आज तक जीवन के रहस्य को ही, कोई समझ नहीं पाया है, हमारे इस जीवन का क्या उद्देश्य है ? हम क्या चाहते हैं ?इस जीवन की उत्तपत्ति क्यों हुई ? जीवन की खोज करते-करते, इंसान मृत्यु के करीब पहुंच जाता है और वह 'जीवन का रहस्य ' ही नहीं समझ पाता। इसी प्रकार,''प्रेम भी रहस्य'' बना हुआ है। प्रेम कब , किससे और कैसे हो जाए ? आज तक इसको कोई नहीं समझ पाया है। प्रेम के कई रूप हैं -''प्रेम'' बालपन में माँ और पिता से होता है। ' प्रेम'थोड़ा बड़े होने पर अपने सखा से होता है,' प्रेम' अपनी पत्नी से होता है। प्रेम अपने बहन -भाइयों से भी होता है और सबसे श्रेष्ठ माना जाने वाला प्रेम -अपने ''प्रभु ''से होता है। यह प्रेम जो आध्यात्मिकता की तरफ इस जीवन को अग्रसर करता है।
'' सांसारिक प्रेम,'' में आदमी उलझ कर रह जाता है। वह समझ ही नहीं पाता है कि क्या सही है, क्या गलत है ? कई बार वह किसी गलत आदमी से ही प्रेम कर बैठता है किंतु प्रेम तो प्रेम है , जिससे भी हो जाए।''सांसारिक प्रेम ''बहुत कष्ट देता है क्योंकि इंसान प्रेम के बदले, प्रेम की अपेक्षा रखता है। यह होना स्वाभाविक भी है ,जिससे हम प्रेम करते हैं ,उससे उम्मीदें बन जाती हैं कि वो व्यक्ति सुख -दुःख में साथ निबाहे।उस प्रेम में सोच संकीर्ण हो जाती है ,उस प्रेम को इंसान दूसरे से बाँटना नहीं चाहता ,उस पर अपना अधिकार चाहता है। जब प्रेम के बदले प्रेम नहीं मिलता ,तो कष्टकारी हो जाता है। इतना ही नहीं ,जब हम स्वयं भी नहीं समझ पाते कि जिसे हम प्रेम करते हैं ,वह हमसे प्रेम करता भी है या नहीं। जिसे लोग ''एकतरफ़ा प्रेम ''कह देते हैं।
सांसारिक प्रेम में, स्वार्थ आ जाता है, क्योंकि वह प्रेम रिश्तों से जुड़ा होता है और जब रिश्तों में स्वार्थ, लोभ , वासना भर जाती है तब वह प्रेम, प्रेम नहीं रह जाता है।
'' प्रेम ''तो मन को निर्मल कर देता है। उसमें दूसरे व्यक्ति से कोई लालसा नहीं रहती। प्रेम के बिना, व्यक्ति को जीवन, अधूरा लगता है। कुछ खालीपन का एहसास होता है। जब उसकी भावनाएं, जब किसी के प्रति ''प्रेम भाव'' में उमड़ती हैं। तब उस प्रेम में कोई लोभ , स्वार्थ नहीं होता। हर पल, हर जगह, धड़कनों में ,सांसों में इसका एहसास होता है। इस प्रेम के रहस्य को, कोई महसूस कर पाया है, तो वह है,' राधा का प्रेम' है , जिसने समाज और परिवार के लोगों की भी परवाह नहीं की। उसका प्रेम, स्वार्थ से बहुत ऊपर था।'' आत्मिक प्रेम ''था।
ऐसा नहीं है कि प्रेम, संसार से समाप्त ही हो गया है। प्रेम आज भी कहीं ना कहीं, किसी न किसी के ह्रदय में, निवास करता है,जो निश्छल और स्वतंत्र होता है। माँ ऐसा ही प्रेम अपने बेटे से करती है किन्तु परिस्थितिवश कहीं -कहीं उस प्रेम में भी स्वार्थ आ जाता है। इसमें बुरा मानने की बात नहीं है ,इंसान का 'प्रेम ' ईश्वर से भी जब जुड़ता है ,तब वो उस प्रभु से भी भक्ति और प्रेम का वरदान चाहता है ,उसका साथ ,उसका आशीर्वाद चाहता है। अपनी पूजा भक्ति ,श्रद्धा ,प्रेम के बदले'' मोक्ष ''मुक्ति का द्वार चाहता है। किन्तु ये नहीं जानता ,उसे किससे मुक्त होना है और क्यों ?
यह भी 'प्रेम ' का ही एक रहस्य है ,जो जानकर भी नहीं जान पाता ,समझता नहीं या समझना नहीं चाहता ,उसे प्रेम किससे करना चाहिए ,प्रेम करने वाले के मन में ,ऐसा कोई प्रश्न नहीं उभरता उसे तो सिर्फ'' प्रेम'' से मतलब है फिर चाहे ,ईश्वर से या फिर किसी सांसारिक जीव से। उसके लिए तो सब'' प्रेममय'' हो जाता है। उसका ''प्रेम ''ऊंच -नीच ,छल -कपट इन सबसे ऊपर उठ जाता है ,उसके लिए सब बराबर होते हैं किन्तु ऐसा प्रेम इस संसार में रहकर ,सम्भव तो है किन्तु पनप नहीं पाता। इस संसार में इतने प्रपंच जुड़े हैं ,मानव उस ''प्रेम के रहस्य'' को समझ नहीं पाता। वो प्रेम जो निस्वार्थ हो ,किसी लड़के -लड़की ने किया तो उम्र का आकर्षण !समाज की बंदिशें ! किसी स्त्री -पुरुष ने किया तो' वासना' घूरती नजरें !
मीरा के प्रेम को कौन समझ पाया ?जबकि उस समय तो कान्हा ही नहीं थे।'' भक्ति भाव'' से भरा प्रेम भी लांछित हुआ ,जिन्होंने सिर्फ उनकी मूर्ति से प्रेम किया ,तब भी उन्होंने विष पिया। जिसने भी प्रेम भक्ति का रस पीया वो एकांत में अपने में मग्न हो ,कंदराओं और गुफाओं में जिया। इसीलिए ''प्रेम के रहस्य ''को समझना बड़ा ही गूढ़ विषय है और जिसने भी इस प्रेम को समझ लिया उसके जीवन में ,उसने जादू सा किया। वही जीवन जो बोझिल ,थकन भरा महसूस होता है ,वही जीवन सुंदर लगने लगता है ,मन निर्मल ,तन हल्का सबकुछ ''प्रेममय ''हो जाता है।