Shaitani mann [part 100]

नितिन को ,शिवानी की फ़िक्र भी सता रही थी ,वह जानना चाहता था कि शिवानी पारस  के साथ रहकर खुश तो है। वह उसे सब बता देना चाहता था ,जो भी उसने, उन दिनों शिमला में देखा था,बल्कि वो शिवानी को पारस से सचेत रहने के लिए कहना चाहता था। 

 तब वह एक दिन मौका  देखकर ,शिवानी को फोन करता है ,पहले तो वो फोन उठाती ही नहीं है ,और जब फोन उठाया भी तो, पारस ने फोन उठाया। जब किसी के प्रति मन में ,गलत भाव आ जाते हैं ,तो विपरीत परिस्थिति में मन में और बुरे विचार आने लगते हैं ,मन अनिष्ट की आशंका करने लगता है। तब नितिन के मन में भी पारस को  लेकर बुरे विचार आने लगते हैं। पारस उससे बातें करता है ,तब अपने मन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए नितिन पारस से पूछता है -आप लोग कहीं घूमने नहीं गए , कभी जाओ तो, शिमला अवश्य जाना ! नितिन उसे जतला देना चाहता था कि वह उसकी सच्चाई जानता है। 


तब पारस पूछता है -''शिमला'' ही क्यों ?

तब नितिन कहता है - क्योंकि मैं शिमला जा चुका हूं, यह पिछले वर्ष की ही बात है , वहां पर एक कांड भी हो गया था उन दिनों मैं  वहीं था ,तभी पीछे से आवाज आई,-किसका फोन है ?किससे बातें कर रहे हैं ?

तुम्हारे मौसेरे भाई का फोन है, घूमने के लिए पूछ रहा है। 

लाइए, मुझे फोन दीजिए !मैं उससे बात करती हूं अपने गीले हाथों को तौलिये से पोंछते हुए उसने पारस के हाथों से फोन ले लिया और कहो ! कैसे हो ? सब ठीक तो हो। 

हां -हाँ मुझे क्या हुआ है ? तुम बताओ! तुम तो खुश हो।

 हां, मैं बहुत खुश हूं, पारस और मैं  बहुत खुश हैं कुछ दिनों पश्चात ही, हम घूमने भी जाएंगे, अभी इन्हें छुट्टियां नहीं मिली है।

संतोष की गहरी सांस लेते हुए, नितिन बोला-बस, एक भाई का फर्ज निभा रहा था , मेरा तो कर्तव्य बनता है अपनी बहन के सुख - दुख का ख्याल रखना, इसीलिए फोन किया था - कि पूछ लूँ ,तुम ठीक तो हो ,ससुराल में कोई तंग तो नहीं कर रहा। 

हां हां क्यों नहीं, मैं बहुत खुश और मस्त हूं ,फिर भी तुम अपने भाई होने का फ़र्ज निभाते रहना, भूलना नहीं। 

मन ही मन नितिन ने सोचा,वही तो कर रहा हूँ , अच्छा, ठीक है मैं ,अब फोन रखता हूं कोई बात हो तो ,मुझे बताना।

हाँ -हाँ क्यों नहीं ?कहते हुए वह फोन रख देती है। 

ये तुम्हारा भाई ,क्या सनकी है ?

क्यों क्या हुआ ?क्या आपसे उसने कुछ कहा ? 

कहा भी नहीं ,किन्तु कुछ तो था जो वो कहना चाहता था।शिमला की वो बातें पारस भूलना चाहता था किन्तु ये न जाने कौन है ?जो उस यादों को फिर जगाना चाहता है ,कभी -कभी लोगों को दिखता कुछ है और होता कुछ ओर है किन्तु जो दिखता है उस पर ही विश्वास कर लेते हैं ,सच्चाई की तह तक कोई नहीं जाना चाहता  । शिप्रा जो मेरी ज़िंदगी में आई और मेरी ज़िंदगी में हलचल मचाकर चली गयी। उसने मुझे नीचे गिराने के लिए क्या -क्या नहीं किया ?हर हथकंडा अपनाया ,मुझे लगता है ,इसके भाई ने भी वही बात देखी होगी और समझी होगी जो अन्य लोगों ने समझी थी। उन स्मृतियों को स्मरण कर पारस की आँखों में आंसू आ गए। 

क्या सोच रहे हैं ?आज आपको अपने काम पर नहीं जाना है ,पारस की आँखों में आसूं देखकर शिवानी बोली - उन बातों को भूल जाइये !अब तो सब ठीक है ,क्या नितिन ने उसी विषय में कुछ कहा था ?

उसने भी तो वही देखा और समझा होगा जो अन्य लोगों ने देखा या समझा किसी पर भी इल्ज़ाम लगा देना कितना आसान है ?

कोई बात नहीं ,उसे मैं समझा लूँगी ,वो मेरा भाई है ,समझेगा !आप जाइये !वरना आपको देर हो जाएगी।

तभी पारस को एहसास हुआ ,आज शिवानी साथ नहीं चल रही है ,अपनी परेशानियों से उबरकर,पारस ने शिवानी से पूछा - आज तुम क्यों नहीं चल रही हो ? 

आज मुझे कुछ काम है ,आज की मैंने, पहले ही छुट्टी डाल दी थी। 

यह बात सम्पूर्ण कॉलिज में फैल गयी ,पुलिस ने प्रकाश को हिरासत में ले लिया है ,जिसने भी सुना आश्चर्यचकित रह गया ,यह बात नितिन और उसके दोस्तों तक भी पहुंची। यार !ये सब कैसे हुआ ?क्या प्रकाश ऐसा कर सकता है ?देखने से तो नहीं लगता।

 यही तो होता है ,जिनके विषय में हम सोच भी नहीं सकते, वो ही ऐसे काम कर जाते हैं ,ये शब्द कहते हुए नितिन पारस के विषय में ही सोच रहा था। वैसे प्रकाश ने इस कांड को कैसे अंजाम तक पहुंचाया ? क्या उसने ऋचा और कविता दोनों को मारा है। 

नहीं ,उसने ऋचा की हत्या को कबूल किया है ,कविता की नहीं। 

ये सब कैसे हुआ ?

क्यों नहीं होगा ?जब पुलिस ठान ले, तो पता करके ही मानेगी।हाँ ,ये बात अवश्य है ,सच्चाई तक पहुंचने में थोड़ा समय अवश्य लग जाता है। 

 इंस्पेक्टर सुधांशु हवालात में प्रकाश को बुलाकर उससे पूछताछ  करते हैं -बताओ !तुमने ऋचा को क्यों मारा ?

सर !उसे मैंने नहीं मारा। 

तुम अब भी झूठ बोल रहे हो ,तुम ऋचा के इंकार करने से तिलमिलाए हुए थे इसीलिए तुम उसको चिढ़ाने के लिए ,अन्य लड़कियों के हमदर्द बन रहे थे। ताकि ऋचा को एहसास हो ,उसने तुमसे इंकार करके कितनी बड़ी गलती कर दी है ?अब तुम्हारा सारा खेल ख़त्म हो चुका है ,जहाँ तुमने उसके साथ बलात्कार किया और फिर उसे लाकर ,उन मगरमच्छों की झील में डाल दिया। 

नहीं ,मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। 

वहां के सी,सी,टी,वी. कैमरे में सब दिख रहा है ,अब झूठ बोलने से कोई लाभ नहीं। 

इंस्पेक्टर की बात सुनकर प्रकाश हतप्रभ रह गया ,घबराकर अचानक ही बोल उठा ,वहाँ तो कोई कैमरा नहीं था, मैंने देखा था। 

तब इसीलिए तुमने निश्चिन्त होकर ,अपना बदला लेने के लिए उस स्थान को चुना ,कड़क स्वर में इंस्पेक्टर ने पूछा, किन्तु तुम भूल गये ,कोई तो है ,जो तुम्हारे गुनाहों को अपने कैमरे में बंद कर रहा है कहते हुए ,प्रकाश के मुँह पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया। 

प्रकाश को लगा, अब वो पकड़ा गया और वो रोने लगा,क्या करता ? साहब ! तभी बाहर से एक सिपाही आया और इंस्पेक्टर सुधांशु के कान में धीरे से बोला -प्रकाश, के घरवाले आये हैं। 

तुम चलो ! मैं आता हूँ ,कहकर प्रकाश की तरफ देखते हुए बोला -तुम तो उससे प्यार करते थे और तुमने उसे ही मार दिया ,ये तुम्हारा कैसा प्यार था ?इंस्पेक्टर जानता था ,वे अपने बेटे को छुड़ाने के लिए अपना वकील लेकर आये होंगे इसलिए उनसे मिलने से पहले ही ,ये अपना जुर्म स्वीकार कर ले वरना क़ानूनी पचड़ों में पड़कर  केस चलता रहेगा।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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