इंस्पेक्टर सुधांशु की तहक़ीक़ात आगे बढ़ती है और सौम्या तक पहुंच जाती है। आज सौम्या उनकी पूछताछ का हिस्सा बन जाती है किन्तु जब उससे नितिन के विषय में इंस्पेक्टर साहब पूछते हैं ,तो वह उसके विषय में कुछ भी कहना नहीं चाहती। तब इंस्पेक्टर को नितिन पर कुछ अधिक शक हो जाता है ,ऐसी क्या बात है ?जो ये लड़की उसके विषय में बात करना ही नहीं चाहती है।
क्यों, तुम्हारे साथ,उसने ऐसा क्या किया ?जो तुम ऐसा कह रही हो ,उसने तुम्हें छेड़ा या तुमसे कोई अभद्र व्यवहार किया।
नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं है।
तब तुम ऐसा क्यों कह रही हो ?तुम्हें उसके विषय में बात नहीं करनी है।
जिस राह जाना ही नहीं ,उसका पता क्या पूछना ?
ये बात तुम हमें मत समझाओ !हमें किस राह चलना है ,किस राह नहीं ? हमें ये बताओ !उसने तुम्हारे साथ ऐसा क्या किया ?जो तुम इस तरह से बातें कर रही हो थोड़ा सहज होते हुए इंस्पेक्टर बोले -हो सकता है ,तुम्हारे द्वारा दी गयी थोड़ी सी भी जानकारी हमारे लिए इस केस में आगे बढ़ने में मददग़ार साबित हो सके और एक खूनी, हत्यारे को पकड़वाने में मदद मिल सके।
आपकी बात अपनी जगह सही है ,पूछिए !आप क्या पूछना चाहते हैं ?
जब तुम नितिन से मिलीं ,वो कैसा लड़का था ?मेरा मतलब है ,उसका व्यवहार ,उसकी सोच इत्यादि जो भी तुमने महसूस किया हो।
बेहद शर्मीला ,शांत प्रकृति का लड़का था ,मुझे उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी किन्तु अन्य लड़कों की अपेक्षा मुझे उससे बात करना ज़्यादा सहज लगा। धीरे -धीरे हम बातें करने लगे ,उसने मेरी सहायता भी की।
कैसी सहायता की ?
मैं कॉलिज देर से आई थी ,मेरा कोर्स काफी पीछे छूट गया था।तब उसने ही मेरे नोट्स बनवाये।
इसका अर्थ है ,वो एक साधारण ,सीधा ,मददगार और सज्जन लड़का है।
है, नहीं ,था।
मतलब !
वो पहले बहुत अच्छा था किन्तु उसके दोस्तों की संगत सही नहीं थी , न जाने किस -किससे मिलने लगा ? हमारी दोस्ती के मायने ही बदल दिए। नशा करने के साथ -साथ, बेचने भी लगा। जब उसके हाथ में पैसा आया तो मुझको दिखाने के लिए ,पार्टी करने लगा। सौम्या की बताई ,सभी मुख्य बातें विकास लिखता जा रहा था।
तुम्हारी दोस्ती के मायने कैसे बदले ?हमने सुना है ,वह तो तुमसे प्यार करता था।
मायने से मेरा तात्पर्य यही है ,मैं सिर्फ़ दोस्ती तक ही सीमित रहना चाहती थी किन्तु उन लोगों के बहकावे में आकर वह आगे बढ़ने की सोचने लगा।
वो भला ऐसा क्यों करेगा ?प्यार क्या, किसी के कहने से होता है ?वो स्वयं भी चाहता होगा।
ये सब मैं, नहीं जानती ,जब उसने मुझसे कहा -मैंने उससे तभी कह दिया था कि मैं इस रिश्ते को दोस्ती तक ही सीमित रखना चाहती हूँ किन्तु उसने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया और अपने जन्मदिन की पार्टी दी जिसमें सभी लोगों को बुलाया।
वैसे लड़का तो बुरा नहीं है,क्या तुम्हारे मन में एक बार भी यह विचार नहीं आया।
आप भी वही बातें कर रहे हैं ,मेरे मन में एक पल के लिए ही सही ,एक बार ये विचार आया था किन्तु मैंने उसे बदलते हुए देखा है। मुझ पर अधिकार जताने लगा था ,नशा करता ,आप ये भी तो कह सकते हैं ,मेरा प्यार भी उसे बदल न सका, अपनी मनमर्ज़ी करता था। उसे लगता था ,उसे जो चाहिए पा ही लेगा किन्तु मैं उसकी यह गलतफ़हमी दूर कर देना चाहती थी। मेरे प्यार के लिए उसने बदलना उचित नहीं समझा बल्कि मुझे पाने के लिए,अपने पैसों का दिखावा ज्यादा करने लगा इसीलिए मैंने उससे दूरी बनाने का निर्णय कर लिया।
इंस्पेक्टर सुधांशु सोच रहे थे ,लड़की तो बड़ी समझदार है ,इसीलिए इसने उससे दूरी बनाई ,क्या सच में ही इसका रिश्ता हुआ है। हो सकता है ,वो इसके सामने झुकना तो नहीं चाहता, हो सकता है ,इसके प्रति उसके मन में जो गुस्सा है ,उसके कारण ही ये दुर्घटनाएं...... आँखें सिकोड़ते हुए नहीं हत्याएं हो रही हैं।
अच्छा, एक बात बताओ ! क्या सच में ही ,तुम्हारी सगाई हुई है ?
इंस्पेक्टर की इस बात पर सौम्या थोड़ी देर के लिए चुप हो गई फिर बोली -अभी मेरी पढ़ाई कहां पूरी हुई है ? किंतु मैं जानती थी, उसे मुझसे अभी भी उम्मीद है इसीलिए मैंने कह दिया - कि मेरा विवाह हो तय हो गया है। यदि ऐसा नहीं करती, तो उसे मुझसे उम्मीद बनी रहती और वह अपनी हरकतें भी नहीं छोड़ता ।
तुम उससे एक बार कह कर तो देखतीं , हो सकता है, वह तुम्हारे लिए बदल जाता।
मैं ,उससे कोई प्यार -व्यार नहीं करती ,जो मैं प्रयास करूं ,वो इतनी आसानी से बदलने वाला नहीं है। ''अच्छा इंसान बुराई की तरफ शीघ्र ही खिंचा चला जाता है, किंतु बुरे इंसान को अच्छाई की तरफ बढ़ने में समय भी लगता है और कभी-कभी वह बदलता भी नहीं है। हो सकता है, मेरे आगे बढ़ जाने के पश्चात, वह फिर वैसे ही कदम उठाता फिर से बुराइयों में लिप्त हो जाता।
ऐसा कुछ भी नहीं है, हमने तो प्यार- मोहब्बत के लिए बड़े-बड़े खतरनाक लोगों को बदलते देखा है।
मैंने समाज को सुधारने का ठेका नहीं लिया है ,मैं इतना समय उसमें व्यर्थ गंवाऊ उससे बेहतर मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूँ ,आपने उसकी अकड़ नहीं देखी, उसने एक बार भी मुझसे नहीं पूछा -कि मैंने ऐसा क्यों किया ?
क्यों, यह तुम झूठ बोल रही हो , वह तो तुम्हारे पास आया था तो तुमने उसे बता दिया था कि दीपक से मेरा रिश्ता हो गया है ,तब वह क्या कहता ? तुमने उसे और भटका दिया। यह तुम्हारी अपनी समझ की बात है। तुम बात करके एक बार स्पष्ट रूप से, कहकर देखती तो सही !
इससे कुछ नहीं होता, कविता तो उसे मुझसे ज्यादा चाहती थी किंतु आज कविता जिंदा नहीं है , यह बातें कहते हुए जैसे वह कहीं गहराई में चली गई। यदि वह प्यार के लिए बदलता या बदलना चाहता तो कविता के लिए भी बदल सकता था।
ऐसा नहीं होता है, जब वह तुमसे प्यार करता था तो तुम्हारे लिए, हो सकता है, बदल भी जाता किंतु तुमने बेरुखी अपनाई।
मुझे जो उचित लगा, मैंने किया।
अब उसे जो उचित लग रहा है, वह कर रहा है। क्या तुम जानती हो ? जब उसे पता चला था कि तुम्हारा रिश्ता तय हो गया है, उसके पश्चात वह कहीं चला गया था।
मैंने ध्यान ही नहीं दिया, मुझे लगता था- वह मुझसे बच रहा है।
बड़ी अजीब लड़की हो।