपने गम को भुलाना चाहता था किंतु वह मेरा दर्द बढा रही थी , मेरे साथ जबरदस्ती विवाह करना चाहती थी। मुझे झूठा साबित कर रही थी। हां, उसके लिए मैं, झूठा था, मुझे उसमें सौम्या नजर आने लगी और सौम्या का वह इनकार,और फिर....... 

एक बार तो मन में आया, क्यों न ,मैं भी इससे, रिश्ता कर लूँ , मैं भी इसे अंगूठी पहना दूं। मैं भी, सौम्या को इसी तरह जलाऊंगा, जैसे मैं जल रहा हूँ। तब उसे आभास होगा, कि किसी के प्रेम को ठुकराने पर कैसा दर्द होता है ?

 जब वह मुझसे प्रेम करती ही नहीं थी , तब वह मेरे करीब क्यों आई ? उसे क्या आवश्यकता थी ?मेरे इतना करीब आने की। कॉलिज में और लड़के भी तो थे।  मुझे लगता था ,वह मुझे पसंद करती है, सोच- सोच कर उसे क्रोध आने लगा उसकी आंखों के डोरे लाल हो गए, उनसे आंसू बहने लगे। इतनी देर से हाथों को इधर-उधर कर रहा था, रस्सी ढीली हो गई। कुछ देर के पश्चात खुल भी गई। हाथ मुक्त होते ही उसने, अपने मुंह से भी कपड़ा निकाल लिया और उत्साहित होते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ा ,बहुत देर तक दरवाजा पीटता रहा। लात मारकर खोलने का प्रयास किया लेकिन वह दरवाजा नहीं खुला ,न ही कोई उस दरवाजे को खोलने आया। जिस तरह  वह रस्सी से मुक्त होने पर प्रसन्न हुआ था,वह प्रसन्नता ज्यादा देर नहीं टिकी वह फिर से उदास हो गया। समझ नहीं आ रहा था, क्या करें ? पैरों को पटका सामान को फेंका लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, वह थक चुका था। तब वह  एक लकड़ी के फट्टे  पर लेट गया ,लेटते , तुरंत ही उसे नींद आ गई। 

नितिन के पापा, आपने कहीं नितिन को देखा, दो-तीन घंटे आराम करके, उसकी मम्मी वापस उसी स्थान पर आ गई जहां पर लड़की के फेरे हो रहे थे। वहीं पर नरेंद्र जी भी बैठे हुए थे। अभी तक कहीं नहीं दिखाई दिया। 

हो सकता है, घर चला गया हो वहां आराम कर रहा हो और इतनी रात में जाएगा भी कहां ? सुबह को ही मिलेगा। फेरे होने पर' बसोड़' है ,तब लड़के को टीका करते हैं ,मैं सोच रही थी ,नितिन भी अपने जीजा को टीका कर देता। 

तुम कर देना ,उसकी ज्यादा जरूरत नहीं ,पद्मिनी ने नरेंद्र जी को घूरा ,मानो कह रही हो, ये मौक़े रोज -रोज नहीं आते ,तब बात बनाते हुए बोले -आ गया तो कर देगा मुस्कुराकर बोले।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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