Muskurane ki vajah

जब से चंद्रप्रकाश जी गए हैं, नैनाजी ,थोड़ी शांत रहने लगी हैं , वह चुप- चुप सी रहने लगीं हैं , उन्हें  लगता है- अब उसके जीवन का कोई उद्देश्य रहा ही नहीं है। अपने में ही खोई-खोई सी रहती हैं। गंभीरता का लबादा ओढ़े, नकली जीवन जी रहीं हैं। चंद्र प्रकाश जी की तो जैसे उन्हें आदत सी बन गई थी। बार-बार रह-रहकर, उनकी याद आंखें नम कर जातीं हैं ।

 ऐसा नहीं है कि चंद्र प्रकाश जी और नैना में कभी झगड़ा नहीं हुआ। हमेशा प्रेम से ही रहे, जीवन में सुख दुख तो उन्होंने भी देखे हैं। उम्र के एक पड़ाव पर लड़ते भी थे, विचारों में भी अंतर था किंतु इतने वर्षों तक साथ रहने से, वह एक दूसरे की आदत बन गए थे। बच्चे कुछ दिन मां के पास रहे, फिर वह भी नौकरी पर चले गए। उनके बेटे प्रकाश ने तो कहा भी था -मम्मी !अब हमारे साथ ही चल कर रहो !


 किंतु अब कहीं जाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे जीने की वजह और इच्छा दोनों ही समाप्त हो गई हैं  फिर भी वह प्रतिदिन उठतीं और अपने सभी कार्य, पहले की तरह पूर्ण करतीं हैं ।

 जीवन में एक खालीपन सा आ गया है , एक दिन, पड़ोसन उनसे हाल-चाल पूछने आई थी उसके हाथ में एक पत्रिका थी, उसी को पढ़ते-पढ़ते उनके घर हाल-चाल पूछने आ गई थीं। कहने लगीं -भाभी जी ! सारा दिन क्या करती रहतीं हैं ? अब तो भाई साहब भी नहीं रहे,आपका मन कैसे लगता होगा ? 

बस यूं ही, उनकी याद में दिन कट रहे हैं, अपने दिन गिन रही हूं, उदास होते हुए बोलीं। 

क्या आपको पढ़ाई का शौक नहीं है, कुछ अच्छी कहानियां, लेख इत्यादि पढ़ा कीजिए।'' अच्छी किताबें,अच्छा साहित्य हमारे  दोस्त होते हैं। कभी -कभी हमारे दिल के मर्म को समझ हमें समझा देती हैं।कभी एहसासों से परिचय कराती हैं ,तो कभी जीवन को जीना सिखा देती हैं। आप पढ़िए !  इनसे भी मन को प्रेरणा मिलती है और इंसान एक अलग ही दुनिया में जीने लगता है। 

मेरी वास्तविक दुनिया तो यही है, मुझे किसी नई दुनिया में नहीं जीना है।यथार्थ में रहना चाहती हूँ।  

कोई बात नहीं, मेरे पास यह पत्रिका है इसमें बहुत अच्छी कहानियाँ हैं, आप पढ़िए आपको अच्छा लगेगा। नहीं अच्छी लगेंगी तो मेरी किताब वापस कर दीजिएगा।

 नैना का किताब पढ़ने का मन तो नहीं था किंतु जब खाली समय मिला, तो उन्होंने किताब उठा ही ली और  ऐसे ही पन्ने पलट कर देखने लगीं  उसमें उन्होंने कुछ शब्द पढे - तब उनका ध्यान एक लेख की तरफ गया उन शब्दों ने बलात ही उनका ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया। जिसमें लिखा था-''जिंदगी जीने का नाम है, मुस्कुराने का नाम है , मुस्कुराने की कोई वजह नहीं होती, ढूंढनी पड़ती है ,जब मन पर बोझ कम होगा तो स्वतः ही मुस्कान आ जाएगी। जिंदगी जीनी पड़ती है, कभी अपने लिए तो कभी औरों के लिए , लेकिन इंसान को कभी, इस जिंदगी से हार नहीं माननी चाहिए। कमबख़्त !यह ज़िंदगी भी कहाँ हार मानती है ?आज हमारे साथ है ,कल किसी और के साथ होगी। हम जिंदा हैं, यही जिंदगी का सबूत है। हमें जीना है, अपने लिए! जिंदगी तो चलती रहती है, यदि हम चले जाएंगे तो भी जिंदगी चलती रहेगी, वह कभी हार नहीं मानती तो फिर हम क्यों ? उदास बैठे हैं ? उसे मुस्कुराने का मौका क्यों नहीं देते ? थोड़ी अच्छी यादें तो होंगी ,मुस्कुराने की वजह तो वही बन जायेंगी। तुम्हारे लिए कोई वजह नजर न आये तो तुम ही किसी के मुस्कुराने की वजह क्यों नहीं बन जाते ? क्यों अपने इस आवरण को उतार ,मुस्कुराने की कोई वजह ढूँढ क्यों  नहीं लेते ? 

ये जीवन एक यात्रा है ,इस यात्रा में कुछ यात्री मिलेंगे कुछ अगले स्टेशन पर उतर जायेंगे तो कुछ अच्छी सच्ची स्मृतियाँ और मुस्कुराने की वजह छोड़ जायेंगे। इस ज़िंदगी ने लिया है तो बहुत कुछ दिया भी है। अपनी उस यात्रा की खिड़की से सुंदर नजारों को देखो और महसूस करो !यह तुम पर निर्भर करता है ,तुम इस यात्रा को रोकर या फिर मुस्कुराकर पूर्ण करना चाहते हो। आईने में अपने आपको देखिये और अपने आप से पूछिए !मैं कब मुस्कुराई थी ?उसी वजह को खोजिये !शायद वहीं से एक प्यारी सी, नन्ही सी मुस्कुराहट आपके चेहरे पर आ जाये।  एक बार मुस्कुराकर तो देखिये !शायद वो भी इसी इंतजार में होगी। 

ये लेखक भी न कितना प्रयास करते हैं ?नैना ने उस लेखक का नाम जानना चाहा ,लक्ष्मी त्यागी ,उनका परिचय जानना चाहा। एक अध्यापिका ,एक गृहणी ,लेखिका एक बड़ा सा अरमानों भरा दिल !जो चाहता है ,हर इंसान खुलकर जिये ,मैं भी जीती हूँ अपनी कहानियों में ,शब्दों में, किसी की मुस्कान में , जो लड़ती है ,उन विपरीत परिस्थितियों से ,हारना नहीं चाहती। साथ ही उनका फोन नंबर भी था। न जाने क्यों ?नैना की इच्छा हुई ,उनसे मिले बातचीत करे। तब उन्होंने लक्ष्मी जी को फोन लगा दिया। हैलो !आप कौन ?

जी मैंने आपका एक लेख पढ़ा '' खुलकर जियो ''अच्छा लगा। 

जी धन्यवाद !वे तो सिर्फ शब्द हैं किन्तु उन शब्दों को दूसरा इंसान कितना महसूस करता है ?उन्हें जीवन में  उतारता है ,वे तभी सार्थक हो जाते हैं। तो बताइये !आपको कोई मुस्कराने की वजह मिली। 

नहीं ,बस अब इस जीवन से मन ऊब चुका है उनके जाने के पश्चात अब कोई इच्छा ही बाकि नहीं रह गयी है। 

आपने उनसे, पहले भी तो जीवन जीया है ,मेरा मतलब है ,जब वो आपकी ज़िंदगी में नहीं आये थे ,तो क्या आप जीती नहीं थीं ,आपके जीवन का कोई मूल्य नहीं था। क्या तब भी मुस्कुराती नहीं थीं ?आपके मुस्कुराने की वजह वो ही नहीं थे। ये तो आप पर निर्भर करता है। 

परसों जो बिल्ली  का बच्चा आपको देखकर म्याऊं -म्याऊं कर  रहा था आपने उसकी तरफ देखा कुदरत का बनाया कितना नायाब तोहफा है ?फूल देखें हैं ,उन्हें महसूस कीजिये ,उनकी कोमलता ,स्पर्श सब कुछ कितना सुंदर है ?ये सब प्रकृति ने हमारे लिए ही तो बनाया है ,फूलों पर उड़ती तितली कभी सोचिये !किस प्रकार ईश्वर ने उनकी रचना की होगी किन्तु अपने  ग़मों के सामने ये सभी हमसे अछूते रह जाते हैं। मुस्कुराने की वजह आपके पास नहीं आएगी ,आपको वो मुस्कुराहट स्वयं ढूंढनी होगी। देखिये !आपके ही कहीं घर के किसी कोने में ,या फिर किसी याद में ,बचपन में ,छुपी बैठी होगी ,वो चाहती है ,आप उसे ढूंढिये ! ढूंढिए ! ओह !माय गॉड !देखिये आपकी ख़ुशी को ढूंढने के चक्कर में मेरी ''दाल जल गयी ''मैं भी न कितना बोलती हूँ ?आज पतिदेव को यही खानी होगी ,अच्छा अभी फोन रखती हूँ ,वे आते ही होंगे। जब भी मन करे फोन कीजियेगा !वैसे मुझे ज्यादा बोलने की आदत नहीं है। 

फोन कट करते ही, उन्हें अपने वही दिन स्मरण हो आये ,जब वो भी ऐसे ही व्यस्त रहती थीं, कितने भा गदौड़ वाले दिन थे ? तभी उस लेखिका की बात उन्हें स्मरण हो आई ,वैसे मुझे ज्यादा बोलने की आदत नहीं है ,इतना कुछ बोल गयी ,यही सोच उनके चेहरे पर मुस्कान आ गयी ,न जाने, इसका पति इसे कैसे झेलता होगा ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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