Shaitani mann [part 98]

 ठक ! ठक की आवाज से, नितिन की आंख खुली , नितिन को लगा- जैसे बाहर कोई है, वह इतनी गहरी नींद में था, उसे भान ही नहीं रहा कि वह कहां सो रहा है ? किंतु आंख खुलते ही, वह सचेत हो गया और उसे कल रात वाली सारी घटनाएं स्मरण हो आईं । उसे लग रहा था , जैसे किसी ने  उस कमरे का दरवाजा खटखटाया है, बिना देर कर किए, वह फुर्ति से उठा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा -कोई है ,कोई है दरवाजा खोलिए !

 इस समय नितिन का चिल्लाना सार्थक रहा, क्योंकि यह वही लोग थे ,जो उसे ही ढूंढ रहे थे ,वे लोग तो वापस जाने का सोच ही रहे थे ,तभी नितिन की आवाज उन्हें सुनाई दी और वापस आकर दरवाजा खोला , दरवाजा खोलते ही, नितिन फुर्ती से बाहर आया। वह व्यक्ति समझ गया यह वही लड़का है, जिसके लिए सब लोग परेशान हो रहे हैं। तब उस व्यक्ति ने पूछा -तुम यहां क्या कर रहे हो ? यहां कैसे आए ? तुम्हें तुम्हारे घर वाले ढूंढ रहे हैं। 


 सब लोग कहां हैं ? कहते हुए नितिन बाहर की तरफ भागा , जहां थोड़ी भीड़ थी वहीं पहुंच गया उसको देखकर जैसे सभी की सांस में सांस आई पद्मिनी जी दौड़ती हुई उसके पास गईं और पूछा -तू कहां चला गया था ? कहां से आ रहा है ?

 नितिन यह जानना चाहता था, कि अब क्या हो रहा है ? तब उसने पूछा - क्या शिवानी विदा हो गई ?

नहीं, तेरे कारण ही, यह लोग रुके हुए थे, नितिन ने पारस और शिवानी की तरफ देखा दोनों खुश थे, शिवानी ने पूछा -तू कहां चला गया था ?अब नितिन को लगा, उसका यहां कुछ भी कहने का कोई लाभ नहीं है। अब जो होना था,सो हो गया। मुझे भी तो पहले पारस से बात करनी चाहिए थी। 

खोया खोया सा नितिन बोला -कुछ नहीं , गहरी नींद आ रही थी, थक गया था ,जहां जगह मिली वहीं सो गया। सबके मन में प्रसन्नता छाई और सब ने, उस रस्म को पूरा किया और शिवानी की विदाई हो गई। 

यह लड़का वहां क्या करने गया था ? वहां तो कोई भी नहीं जाता, यदि वे  लड़के हमें नहीं बताते तो हम इसे ढूंढ नहीं पाते और यदि यह है, स्वयं गया था तो फिर बाहर से दरवाजा किसने बंद किया ? ऐसे  अनेक प्रश्न, वहां कार्य करते हुए एक व्यक्ति के मन में उभर रहे थे। वह  सोच रहा था,अवश्य ही कहीं कुछ तो हुआ है , जो हमें पता नहीं चला है। तुमने देखा, उस लड़के का एक होंठ सूजा हुया  था। यहां अवश्य ही कुछ तो हुआ था जो हमें पता नहीं चल पाया।  

अब तू क्यों परेशान है ? विवाह हो गया है, लोग चले गए हैं। जो कुछ भी हुआ है, न ही, हमने देखा है और न ही सुना है। 

वे लोग कौन थे ? वे लोग तो शायद बारात से थे ,वह कैसे जानते थे? कि यह लड़का वहां बंद है। 

तभी नितिन उनके पास आया, और बोला-हम लोग जा रहे हैं क्या कोई मुझे बतायेगा ! आप लोगों को  कैसे पता चला? कि मैं वहां पर हूं। 

हमें तो कुछ लड़कों ने बताया था, कह रहे थे- हमने उधर कोई आवाज सुनी है , जाकर देख लीजिए ! हो सकता है वहां कोई हो। नितिन समझ गया ये  वही लड़के थे , जिन्होंने मुझे उस कमरे में बंद किया और जब वह रस्म नहीं हो रही थी, मुझे ढूंढा जा रहा था तब उन्हें लगा , कि कहीं बात ना अटक जाए इसलिए उन्होंने मेरा पता बता दिया होगा।

अब तू वहां क्या कर रहा है ?चलता क्यों नहीं ?

आ रहा हूँ ,कहते हुए वापस आया ,गाड़ी में बैठते हुए ,पद्मिनी जी ने पूछा -उन लोगों से क्या पूछ रहा था ?

 कुछ विशेष नहीं। 

वो सब तू छोड़ ! पहले तू मुझे यह बता तू ऐसी जगह पर क्यों सोया था? जहां कोई आता- जाता नहीं है। मान लो मैं शोर ना मचाती तो कोई तुझे ढूंढता ही नहीं  और तू  वहीं बंद रह जाता सोचकर ही, उनकी रूह काँप  गई। 

पद्मिनी जी के बार -बार पूछने से नितिन परेशान होकर बोला -मम्मी !परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, जब आंख खोलता, तब तो आ ही जाता। 

तुझे हमें बताना तो चाहिए था, कि मुझे नींद आ रही है मैं कहां जा रहा हूं ?उसके चेहरे की तरफ देखते हुए बोलीं -ये तेरे होंठ पर क्या हुआ ? यह सूजा हुआ क्यों है ? वही अंधेरे में कुछ लग गया होगा, लापरवाही से बोला। 

मन ही मन  पद्मिनी की भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थीं -हे भगवान ! तेरा लाख-लाख शुक्र है, जो मेरा बेटा मिल गया मैंने तुझे ₹11 का प्रसाद बोला था मैं प्रसाद चढ़ाने आऊंगी। 

अच्छा मम्मी !एक बात बताइए ! मौसी जी ने, जो यह लड़का ढूंढा है उसके विषय में सारी जानकारी ले ली थी या नहीं। 

यह बात तो यह लोग जाने , वह तो कह रही थी -वे दोनों ही, एक ही दफ्तर में काम करते हैं, दोनों ने आपस में बातें की हुई हैं। एक दूसरे को समझा है, तभी विवाह के लिए तैयार हुए हैं। क्यों तुझे क्या लगता है ? क्या लड़का ठीक नहीं है।

 नहीं, ठीक है। चाह कर भी वह कुछ नहीं कह पा रहा था क्योंकि पहले उसके विषय में संपूर्ण जानकारी लेनी है।  यदि वह पूछेगा भी तो सीधे-सीधे शिवानी से ही बात करेगा कि पारस के विषय में वह कितना जानती है ? 

नितिन जब कॉलेज पहुंचा, उसने महसूस किया ,जैसे सभी उसकी प्रतीक्षा में ही थे. तुरंत ही उसका बुलावा आ गया। इंस्पेक्टर सुधांशु ने बुलाया था। नितिन ने अपने दोस्त से पूछा -अरे, यार! इनका केस अभी तक सुलझा नहीं है, क्या जॉंच -पड़ताल अभी भी चल रही है ?

तू तो, ऐसे कह रहा है -जैसे महीनों  में आया है तुझे गए हुए, 2 दिन ही तो हुए हैं। यह खून का केस है और  इस केस से अन्य केस भी जुड़ गए है।

 और कौन से केस आ गए ? हम तो कॉलेज में रहते हैं, अखबार हम पढ़ते नहीं है, ना ही बाहर की कोई जानकारी रखते हैं। 

हुआ क्या है ?साफ-साफ बताओ !

कोई 'सनकी हत्यारा' है, जिसने लड़कियों को मारा है और ये पुलिस वाले कविता के केस को उन्हीं केसों  के साथ जोड़कर देख रहे हैं। 

क्या ? नितिन एकदम से ऐसे उछला ,बिच्छू ने काट लिया हो। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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