Shaitani mann [part 95]

नितिन को एक गंदे और पुराने कमरे में बंद करके, वे लोग बाहर निकल गए। तब नितिन बुरी तरह घबरा गया और उसने सोचा -इस तरह तो मैं, यहाँ से कभी नहीं निकल पाऊंगा और शिवानी का विवाह उस लड़के से हो जाएगा। जब तक  का सच्चाई का पता न चले, तब तक मैं इस तरह यहाँ बंद होकर नहीं बैठ सकता। वहां विवाह भी हो जाएगा , तब वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा -कोई है, कोई है , मुझे यहाँ से बाहर निकालो ! किन्तु नितिन की आवाज़  किसी ने नहीं सुनी।

 हां, इतना अवश्य था, उन जाते हुए लड़कों के कानों में, नितिन की आवाज अवश्य पड़ गई। तब उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने उसका मुंह खुला छोड़कर बहुत बड़ी गलती कर दी है। अरे यार !अचानक से सुबोध बोला -बहुत बड़ी गलती हो गयी। 


क्या हुआ ? सभी एक साथ बोले।

क्या तुम्हें कुछ सुनाई नहीं दिया ?वो, चिल्ला रहा है ,उसकी आवाज सुनकर कोई भी आ सकता है। 

हाँ, सही कहा ,हमें वापस चलना चाहिए ,पहले  उसका इंतजाम करते हैं। 

क्या हम लोग ये ठीक कर रहे हैं ?वो हमारी भाभी का रिश्तेदार है ,कुछ उल्टा -सीधा हो गया तो..... हम भाभी से क्या कहेंगे ?

जब की जब देखी जाएगी,अभी तो इसका मुँह बंद करना होगा ,हमसे ही चालाकी कर रहा था ,उसे पता तो चलना चाहिए कि हम कौन हैं ?अकड़ते हुए निर्मल बोला।

 तब वे लोग वापस आए ,तब नितिन को भी लगा, जैसे कोई उधर आ रहा है ,उसे लगा ,उसकी आवाज सुनकर उसकी सहायता के लिए कोई आया है ,वह और जोर से चिल्लाया, साथ ही सतर्क भी हो गया। उसे इतना अंदाजा नहीं था कि वे लोग ही वापस आ सकते हैं। जैसे ही ,उनमें से एक ने दरवाजा खोला ,नितिन एकदम से बाहर की तरफ भागा किन्तु तुरंत ही सुबोध ने नितिन को भागते देख, अपनी टांग अड़ा दी जिसके कारण नितिन लड़खड़ा गया और मुँह के बल नीचे गिरा।

तब निर्मल ने उसे संभाला और बोला -देखो ! हमारी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है ,हम बस इतना चाहते हैं ,हमारे भाई का विवाह अच्छे से हो जाये ,हमें कोई भी अड़ंगा नहीं चाहिए। नितिन के होंठ पर आये रक्त की बूंदों को पोंछते हुए बोला - हम तो रिश्तेदार बननेवाले हैं ,हमारी भला तुमसे क्या दुश्मनी ? तुम्हारी ज़्यादा होशियारी तुम्हें यहां ले आई। 

तब एक बोला  - तू इससे ज्यादा हमदर्दी मत जतला ,पवन ! तू  इसका मुंह बंद कर दे  !

भाई ! किससे  मुंह बंद करना है ? यहां तो कोई टेप भी नहीं है। 

तू भी क्या बेवकूफों वाली बात करता है ?यहां टेप कहाँ से आएगी ?किसी कपड़े से इसका मुँह बांध दे। 

जब तुम लोगों ने ,या तुम्हारे भाई या दोस्त ने कुछ गलत नहीं किया तो मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो ? ''साँच को आंच क्या ?''यदि विवाह के बाद पता चला ,तब क्या होगा ?मेरी बहन तुम्हारे उस भाई को छोड़ देगी। तभी तड़ाक !!से नितिन के गाल पर थप्पड़ आया। तभी एक कपड़ा लेकर आ जाता है और नितिन के मुंह पर बांधने का प्रयास करता है।

 देखो !यह तुम लोग ठीक नहीं कर रहे हो , कभी ना कभी तो मैं छूट ही जाऊंगा।

 जबकि जब देखी जाएगी और जिस दिन मैं छूट गया उस दिन तुम्हें नहीं छोडूंगा। 

तुझे छोड़ते तो हम आज भी नहीं लेकिन हम कोई खून -खराबा नहीं करना चाहते। तू तो शुक्र मना, तेरी बहन से विवाह तो हो रहा है, कहते हुए हंसने लगे और चले गए। नितिन की बात किसी ने भी नहीं सुनी।

 वह उस मंडप का ऐसा स्थान था वहां पर कोई जाने की सोच भी नहीं सकता था। नितिन  चारों तरफ कमरे में देखता है, एक तरफ की खिड़की खुली हुई थी। बाकी कमरे में, बचा-कुचा,  टूटा- फूटा सामान था। अब तो शांति लग रही थी, शायद कुछ लोग चले गए। यहाँ से तो कुछ भी पता नहीं चल रहा ,वहां क्या हो रहा है ?अब तो वह चिल्ला कर किसी को बुला भी नहीं सकता। वह खिड़की से झांकता है कि कोई तो इधर आता हुआ दिखलाई दे  किंतु सब अपने में व्यस्त थे, दिन भर के थके हुए भी थे ,अर्धरात्रि थी ,अलसाये हुए थे। नितिन के पैर तो खुले हुए थे, किंतु हाथ बंधे होने के कारण वह  कुछ भी नहीं कर पा रहा था। क्रोध में ,वहां रखे सामान पर उसने, अपने पैरों से प्रहार किया कोई लाभ नहीं है। कुछ देर तक वह इसी तरह कमरे में भटकता रहता है और बाहर निकलने का प्रयास करता है और सोचता है कि कोई तो इधर आ जाए। धीरे-धीरे मन  निराश होने लगा और एक जगह बैठ गया।

 मन ही मन सोच रहा था, यह क्या हो रहा है ? उधर शिवानी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।  ये इंसान [पारस ] उस लड़की का कातिल भी हो सकता है। न जाने किस उद्देश्य से, उस लड़की को लेकर आया था किंतु मैंने तो सौम्या के कारण, ध्यान ही नहीं दिया था। उस समय सौम्या मेरा प्यार थी, मेरे अंदर जीने की उमंगें बढ़ गई थीं।  मैं उसको लेकर, जीवन भर साथ निभाने के सपने देख रहा था किंतु मेरे साथ क्या हुआ ? सौम्या ने मुझसे इनकार कर दिया। 

निराशा से दीवार के सहारे बैठ गया , मुझ में ऐसी क्या कमी थी ? मैंने सुना था, लड़कियां पैसे की तरफ आकर्षित होती हैं किंतु मेरी पार्टियां , मेरा पैसा भी उससे' हां 'नहीं बुलवा सका। सब अपनी इच्छा से जिंदगी जीना चाहते हैं , मैं भी जिंदगी जीना चाहता था किंतु मुझे क्या मिला ? निराशा, अविश्वास ! कहीं लड़का, लड़की को धोखा देता है तो कहीं लड़की, लड़के को धोखा देती है।तभी उसके विचारों ने पलटा खाया , यह भी तो हो सकता है, उस लड़की ने ही, इसे धोखा दिया हो किंतु बिना बात किए , सच्चाई का कैसे मालूम पड़ेगा ?किन्तु इतना तो अवश्य है ,यह उस कांड में  शामिल अवश्य था ,आँखों को सिकोड़ते हुए सोच रहा था।  

सारी शराब उतर चुकी थी ,मन को विचारों ने घेर लिया। अब तो मैं कुछ कह भी नहीं सकता, क्या यह इन लोगों को इसीलिए साथ में लेकर आया है। यह पारस के दोस्त हैं या रिश्तेदार हैं, कभी-कभी गलत संगत भी, भारी नुकसान देती है। मेरे साथ क्या हो रहा है ? मैं भी तो यही कर रहा हूं।  पार्टियां करना, और...... सोचते- सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गए। क्या यह मेरे कर्मों फल है ? जो मेरी बहन को मिल रहा है , सगी बहन तो नहीं है, एकाएक मन से आवाज आई , तो क्या हुआ ? मानो तो, सब रिश्ते अपने हैं ना मानो तो कोई भी अपना नहीं। मेरा यह मन और मैं, क्या से क्या हो गए ? मुझसे  सौम्या ने ही प्यार नहीं किया तो क्या किसी ने भी नहीं किया ? आज उसे अपने अंदर झांकने का मौका मिल रहा था किन्तु कभी -कभी हालात ऐसे बदल जाते हैं ,आदमी ठीक से कुछ भी नहीं सोच पाता है। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post