आखिर यह शिखा के साथ क्या हो रहा है ? शिखा तो चाहती थी, कि वह भी अपने तेजस को आखिरी बार देखे ,उसे'' अंतिम विदाई ''देने जाएगी किंतु उन्होंने तो उससे पूछना भी उचित नहीं समझा। स्वयं ही उसका '' अंतिम संस्कार'' करके आ गए। शिखा को यह बात बहुत बुरी लगी किंतु सभी अजनबियों के मध्य वह अकेली थी। अभी वह किसी को जानती भी नहीं थी। जिन्होंने उससे,और उसके घरवालों से बात की थी, वह भी कहीं दिखलाई नहीं दे रहे थे। अभी तक सब कुछ शांति से हो रहा था। उनके लिए, शिखा का होना या न होना, उन पर जैसे इस बात का कोई असर नहीं है।
मैं,आखिरी बार अपने 'तेजस' को देखना चाहती थी किन्तु इन लोगों ने मुझसे, वह अवसर भी छीन लिया, शिखा का होना न होना उनके लिए जैसे कोई मायने नहीं रखता,जबसे वह यहां आई है ,किसी ने भी, उससे कोई बात नहीं की ,न ही उससे कुछ पूछा अथवा कहा। वहां बैठी महिलाएं शायद रोते -रोते थक गयीं थीं इसलिए रोने के स्वर धीरे-धीरे मध्यम और शांत हो गए। सभी ऐसे उठकर चल दिए ,जैसे -कोई कार्यक्रम समाप्त होने पर ,लोग उठकर चल देते हैं।यह भी ''शोक सभा'' थी जिसमें सभी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अब तक शिखा को पता चल चुका था कि तेजस का ''अंतिम संस्कार'' हो चुका है। किसी अनजान घर में अनजान गांव में, अनजान लोगों के मध्य, वह बैठी हुई थी और किसी ने भी उससे कोई बात नहीं की थी। धीरे-धीरे सभी महिलाओं के चले जाने के पश्चात घर में, तीन औरतें रह गई थीं। जिन में एक तेजस की मां और एक' तेजस' की चचेरी बुआ थी। तब उनमें से एक बोलीं -अब चल ! आराम कर ले। कहते हुए, बंदिनी से कहा-जा ,इसे इसका कमरा दिखा दे !
कौन सा कमरा ?' तेजस' भैया तो अब....... शिखा को ऐसा लग रहा था ,जैसे ये शब्द उसने जानबूझकर बोले हैं।
किंतु उसकी 'बेवा' तो रह सकती है ,वो सपाट शब्दों में बोलीं।
बंदिनी, शिखा को, हवेली की दूसरी मंजिल के एक कमरे में ले गई और उस कमरे के सामने जाकर बोली -आज से ,यह तुम्हारा कमरा है,कोई बाँटने वाला भी नहीं ,कहते हुए उसने शिखा की तरफ देखा,शिखा समझ गयी ,ये व्यंग्य उस पर ही है, किन्तु शिखा चुपचाप आगे बढ़ती रही। जब शिखा ने कमरे के अंदर प्रवेश किया , वह उस जगह को देखकर अचम्भित रह गई , उसके हृदय की धड़कनें तीव्र हो गईं, काफी आलीशान और बड़ा कमरा था , एक सुंदर पलंग सजा हुआ था , उसे देखकर शिखा के रोंगटे खड़े हो गए। ये सब क्या है ?उसने बंदिनी से पूछा।
हमें क्या मालूम ?वो लापरवाही से बोली।
क्यों , क्या तुम इस घर में काम नहीं करती हो ?
काम तो करती हूँ किन्तु उतना ही, जितना मालकिन कह दें।
तब शिखा ने सोचा -हो सकता है ,मेरे आने के इंतजार में, तेजस ने ही यह कमरा सजवाया होगा। उससे खड़ा नहीं हुआ गया,लगा चक्कर खाककर गिर पड़ेगी ,पास पड़े सोफे पर बैठ गई।
तब बंदिनी ने पूछा -बहु जी, कुछ लोगी।
शिखा समझ नहीं पाई, कि वह क्या कहना चाहती है ? तब उसने पास रखें, जग से पानी लेकर पिया और पूछा -तुम कौन हो ?
अभी तो बताया ,मैं इस हवेली में काम करती हूं , मेरा नाम' बंदिनी' है। आपको कुछ भी सामान या चीज की जरूरत हो तो मुझसे कह सकती हो।
ओह !हाँ , यह कमरा कब सजाया गया था ?जबरदस्ती आँखें खोलने का प्रयास करते हुए उसने पूछा।
जब बारात गई थी ,मालकिन ने कहा था -बहु, इसी कमरे में रुकेगी।
अभी तो तुम कह रहीं थीं,तुम्हें नहीं मालूम !
हाँ ,सजाने के लिए कोई बाहर से आया था ,मैंने तो अभी देखा। अच्छा अब तुम जाओ !उसे लग रहा था जैसे उसका सर फट जायेगा। बंदिनी के जाते ही उसने दरवाजा बंद किया और सबसे पहले उस पलंग को देखा,यदि आज तेजस जिन्दा होता तो वो दोनों साथ होते ,उसकी बातें याद कर रोने लगी किन्तु ज्यादा देर तक नहीं रोइ और अपने आंसू पोंछकर ,सबसे पहले वे फूल और मालाएं उस बिस्तर से उखाड़ फेंकी ,अब ये खुशियां मेरे जीवन में कहाँ ?उस पलंग की तरफ देखा ,वह बहुत थकी हुई थी किन्तु बिस्तर पर लेटने का साहस न जुटा पाई और सोफे पर ही निढाल हो गयी। सोच रही थी - वह दीदी कौन है ?इससे पहले की उसका कोई जबाब सोच पाती ,वो गहरी नींद में चली गयी।
बाहर कोई जोर -जोर से दरवाजा खटखटा रहा था ,तब शिखा की नींद खुली ,तब वह सपनो की दुनिया से बाहर आई और उसे फिर से वही एहसास सताने लगा। उसने उठकर दरवाजा खोला -सामने बंदिनी खड़ी थी ,बोली -बहु जी ! मैं कबसे दरवाजा पीट रही हूँ ? कल से तुमने कुछ भी नहीं खाया होगा ,लो चाय-नाश्ता कर लो !
शिखा को स्मरण हुआ ,उसने कल से ही नहीं बल्कि परसों भी कुछ नहीं खाया था ,फेरों के पश्चात वे दोनों साथ में तो भोजन करते ,रातभर वो दुःख में पड़ी रही ,सुबह जब होश आया तो मुझे ले जाने के लिए झगड़े हो रहे थे। किसी ने ध्यान ही नहीं दिया इसने कुछ खाया भी है या नहीं। यहां आकर कोई क्या खाता ?घर में तो भोजन बनता ही नहीं है ,जबसे इस कमरे में आई ,तब से यहीं कैद होकर रह गयी है।थकान, सिर में दर्द इतना था अब जाकर आँख खुली। उसने नाश्ते की ट्रे देखी ,उसमें चाय और कुछ बिस्किट थे। मन ही मन सोचा -क्या ये नाश्ता है ?
उसे सोचते देखकर बंदिनी ने पूछा -बहु जी ! क्या सोच रहीं हैं ?
कुछ नहीं ,घर में क्या सबने नाश्ता किया ?
हाँ ,वो लोग भी खा -पी रहे हैं ,कब तक भूखे रहेंगे ?अब मरने वाले के साथ तो, मरा नहीं जाता ,धीरे -धीरे अपनी ज़िंदगी में लौटना पड़ता है। अच्छा ,बहु जी ! अब तेजस भाई तो रहे नहीं ,अब आप क्या करोगी ?
बंदिनी का यह प्रश्न तेजी से उसके ह्रदय को चीर गया ,उसकी बात में एक सच्चाई भी थी। तब वह बोली -अच्छा तुम जाओ !मैं चाय पी लूंगी।
तब तक तो ठंडी हो जाएगी,पी लीजिये !मुझे फिर बर्तन लेने आना पड़ेगा। बंदिनी की परेशानी को समझ शिखा ने चाय की प्याली उठा ली और बोली - ये बुआ कौन हैं ?'तेजस' !ने तो कभी भी बुआ का जिक्र नहीं किया।
हाय ! आप भइया का नाम लेती हो,मुँह पर हाथ रखकर आश्चर्य से वो बोली।
तो क्या हुआ ?मुझे भी मालूम है ,कि पति का नाम नहीं लेते ,इससे उसकी उम्र कम हो जाती है किन्तु जो रहा ही नहीं...... कहते हुए उसकी आँखें नम हो आईं।
आप सही कह रहीं हैं ,वैसे ये बुआ तेजस की चचेरी बुआ हैं ,उनके तो कोई बहन ही नहीं थी सिर्फ चार बेटे ही थे।
''तेजस''की मम्मी कहां हैं ? मैं उनसे माफी मांगना चाहती हूं।
तभी वो चेतावनी देते हुए बोली - नहीं, अभी उन्हें छेड़ना भी मत , बहुत ही गुस्से वाली हैं ,तुम्हारे मुंह से कुछ उल्टा- सीधा निकल गया तो उनका क्रोध तुम सहन नहीं कर पाओगी। जहां मौत होती है, उस घर में खाना नहीं बनता। बाहर से खाना आता है, किंतु पता नहीं, यह लोग क्या करेंगे ? जब भी खाना तैयार हो जाएगा या कोई भी इंतजाम होगा तो मैं आ जाऊंगी यह कहकर वह ट्रे उठाती है और शिखा के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर वहां से निकल गई।