Mysterious nights [part 17]

दमयंती अपनी ससुराल से तो आ गई, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि घर वालों से क्या कहे ? इस सब में गलती किसकी है ? किंतु उसका किसी से भी बात करने का मन नहीं कर रहा था जबकि घर में, उसकी प्रतिक्षा में कई रिश्तेदार भी आए हुए थे और उसकी सहेलियां भी आई हुई थीं।  श्यामलाल जी बहुत ही प्रसन्न थे, उनकी बेटी का विवाह एक सम्मानित प्रतिष्ठित परिवार में हुआ है जिनको वो , पहले से ही जानते हैं,वहाँ पैसे की भी कोई कमी नहीं है।उनके अपने व्यापार में भी उनसे लाभ ही होगा।कई बार आदमी जीवन में योजना बनाता रहता है किन्तु उसकी योजना सफल नहीं हो पाती और कई बार योजना बनानी नहीं पड़ती ,स्वतः ही योजना बनती चली जाती है। श्यामलाल जी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ ,अचानक ही उन्हें ठाकुर साहब मिल गए और बात होते -होते ,उनकी दोस्ती रिश्तेदारी में बदल गयी। अब तो ठाकुर परिवार से रिश्तेदारी के कारण ,उनकी अपेक्षाएँ भी बढ़ गयीं। 


 

  गहनों से लदी बिटिया, जब गाड़ी से उतरती है , तो सब उसे देखते हैं। इतने लोगों को देखकर, वह एक झूठी मुस्कान के साथ घर के अंदर प्रवेश करती है किंतु किसी के सामने उसने कुछ भी नहीं कहा ,न जाने अचानक ही उसमें यह समझदारी कैसे आ गयी ? विवाह से पहले, किसी भी बात को लेकर शोर मचा देती थी फिर चाहे कोई भी क्यों न हो ?शोर तो उसने अपनी ससुराल में भी मचाया था किन्तु न जाने कैसे ?अब उसने चुप्पी साध ली है। 

दमयंती का किसी से बात करने का भी मन नहीं कर रहा था,उसकी सहेलियां उसके करीब आकर बैठ गई, रिश्तेदारी में बहनें भी मिलने आईं थीं , वे  भी आकर  बैठ गई और पूछने लगीं - ससुराल में सब कैसे हैं ? तुम्हारी सास तो ठीक है न...... हमारे जीजा जी कैसे हैं ? तुम लोगों ने घूमने के लिए कहां जाने का कार्यक्रम बनाया है ? वहां तो अच्छे-अच्छे पकवान खाए होंगे। मुंह दिखाई में क्या -क्या मिला ?तुम्हारी अभी पहली रसोई हुई है या नहीं , ऐसे अनेक प्रश्न थे जो उसके सामने से होते हुए गुजर रहे थे किंतु दमयंती को इन सब में कोई रुचि नहीं थी न ही वह किसी से बात करना चाहती थी तब वह बोली -मैं थोड़ी देर सोना चाहती हूं।

ओहो !दीदी को तो नींद आ रही है ,जीजाजी ने रातभर सोने नहीं दिया होगा ,कहते हुए सभी हंसने लगीं।  

अपने किसी भी सवाल का जवाब न मिलने पर, और उन सभी के प्रति बेटी के रूखे व्यवहार को देखकर श्याम लाल जी और उनकी पत्नी थोड़ा चिंतित तो हुए किंतु हमें लगता है बेटी बहुत थकी हुई है।तब वो उन लड़कियों से बोले -रूचि !बेटा हमें लगता है ,तुम्हारी दीदी को थोड़ा आराम करना चाहिए।  वहां भी तो मेहमान आए होंगे न जाने, कितनी रस्में निभाई होंगी ? बेचारी की नींद भी पूरी नहीं हुई होगी। इसे थोड़ा आराम करने देते हैं। यह बात घर के अन्य लोगों को भी उचित लगी। दमयंती के लिए नाश्ता लगाया गया किन्तु दमयंती ने नाश्ता करने से इंकार कर दिया। तब शकुंतला जी ने थोड़ा सा खा लो !कहकर नाश्ता  करवाया और उसे सोने के लिए एकांत स्थान दे दिया बाकी सब लोग बाहर आ गए। जब शिवानी भी बाहर जा रही थी तो उसे बाहर जाते हुए देखकर दमयंती में उसे रोक लिया। 

क्या तू भी जा रही है ?

हां तू आराम कर. मैं फिर आऊंगी......

तू आज मेरे पास बैठ ! मुझे तुझसे कुछ बातें करनी है।

अभी आती हूँ ,घर पर बताकर आती हूँ ,तब आराम से बातें करेंगे। 

नहीं ,तू जा !शाम को आना !कहकर दमयंती ने शिवानी को जाने दिया।सबसे पहले तो उसने अपने भारी वस्त्र और गहने उतारे,उसके पश्चात अपनी शय्या पर लेटकर दमयंती मन ही मन सोच रही थी ,मैं उसे क्यों रोक रही थी ?उससे क्या कहूंगी ?कहना तो बहुत कुछ चाहती हूँ किन्तु इस कहानी की शुरुआत कहाँ से करूँ ? मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा ,तभी उसे वो बात स्मरण हो आई जब ज्वाला ने उसे अपनी भाभी के रूप में देखा था।  

उसके मन में क्या चल रहा होगा ? क्या उसे पता था या फिर मेरी तरह ही धोखे में रहा।आज मैं उस घर की बहु हूँ ,ज्वाला से विवाह करके भी वहीं जाना था किन्तु अब मेरी ज़िंदगी में बहुत बदलाव आ गया। मुझे उससे एक बार मिलना तो चाहिए ,तभी कुछ कर पाऊँगी। अचानक ही उसकी बेचैनी बढ़ने लगी। तभी उसे अपने फोन का विचार आया। सामान के नीचे रखे फोन को ढूंढा ,ये तो अच्छा हुआ मैंने वंदना से ज्वाला का नंबर ले लिया था। वह उसका नंबर देखती है किन्तु अंगुलियां कंपकंपाने लगती हैं ,उसने फोन नहीं उठाया तो... फोन उठा लिया तो उससे क्या कहूंगी ? 

शाम को शिवानी, दमयंती के करीब आई और बोली- तू मुझे कुछ परेशान लग रही है , क्या कुछ हुआ है, तेरी ससुराल वाले कैसे लोग हैं ? उसके इतना पूछते ही दमयंती जोर-जोर से रोने लगी, चुप कर कुछ हुआ है ,क्या ?क्या तेरी सास ने कुछ कहा है ? किंतु दमयंती कई दिनों से अपने मन  के इस गुब्बार को लिए हुए बैठी थी। उसे वहां, कोई सुनने वाला नहीं था वह कहना चाहती थी, चीखना चाहती थी किंतु कुछ लाभ नहीं था। इसी कारण उसके मन में, दुख का गुब्बार भर गया था। वह अपनी सखी के सामने निकाल रही थी। वह रोती रही,शिवानी उसे सहलाती रही और सांत्वना देती रही। 

जब दमयंती रोकर थोड़ा शांत हुई ,तब शिवानी ने पूछा -क्या कुछ हुआ है ?तुझे तो प्रसन्न होना चाहिए कि तेरा विवाह उसी जगह हुआ जिसे चाहा। 

उसकी बात सुनकर दमयंती को फिर से रोना आ गया। अब रोये जाएगी या कुछ बताएगी भी...... परेशान होकर दमयंती से बोली। 

अब तुझे क्या बताऊं ?जीवन में हम जो सोचते हैं ,वही हो जाये ,हर किसी की किस्मत ऐसी  नहीं होती।

तू ये क्या पहेलियाँ बुझा रही है ?बताती क्यों नहीं, क्या कुछ हुआ है ? 

क्या वो शराब पीता है या कुछ और बात है। 

शराब पीता तो कोई बात नहीं थी ,किन्तु मेरी किस्मत ने मुझे बहुत बड़ा धोखा दिया। तू जानती नहीं ,मेरा पति वो नहीं है जो होना चाहिए था कहते हुए रोने लगी। 

शिवानी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था ,तू मुझे विस्तार से बता !  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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