Rangeen tasveer

घर में दीपावली की साफ- सफाई चल रही थी, पुराना सामान निकाल कर बाहर रखा जा रहा था ताकि देखा जा सके कौन सा सामान रखा जाने वाला है और कौन सा बाहर फेंकने के लिए है। घर में जब पुराने सामान निकालते हैं ,तो बच्चे बड़े प्रसन्न होते हैं। उन्हें लगता है ,मम्मी -दादी न जाने , ख़जाने की कौन सी पिटारी निकालने वाली हैं ?सामान पुराने तो थे किन्तु बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र थे। पुराने पीतल के बर्तन ,दादी की सास का चाँदी का छोटा सा हुक्का,जिसे हमारी दादी की सास उसे पीती थीं। बच्चे उसे देखकर हंस रहे थे ,उन्हें इस बात पर ही आश्चर्य हो रहा था कि उस समय महिलायें हुक्का पीती थीं। सुंदर आकर्षक डिजाइन की पान की संदुकड़ी !

दादाजी की तलवार ,बंदूक की गोलियां देख ,बच्चों ने पूछा -ये क्या हैं ?

दादाजी की बंदूक की गोलियां हैं ,हमने जबाब दिया। 


गोली यहाँ हैं,तो बंदूक कहाँ है ? 

न जाने कहाँ है ?दादी ने अनभिग्यता ज़ाहिर की। बहुत सारे ऐसे पुराने सामान थे जो संदूकों में दबे रखे थे। उनमें ही कुछ पुरानी तस्वीरें भी थीं। बच्चे उन तस्वीरों में ,दादी की जवानी की तस्वीर दादा और अपने पापा की तस्वीरों को पहचानने का प्रयास करने लगे। उन तस्वीरों को देख रहे थे और हंस रहे थे। जिनमें भरा -पूरा इतना बड़ा परिवार नजर आ रहा था। उन्हें देख ,न जाने, कितनी पुरानी यादें स्मरण हो आईं ? हम बच्चों को समझाने लगे ,ये दादा जी है ,जो बच्चा गोद में बैठा है वो मैं हूँ। चक्की के पास जो खड़ी हैं, वो हमारी चाची जी हैं। वो रतिया ताई,वो मंझली बुआ इस तरह रिश्तों की पहचान कराते, चेहरे पर अजब ही चमक थी। 

तभी मेरा छोटा बेटा बोला -क्या उस समय तस्वीरें रंगीन नहीं होती थीं ?ये तस्वीरें रंगीन होतीं तो कितना अच्छा होता ?

उसकी ये बात सुन मैं बोला - ये ''तस्वीरें रंगीन'' नहीं हैं ,तो क्या ?किन्तु इनको देखकर जो यादें ताजा और रंगीन हो गयीं ,उनसे बेहतर भला क्या हो सकता है ? आज की तुम्हारी तस्वीरों में इतना बड़ा परिवार क्या तुम देख पाओगे ?उस समय तो कैमरे का छोटा सा मुख देखकर लगता था ,इसमें पूरा परिवार कैसे आ पायेगा ?हर चेहरे की अपनी कहानी है ,अपना अलग अंदाज है। न जाने कितनी खूबसूरत, रंगीन स्मृतियाँ इन तस्वीरों में समाई हैं ? आज तुम्हारी तस्वीरों में मम्मी -पापा कभी -कभी बहन -भाई तो कभी'' मैं ''वो मैं जो सिर्फ़ सैल्फी लेता है ,वो भी अपने लिए नहीं ,दूसरों को दिखाने के लिए ,अपने लिए नहीं जीता बल्कि दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए किया जाता है। 

इन तस्वीरों में देखो !ये भाभी कैसे शर्मा रहीं हैं ?जब पहली बार मैंने कैमरे से उनकी तस्वीर खींची थी वरना  तस्वीर खिंचवाने के लिए हमें कैमरे वाले को बुलाना पड़ता था या फिर स्टूडियों में जाना पड़ता था,एक गहरी स्वांस लेते हुए बोले-  जिनसे खूबसूरत ,और रंगीन यादें जुड़ जाती थीं और सालों -साल उन्हीं तस्वीरों को सहेजकर रखते थे। फ्रेम करवा लेते थे किन्तु आज हर रोज ,हर मूड़ की एक नई तस्वीर जो कुछ दिनों पश्चात मेमोरी भर जाने के कारण या किसी भी कारण से डिलीट कर दी जाती हैं। तस्वीरें रंगीन तो हैं किन्तु कुछ दिनों या फेसबुक तक के लिए ,अब तुम ही सोचकर बताओ !कहाँ हैं ,तुम्हारी वे तस्वीरें जो ऐसे  लम्हों को सहेज़ कर रख सकें ,अब तो अगले वर्ष फेसबुक पर ही दिख जाएँगी।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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