जब प्रेम की हो पुकार !
करने लगें, हम किसी से टूटकर प्यार !
जीवन जीते थे ,पहले भी ,
देख उसे, चढा प्रेम का बुखार !
लगता देख उसे ,जीना है बस तुम्हारे लिए।
बिन स्वार्थ ,प्रीत की डोर से बंध ,
जीवन की नवीन ऊंचाइयों को छूने लगा हूँ।
जब से जीवन में तुम आई ,
मैं तुम्हारे लिए ,सिर्फ़ तुम्हारे लिएजीने लगा हूँ।
माना कि ,कुछ रिश्ते स्वार्थी हो गए हैं।
एक -दूजे को, भर्मित नजरों से देख रहे हैं।
दुनिया की कैसी भी हवा चले ?
दुनिया बदले,हम नहीं बदले ,जीना पड़ता है।
आज भी हम जी रहे हैं ,सिर्फ तुम्हारे लिए !
तुमने ही तो जीना सिखाया ,
मुस्कुरा आगे बढ़ते रहे ,तुम्हारे लिए !
रिश्ते तो और भी हैं ,जीते हैं जो हमारे लिए ,
न कोई उम्मीद ,न चाहत !
ये जीवन जिया है ,अब तक तुम्हारे लिए !
जीवन को जीने का तुम इक बहाना हो।
अंत समय एहसास हुआ तुम मेरी चाहत हो।
जीता था जिसके लिए ,[स्वचाहत ]
सोचता रहा,जीवनभर जिया हूँ ,तुम्हारे लिए।