बंदिनी, जब शिखा से मिलकर नीचे आई, तो उसका मन बहुत घबराया हुआ था।हालाँकि सीढ़ियों पर उसने अपने आपको संभालने का बहुत प्रयास किया ,ताकि उसकी घबराहट, उसके चेहरे पर न आ पाए,किन्तु शायद, वह अपने भाव छुपाने में नाक़ामयाब रही। उसका चेहरा देखकर दमयंती जी ने पूछा -क्या बात है ? कुछ परेशान लग रही हो।
कुछ नहीं, वो बहुरानी जी !
क्यों ?क्या हुआ ?क्या वो लड़की कुछ कह रही थी ?शंका से दमयंती ने पूछा।
नहीं ,उन्होंने तो कुछ नहीं कहा ,वे जब से यहाँ आई हैं ,उसी कमरे में हैं इसीलिए थोड़ा परेशान हैं , उनसे आज तक किसी ने बात भी नहीं की,कोई मिलने भी नहीं गया इसलिए उन्हें लगता है ,कहीं आप लोग उनसे नाराज तो नहीं ,शिखा ने बंदिनी से ऐसा कुछ नहीं कहा था किन्तु घबराहट में मुँह से न जाने क्या से क्या निकल गया ?अब वह यह सोचकर घबराने लगी ,कहीं ये नाराज न हो जाएँ।अभी वह यही सोच रही थी -बात को कैसे सम्भालूं ?
तभी दमयंती जी बोलीं -तुम सही कह रही हो, लेकिन हम क्या कर सकते हैं ? यह माहौल ही ऐसा है , यह बीमारी ही ऐसी है। हो सकता है,उस भीड़ भाड़ में, किसी को यह बीमारी लग गई हो इसीलिए सभी की सुविधा और सुरक्षा के लिए ही हमने यह कदम उठाया है। सभी की सुरक्षा के लिए, सावधानी तो आवश्यक है। इस बीमारी के कारण हमारा पहला बेटा, अब इस दुनिया में नहीं रहा। हम चाहते तो, उस लड़की को हम नीचे भी रख सकते थे किंतु वह उसके साथ वहां फेरे ले रही थी। हो सकता है, उसके कुछ लक्षण उसमें भी आ गए हों। बेटा तो हम खो चुके हैं ,अब उसे खोना नहीं चाहते, बची रहेगी तो अच्छा ही है ,बाकि के बच्चों के लिए भी हमने यही सोचा है और हम तो तुम्हारी सुरक्षा का भी ख्याल रखते हैं।हम भला उससे नाराज क्यों होंगे ?इसमें उसकी क्या गलती है ?
वह सब तो ठीक है , मैं भी यही सोच रही थी और मैंने, उनसे भी यही कहा है।
कोई बात नहीं, जब तेजस की तेहरवीं होगी, तब उसे नीचे बुलाया जाएगा।
आज प्रातः काल से ही, घर का वातावरण कुछ शांत और दुख भरा है। हवन करवाने के लिए पंडित जी को बुलाया गया है। आज घर में कुछ मेहमान आए हैं, सभी एक दूरी बनाए हुए हैं। शिखा को भी, आज नीचे बुलाया गया है। हालांकि शिखा छत से भी , इधर-उधर देख लेती थी किंतु उसे नीचे आने की इजाजत नहीं थी। उसकी सभी फरमाइशें बंदिनी पूरा कर देती थी। उसको शिखा के लिए ही नियुक्त किया गया था।
शिखा ने अपनी सास दमयंती के पैर छूने चाहे, किंतु उसने उसे अपने पैर नहीं छूने दिए और बोली -हवन ! पर बैठ जाओ ! जब से शिखा आई है, तब से वह सफेद साड़ी ही पहन रही है। ऐसा तो उसने, कहीं नहीं देखा था , आजकल उसके गांव में भी जब कुछ महिलाएं विधवा हो जाती हैं , तो कुछ दिनों पश्चात वे भी रंगीन वस्त्र पहनने लगतीं हैं। इस हवेली का यही नियम होगा ,हो सकता है ,तेहरवीं तक ऐसे ही रहना पड़े।
आईने में अपने आपको उस रूप में देखते हुए, सोचने लगी - वैसे भी क्या फ़र्क पड़ता है ?श्वेत वस्त्र पहनूं या रंगीन ! जिसके लिए पहनना था ,सजना -संवरना था वो तो अब इस दुनिया में ही नहीं है ,इसीलिए यह सोचकर, शिखा सफेद धोती ही पहन रही थी। धीरे-धीरे रिश्तेदार और अड़ोसी -पड़ोसी आने लगे। सभी कार्य सुचारू रूप से, शांतिपूर्वक हो रहे थे। कुछ महिलाओं ने रोना आरंभ कर दिया। दुख का विषय तो था ही, क्या करते, इस घर का जवान बेटा जो गया है।
शिखा हवन के पश्चात, एक कोने में जाकर बैठ जाती है। वहां वह किसी को जानती भी नहीं थी, सभी जान गए थे कि यह 'तेजस की विधवा' है उसे देखते, और आगे बढ़ जाते , ऐसा लग रहा था जैसे वहां उसकी नुमाइश लग रही है। यह बात शिखा को अच्छी नहीं लग रही थी। कुछ महिलाओं को उससे हमदर्दी थी तो कुछ उसे' बदकिस्मत' समझ रही थीं।
मैंने तो सुना है, इसके घर वाले इसे भेजना ही नहीं चाहते थे।
सही सुना है , उनका कथन था- कि विवाह तो पूरा हुआ ही नहीं था, न ही मांग में सिंदूर भरा है, ना ही मंगलसूत्र पहनाया गया है।
क्या बात कह रही हैं बहन जी ! इस तरह से तो यह ''अधूरी दुल्हन ''बनकर रह गई, तब तो इन्हें, इसे लाना ही नहीं चाहिए था,दबे स्वर में दूसरी बोली -यहाँ आकर क्या करेगी ? जब पति ही नहीं ,इस तरह जवान विधवा को घर में रखना कहाँ तक उचित है ?
तभी तो ,इसके घरवाले इसे भेजना ही नहीं चाहते थे किन्तु इन लोगों का कहना है - वह इसे अपने घर की बहू मान चुके हैं।
तब क्या इसको जिंदगी भर विधवा के रूप में यहीं बैठाकर रखेंगे ,दूसरी ने फुसफुसाते हुए कहा -बेचारी की, अभी उम्र ही क्या है ?
धीरे से बोलो दीदी !ये लोग हवेली वाले दुनिया से अलग ही चलते हैं ,ये तो दुनिया को दिखाने के लिए ,मौहल्ले -पड़ोस के दो -चार लोगो को बुला भी लिया है वरना ये लोग किसी से मतलब ही कहाँ रखते हैं ?
गहरी स्वांस भरते हुए बोली - कुछ कह नहीं सकते, न जाने इसके लिए उन्होंने क्या सोचा है ? किसी से इस विषय में चर्चा भी तो नहीं करते , जो इन लोगों को करना होता है, करते हैं।
शिखा जानती थी ,आस -पास जो भी महिलाएं यहाँ बैठी हैं ,और चुपचाप वार्तालाप में व्यस्त हैं ,उनकी चर्चा का विषय मैं ही हूँ। तभी कुछ देर पश्चात, शिखा को बाहर की तरफ अपने पापा की छवि दिखलाइ दी , अपने पिता को देखकर,वह भावुक होकर तुरंत उठ खड़ी हुई, और बाहर की तरफ भागी। अपने पापा को देखकर, उनके गले मिली और रोने लगी। जिसने भी उसकी यह हरकत देखी, उन्हें यह बात पसंद नहीं आई।
कैसी बहू, लेकर आए हैं ? ससुराल के कुछ कायदे -कानून ही नहीं जानती , अपने पिता को देखकर, बच्चों की तरह भाग खड़ी हुई ,उसने यह भी नहीं सोचा कि मेहमान आए हुए हैं। वे लोग, इस घर की बहू के विषय में क्या सोचेंगे ?उस हवेली की बुआ भड़कते हुए बोली।
इसमें क्या सोचना है, अपने पिता को देखकर भावूक होना स्वाभाविक है।
ऐसा भी क्या भावुक होना ? जो घर -परिवार की मान -मर्यादा का ही ख़्याल न रहे।