Mysterious nights [part 44]

शिखा को धीरे -धीरे इस परिवार के सदस्यों की जानकारी होने लगती है और तब उसे पता चलता है -तेजस ,से बड़े दो भाई हैं ,उन्हें भी दमयंती जी उसके 'देवर' ही कहकर पुकारती थी। एक दिन शिखा ,बंदिनी से पूछती है - गर्वित और गौरव इनके बड़े बेटे हैं ,क्या इनका विवाह नहीं हुआ है ?

तब बंदिनी घबराते हुए कहती है - मुझे नहीं मालूम, मैं तो कभी शहर गई ही नहीं। इस हवेली के विषय में किसी को ज्यादा जानकारी रहती ही नहीं है। जिसको ज्यादा जानकारी हो जाती है, वह 'मौन ' हो जाता है।

 मैं कुछ समझी नहीं। 



जब यहाँ रहोगी तो धीरे -धीरे सब समझने लगोगी ,इतनी भी जल्दी क्या है ?

ज्यादा समझने और समझाने की बात नहीं है , बंदिनी !अपने काम से काम रखो ! देखो, बुआ जी! जाने वाली हैं ,उनकी विदाई की तैयारी करनी है। दमयंती जी ने बंदिनी को शिखा से बात करते हुए सुना तो बोलीं -जाओ !देखो !बुआजी क्या कहना चाहती हैं ?

जब बंदिनी वहां से चली गयीं,तब वे शिखा से कहती हैं - बेटा, शिखा  ! तुम्हें इतनी जल्दी क्या है? इस घर के विषय में जानने की अभी तो तुम्हें आए हुए 15 दिन ही तो हुए हैं, धीरे-धीरे सब मालूम हो जाएगा। बाहर के लोगों से ज्यादा बात नहीं करते हैं, हमारे इस घर की एक मर्यादा है उसका तुम्हें ख्याल रखना होगा। ये हमारी नौकर हैं और तुम इस घर की बहु ! उससे ज्यादा घुलने- मिलने की आवश्यकता नहीं है। 

जी मम्मी जी ! कहकर शिखा अपने कमरे में चली गई। 

एक दिन शिखा अपने घर के विषय में और तेजस के विषय में सोच कर भावुक हो रही थी। अब उसका  मन इस जीवन से उकता गया था ,वह सोच रही थी -क्या मेरा यह जीवन, इसी तरह कटने वाला है।इस हवेली में कैसे सम्पूर्ण जीवन कटेगा ?''ये हवेली बाहर से जितनी शानदार दिखती है ,उतनी ही अंदर से खोखली है। हर इंसान एक ही ढर्रे पर चल रहा है। कठपुतली की तरह यहां सभी, जैसे किसी डोर से बंधे है ,न कोई हँसता दीखता है ,न ही कोई बातचीत करता है।

   पापा, ठीक कह रहे थे-'मुझे पढ़ना चाहिए था , तब उसने सोचा, क्यों न घर वालों से ही बात कर लूँ।  यही सोचकर वह हवेली के आंगन की तरफ जाती है उस हवेली में चार कमरे विशिष्ट थे। उन कमरों में कोई आता- जाता नहीं था। शिखा ने कभी ध्यान भी नहीं दिया , किंतु एक दिन शिखा ने, दमयंती को हरिराम के साथ कमरे में जाते देखा। उन चारों कमरों की एक विशिष्ट पहचान थी। वह पहचान क्यों की गई है ? वह ये भी नहीं जानती थी

 मन ही मन सोचा -कि ये इनके साथ क्यों जा रही हैं ? फिर सोचा, कोई कार्य होगा। काफी देर तक जब वे  लोग बाहर नहीं आये , तो शिखा को अजीब सा महसूस हुआ।इस तरह तो कोई पत्नी ही अपने पति के साथ...... विचारों को वहीं रोक दिया ,और अपने विचारों के कारण उसे लगा जैसे ,उसने कितना बड़ा पाप कर दिया है ?भूलकर भी ऐसे विचार उसे अपने मन में नहीं लाने चाहयें।  मन ही मन ईश्वर से क्षमायाचना करने लगी और मन ही मन ,राम -राम का जाप करने लगी। 

 वह शंका नहीं करना चाहती थी, किंतु मन बार-बार यही कह रहा था-' कुछ बात तो अवश्य है। उसका मन जबरन ही उसे, उस दिशा की ओर खींचने का प्रयास कर रहा था।उससे प्रश्न पूछ रहा था -ये तो ,तेजस की माँ हैं और ''जगतसिंह ''पापा की पत्नी ,तब ''हरिराम ''चाचा के कमरे में इतनी देर तक क्या कर रहीं हैं ? माना कि एक की पत्नी नहीं रही ,तो क्या बाक़ी के दो ने भी शादी नहीं की या उनकी भी पत्नी कहीं चली गयी। वह दृश्य बार -बार उसकी नजरों के सामने घूम रहा था, बाक़ी के बच्चों की माँ कहाँ हैं ?

 कुछ देर, शिखा प्रतीक्षा करती रही और धीरे -धीरे नीचे उतरी और यह जानने के लिए कि उन कमरों का क्या रहस्य है ?वह गलियारे को पार करती हुई ,खम्बों की आड़ में हवेली के उन कमरों की तरफ बढ़ रही थी। तभी उसे दरवाजा खुलने की आवाज आई ,वह तुरंत ही एक खम्बे की आड़ में छुप गयी। तब उसने अपनी सास दमयंती को हरिराम के साथ बाहर निकलते देखा। दोनों के चेहरों पर मुस्कुराहट थी ,दमयंती हरिराम से कह रही थी -तुम चिंता न करो ! मैं सब संभाल लूंगी। तभी दमयंती को जैसे आभास हुआ ,आसपास कोई है ,तब उसने जोर से पुकारा -क्या कोई यहां है ?

उनका स्वर सुनकर ,शिखा की हालत खराब हो गयी,उसका दिल जोरों से धड़कने लगा ,लग रहा था ,अभी चक्कर खाकर गिर जाएगी। तब उसे हरिराम का स्वर सुनाई दिया -तुम व्यर्थ में ही परेशान हो रही हो ,भला यहाँ कौन आ सकता है ?तभी शिखा को लगा यही मौका है ,निकल भागने का और वो तुरंत ही वहां से जो निकली ,वह बदहवास सी दौड़ती हुई, सीढ़ियों पर पहुंची ,आज उसने दो -दो सीढ़ी एक साथ पार की। उसके मन में बस यही चल रहा था किसी तरह अपने कमरे में पहुंच जाऊं ,अपने कमरे में  पहुंचते ही ,उसने दरवाजा बंद किया और अपने बिस्तर पर निढाल गिर पड़ी ,वह पसीने से तरबतर हो चुकी थी। उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रहीं थीं ,जैसे कई मील दौड़कर आई हो। 

जग से पानी लेकर पीते हुए, मन ही मन सोच रही थी-कैसे लोग हैं ,बेटा गया है ,इनके चेहरे पर शिकन तक नहीं। पति न जाने कहाँ है ?और देवर के साथ.....  तुरंत ही विचारों को विराम देना चाहती है किन्तु जो उसे प्रत्यक्ष दिख  रहा है ,उसे झुठलाया तो नहीं जा सकता। उछलती हुई धड़कनें अब थोड़ी संयत हुई ,मन ही मन सोच रही थी ,जासूसी करना भी सरल कार्य नहीं है ,पकड़ी जाती तो, किसी को क्या जबाब देती ?सोचकर ही उसकी रूह हिल गयी। 

 भरा- पूरा परिवार है, इस परिवार में आठ पुरुष ही पुरुष रहते हैं किंतु महिला सिर्फ एक है या फिर अब मैं इस घर में आई हूं,, क्या इनकी बड़ी बहुएं भी, यहां नहीं आती है ? काश ! वो यहां होतीं , तो मेरा मन भी लग जाता। 

एक दिन शिखा ,दमयंती के पास बैठी हुई थी, तब उसने पूछा -मम्मी जी , मैंने सुना है गर्वित और गौरव वह तेजस के बड़े भाई हैं उनका विवाह शहर में हुआ है। 

 नाराज होते हुए ,वे बोलीं -तुम बहुत, जानकारी ले लेना चाहती हो। उनकी, अपनी जिंदगी है, तुम्हें अपनी जिंदगी से मतलब होना चाहिए। जब उन्हें लगा कि मेरे डांटने से शिखा चुप हो गई है, तो बोलीं  - बहुत दिन हो गए, अब अपने मम्मी -पापा को याद नहीं करती हो , कम से कम उन्हें एक फोन तो कर लेतीं। वह भी तुम्हारे माता-पिता हैं। मेरे कमरे में आओ ! वहां पर फोन रखा है आज तुम उन्हें फोन कर लेना। बताओ तो भला, अपने मम्मी- पापा से क्या कहोगी ?

यही कि मेरी चिंता ना करें ! मैं यहां पर कुशल से हूं, आप लोग मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। 

बहुत बढ़िया ! इसमें झूठ ही क्या है ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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