अरे, शिखा की मम्मी! कहां हो ? कम से कम फोन तो उठा लेतीं, इतनी देर से घंटी बज रही है, कहते हुए सरपंच जी, घर के अंदर आए और आते ही फोन उठा लिया- हेलो ! कौन बोल रहे हैं ?
पापा ! मैं शिखा बोल रही हूं, आप कैसे हैं ?कहते हुए शिखा के नेत्र सजल हो आये।
नाम सुनते ही जैसे, उनके कानों में रस सा घुलने लगा। एकदम से भावुक होते हुए बोले -बेटा ! तू कैसी है ? तू वहां ठीक तो है न....वहां तेरा मन लग रहा है। तू कहे तो तुझे लिवाने के लिए किसी को भेज दूं।
हां पापा ! मैं ठीक हूं, यहां मेरा मन भी लग रहा है, सभी मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। मम्मी जी भी ठीक हैं , ये लाइनें उसने जानबूझकर बोलीं थीं ,ताकि उन्हें एहसास दिला सके , कि उसकी सास , उसके पास में ही बैठी हैं ,वे कोई भी ऐसी बात न बोल दें ,जिससे उनको बुरा लगे। मम्मी जी, भी मेरा बहुत ख्याल रखती है उन्होंने ही तो कहा था -'कि यहाँ आकर अपने मम्मी- पापा को ही भूल गई , आज उन्हें फोन कर ले !
क्या समधिन जी ने ऐसा करने के लिए कहा है ?
हां हां ,वे मेरे पास ही तो बैठी हैं ,सरपंच जी समझ गए , कि अब बेटी कुछ नहीं कह पाएंगी, बताना चाहेगी तो भी नहीं बता पाएगी। तब वे बोले -तेरी मां नहा रही थी,अब आ गई है। लो !तुम उससे बात कर लो ! कहते हुए सरपंच जी ने फोन सरला के हाथ में दे दिया।
सरला ने इशारे से पूछा -कौन है ?शिखा और उसकी सास ! कहकर बाहर चले गए। सरला ने शिखा से पूछा -बेटा तू वहां कैसी है ? तुझे मैंने लिवाने के लिए ,तेरे पापा को भेजा था, उनके साथ क्यों नहीं आई ?
मम्मी ! यहां मम्मी जी ,[सास ]की तबीयत खराब थी, वे अकेली परेशान हो जातीं इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए यहीं रुक गई थी। आप दोनों कैसे हैं ?
हम दोनों तो ठीक हैं वहां तो कोई दिक्कत नहीं है।
नहीं नहीं, मम्मी जी तो बहुत अच्छी हैं। दमयंती वहीं पर बैठी रही, एक पल के लिए भी वहां से नहीं हटी शिखा चाहती थी, कि दमयंती उससे अलग हो, वह कुछ बात कहे किंतु दमयंती वहीं बैठकर उनकी बातें सुन रही थी तब शिखा बोली -मम्मी लो , मेरी सास से बात कर लीजिए !
नहीं नहीं, तुम बात करो ! मैं क्या बात करूंगी? माता-पिता को अपने बच्चों के प्रति चिंता रहती ही है उन्हें भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी बेटी यहां पर ठीक से रहती है।
अच्छा अब बता ! मिलने के लिए,तू कब आ रही है ?
मां की बात सुनकर, शिखा एकदम चुप हो गई और दमयंती जी की तरफ देखने लगी और बोली- मम्मी !पूछ रही हैं ,' कब आ रही है ?
शीघ्र ही आएगी, चिंता ना करें ! यह कह दो !
मम्मी में जल्दी आऊंगी , कहकर उसने फोन काट दिया क्योंकि उसे यह बातचीत औपचारिक सी लग रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे उसका झूठ बढ़ता जा रहा है क्योंकि कोई भी शब्द उसने अपने मन से नहीं बोला था, वह सब सास के वहां रहने के कारण बोल रही थी यदि कोई और समय हो तो उसके पास अपनी ससुराल वालों की शिकायत करने की एक लंबी सूची होती।
तुम्हारे माता -पिता कैसे हैं ?ये नहीं सोचते ,अब बेटी का विवाह हो गया है ,अब उसे अपना घर देखना चाहिए। यहाँ नहीं रहेगी तो यहाँ के लोगों को कैसे समझेगी ?इस घर में कैसे घुलेगी -मिलेगी ?
मन ही मन शिखा सोच रही थी ,जब कुछ पूछती हूँ ,तो कोई जबाब नहीं मिलता ,अभी तक घर के लोगों को ठीक से समझी भी नहीं हूँ। घर में घुलने -मिलने की बात करती हैं। क्या सोच रही हो ? दमयंती ने पूछा।
मैं सोच रही थी ,मैं, सारा दिन अपने कमरे में बैठी रहती हूँ ,न कहीं आना ,न कहीं जाना,क्यों न.....
उसकी बात बीच में काटते हुए दमयंती ने पूछा -तुम कहाँ आना -जाना चाहती हो ?एकदम से दमयंती का चेहरा कठोर हो गया।
मेरी पूरी बात तो सुन लीजिये ,मैं कह रही थी ,सारा दिन घर में बैठे रहने से मन में अजीब -अजीब से ख़्यालात आते रहते हैं ,इसीलिए मैं सोच रही थी ,क्यों न..... अपनी पढ़ाई ही पूरी कर लूँ। जब रिश्ते की बात हुई थी ,तब पापा ने कहा था -''अब जो भी करना है ,विवाह के पश्चात करना किन्तु अब 'तेजस' तो रहे नहीं जो उनसे कहती,इसीलिए आप से कह रही हूँ ?क्यों न मैं अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखूं। आप क्या कहती हैं ?
कुछ देर दमयंती शांत रही और बोली -क्या तुम कॉलिज जाना चाहती हो ?तुम जानती भी हो ,ठाकुर साहब की यहाँ कितनी इज्जत है ?मान -सम्मान है।
मेरी पढ़ाई का उनके मान -सम्मान से क्या मतलब ?शिखा अब धीरे -धीरे दमयंती के व्यवहार को समझने का प्रयास करने लगी थी। ये जैसी दिखती हैं या दिखाती हैं ,ऐसी बिल्कुल भी नहीं है।
तुम ये बात कैसे समझोगी ?जब सब लोग ,उनकी विधवा बहु को कॉलिज में पढ़ने जाते देखेंगे तो क्या सोचेंगे ?कि अपनी विधवा बहु को बाहर धक्के खाने भेज दिया ,पढ़ने के पश्चात तुम नौकरी भी करना चाहोगी ,यही सब सुनने के लिए कि अब तो विधवा बहु की कमाई खा रहे हैं।
आप , ये सब कैसे सोच सकती है ?आप तो स्वयं भी विदेश में पढ़ी हैं।
हाँ ,तभी तो कह रही हूँ ,इससे कुछ नहीं होगा ,कोई लाभ नहीं है ,विदेश में पढ़कर भी, मैं यहाँ हूँ ,क्या कर रही हूँ ,उसके शब्दों में जैसे कड़वाहट भरी थी ,तब वो बोली -अब तुम जाओ !बाद में बात करते हैं।
शिखा उदास हो गई, इनके अन्य बच्चे भी न जाने क्या करते हैं ? मुझे लगता है, सब पर अपना अधिकार जमाना चाहती हैं . इनके अन्य बच्चों की मां मिल जाए तो उनके विषय में कुछ जानकारी मिल सकेगी। पता नहीं, उनके साथ क्या किया होगा ? शिखा के मन में, दमयंती के प्रति क्रोध बढ़ रहा था क्योंकि उसने जैसा सोचा था अब उसे लग रहा था जिंदगी इस तरह बिताना आसान नहीं है।
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