Shaitani mann [part 94]

जिस लड़के' पारस' से, नितिन की मौसेरी बहन ''शिवानी 'का विवाह हो रहा है। नितिन ने उसे पिछले वर्ष , शिमला में देखा था। वह तो अपने गम में ही डूबा हुआ था किंतु जब अगले दिन, पुलिस ने जब होटल में प्रवेश किया, तब नितिन भी घबरा गया था। तब उसे पता चला, कि उस होटल में, जो लड़का है, उसकी गर्लफ्रेंड कहीं गायब हो गई है ? तब उसका ध्यान भी उस ओर गया था, इसीलिए वह चेहरा उसे जाना- पहचाना लग रहा था। इसका अर्थ है, यह वही' पारस' है जिसने अपनी गर्लफ्रेंड को गायब किया था और पुलिस को लग रहा था ,उसकी हत्या हुई है। यदि यह वही' पारस' है, तो शिवानी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी , मुझे उसके विषय में सबको बताना होगा।


 मन ही मन परेशान होकर सोच रहा था, क्या किया जाए ? एक बार शिवानी से बात तो कर ही सकता हूं।कल को ये न कहे ,मुझे पहले से सचेत नहीं किया। जब वह उन लड़कों से बचता हुआ मंच की तरफ बढ़ा,तो वहां शिवानी नहीं थी।  अब तक शिवानी भी, मंच से उठकर खाने के लिए आ गई थी। पारस और शिवानी एक दूसरे को खाना खिला रहे थे।

 भीड़ में, नितिन ने आगे बढ़ने का प्रयास किया, सोच रहा था -पहले पारस से ही, बात करके देखता हूं ,आज उसे बतला दूंगा ,मैं उसकी असलियत जानता हूँ , किंतु तभी किसी ने उसको, पीछे खींच दिया। इससे पहले कि वह किसी को देख पाता, वह व्यक्ति उसे लगभग खींचते  हुए एक स्थान पर ले गया। उसे इस तरह घसीटते देखकर एक व्यक्ति ने पूछा -अरे ! ये क्या कर रहे हो ?

कुछ नहीं अंकल !दोस्त है। नितिन चाहता तो शोर मचा सकता था ,कह सकता था -अंकल मुझे बचाइए ! किन्तु न जाने क्यों उसके दिमाग़ में यह  बात आई ही नहीं ,या फिर पूरी जानकारी से पहले विवाह में वह कोई हंगामा नहीं चाहता था। जब तक यह बात उसके दिमाग में आई कि उसे किसी की सहायता लेनी चाहिए तब तक वे उसे खींचकर टैंट की तरफ ले जा रहे थे।  नितिन थोड़ा सम्भला भी, तभी सभी ने एक साथ उसे खींचा और टैंट के पीछे ले गए। वे नितिन से बोले- तू हमसे झूठ बोल रहा था, तू यहाँ  उनकी रिश्तेदारी में से  है। तू हमसे झूठ क्यों बोल रहा था ?उन्होंने पूछा। 

जिससे तुम्हारे दोस्त का विवाह हो रहा है, वह मेरी बहन है, नितिन ने गुस्से से कहा। 

देखा ,मैंने पहले ही कहा था- कि ये झूठ बोल रहा है। मारो ,साले को !

तू गाली क्यों दे रहा है ?ये तो वास्तव में ही 'साला' है ,कहते हुए एक हंसने लगा।

तब तक एक लड़का बाहर से, एक रस्सी ले आया और सबने मिलकर नितिन को उस रस्सी से बांधना आरम्भ कर दिया और बोला -इसे किसी एकांत में शिफ्ट कर दो !एक बार विवाह हो गया तो देख लेंगे, यह क्या करता है ?

तुम लोग, क्या कर रहे हो ?तुम्हें पता होना चाहिए ,यह पारस का साला है , इसे छोड़ दो ! ये क्या अपनी बहन की ज़िंदगी बर्बाद करना चाहेगा ?वो तो हमारे यार से प्यार करती है ,व्यंग्य से बोला।  

चुपकर ! यदि इसे छोड़ दिया तो ,कहीं ऐसा न हो ये कोई हंगामा कर दे। बताओ !अब इसका क्या करें ?

तुम लोग मेरे साथ ये अच्छा नहीं कर रहे हो ,देख लेना, इसका अंजाम सही नहीं होगा। तुम लोग मुझे अभी जानते नहीं हो ,मैं अब तक अपनी बहन के चक्कर में शांत था क्योकि मैं ठीक से तुम्हारे उस 'पारस' को पहचान नहीं पाया था। 

पहचान भी लेगा तो क्या कर लेगा ? एक लड़का अकड़ते हुए आगे आया। 

अच्छा, क्या तुम सभी उसके मित्र हो ?

हैं ,नहीं भी हैं तुझे उससे क्या ?

मित्र तो, मित्रों को सही राह दिखाते हैं। 

हमें मालूम है ,क्या सही है ,क्या गलत है ?उनमे से एक लापरवाही से बोला। 

अच्छा मुझे एक बात तो बता सकते हो ,वो लड़की कौन थी ?जिसकी हत्या का आरोप तुम्हारे भाई ,दोस्त पर लगा। 

तुझे इससे क्या ?हम इतना जानते हैं ,उनका विवाह हो रहा है और हमें शांति से निकल जाना है। जो भी हो रहा है ,वो तुम्हारी बहन की क़िस्मत !किन्तु तुम्हें विवाह से पहले नहीं छोड़ेंगे। 

तभी,एक लड़का आया और बोला -भइया !मैंने देखा है ,एक कमरा पीछे की तरफ है और खाली है ,इसे वहीं बंद कर दो। यहाँ तो कोई न कोई तो देख ही लेगा।

तुम ठीक कह रहे हो ,कहते हुए उसे पकड़कर वो आगे बढ़े ,नितिन अपने हाथों की रस्सी खोलने का प्रयास कर रहा था किन्तु अभी तक सफल नहीं हो पा रहा था क्योंकि वे पूरी तरह से सचेत थे। हाथ बांधने के साथ -साथ उसकी बाजुएं पकड़ी हुईं थीं क्योंकि मौका मिलते ही वह भाग सकता था। 

दूसरी तरफ नितिन की मम्मी, विवाह में थक गई थीं  और वह थोड़ा आराम करना चाहती थीं किंतु उन्हें नितिन कहीं भी दिखलाई नहीं दे रहा था। उन्होंने अपने पति नरेंद्र जी के पास जाकर पूछा - क्या आपने नितिन को देखा है ?

मुझे तो कहीं नहीं दिखाई दिया, शादी विवाह में इधर-उधर ही होगा। 

अरे, अब तो काफी समय हो गया है, रात्रि का 1:00 रहा है। पता नहीं ,उसने खाना भी खाया है या नहीं। 

वह बच्चा थोड़े ही है, अब बड़ा हो गया है, इंजीनियर बनने वाला है , तुम उसकी ज्यादा चिंता मत करो ! वह अपनी जिम्मेदारियां समझता है। या तो यहीं कहीं होगा, हो सकता है, घर चला गया हो या कहीं पड़कर सो रहा होगा , नरेंद्र जी लापरवाही से बोले -तुम क्यों इतनी परेशान हो ?

मैं भी तो थक गई हूं , सोच रही थी, घर जाकर थोड़ा आराम कर लूँ फिर सोचा -लड़की के फेरे होने वाले हैं मैं,चली गई तो इसकी मौसी क्या कहेगी ?

यदि तुम्हें घर जाकर आराम करना है तो मैं तुम्हें ले चलता हूं। थोड़ा सा आराम करके आ जाना, पहले यह निर्णय कर लो, तुम्हें जाना है या नहीं। 

मैं सोचती हूं यही कोई जगह खाली हो, तो वहीं  लेट जाउंगी , वरना आने जाने में ही, बहुत समय बर्बाद हो जाएगा। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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