Gumshuda man

 मन न जाने ,कहां 'गुमशुदा' हो गया है ?

बहका -बहका है या थोड़ा बौरा गया है। 

हालत उसकी पर, मुझे ही क्या ?

''तरस'' किसी को आता नहीं। 

सपनों में है, या हकीकत में खो गया है। 



क्या खोया है ? किसी मल्लिका के ख्वाबों में,

जो अपने आपको ही भूल गया है। 

बावरा सा मदमस्त डोलता है, इधर-उधर,

कभी जमीन पर है तो कभी पहाड़ो पर गया है। 

पैर भले ही जमीन पर हों,नजर गगन पर,

लगता, वहीं खूबसूरत वादियों में खो गया है। 

इससे तो बचपन ही भला था,

चंचल , हंसता- खिलखिलाता  था। 

अब यह मन न जाने क्यों? गंभीर हो गया है। 

भटकता है, यहाँ -वहां , ढूंढ़ता है ,उद्देश्य !

लगता है मन, कहीं न कहीं नीरस हो गया है। 

जाना चाहता,उसकी गली ! भटकता है। 

न जाने कैसे ? ''बावरा ''सा हो गया है। 

''लक्ष्यहीन '' मन लगता नहीं ,कहीं  ,

अपने आप से ही ,अजनबी सा हो गया है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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