कपिल जब इंस्पेक्टर सुधांशु से मिलकर गया, तब उसके मन में भी, अनेक प्रश्न उभरे और वह फिर से, उस कॉलेज की तरफ निकल गया। पता नहीं, आजकल बच्चों को क्या होता जा रहा है? सीधी राह कोई चलना ही नहीं चाहता है। यह तो पूछना ही होगा, यह पार्टी किस खुशी में दी जा रही थी और उस पार्टी से वह लड़की हॉस्टल कब आई ? जब इंस्पेक्टर सुधांशु कॉलेज पहुंचा, [अब तक सभी को मालूम हो गया था कि यह कोई मनोचिकित्सक नहीं हैं बल्कि इंस्पेक्टर हैं ]तो सीधे कॉलेज के प्रधानाध्यापक के कमरे में उपस्थित हुआ किन्तु उस समय ,वो वहां पर नहीं थे। वह वहीं बैठकर उनकी प्रतीक्षा करने लगा। मन ही मन सोच रहा था - प्रिंसिपल साहब ! तो बात को आगे बढाना ही नहीं चाहते हैं,उन्हें डर हैं , कहीं कॉलेज की छवि खराब न हो जाए।
तभी वहां दयाराम आता है और पूछता है -साहब !आपको कुछ चाहिए।
सुधांशु ने उसकी तरफ देखा और पूछा -अपने प्रिंसिपल साहब कहाँ गए हैं ?
जी ,आते ही होंगे ,आज न जाने कैसे देरी हो गयी ?
आज मैं जो आया हूँ ,कहकर सुधांशु मुस्कुराया।
जी...... आपने कुछ कहा ,हाँ ,एक गिलास पानी ला दीजिये।
जी ,कहकर दयाराम वहां से चला गया। प्रिंसिपल साहब तो ऋचा के केस में भी, इतनी दिलचस्पी नहीं दिखला रहे हैं ,वे नहीं चाहते कि किसी भी छात्र पर शक जाये। जब इंस्पेक्टर कपिल ने पूछा- कि आप को क्या लगता है ?ऋचा का क़त्ल हुआ है या फिर ये एक घटना है।
तब उस कॉलेज के प्रिंसिपल साहब बोले -देखिए, जी बच्चे हैं ,उनके साथ जिम्मेदार दो अध्यापक और अध्यापिका भी गए हुए थे । कभी-कभी नादानी में बच्चे ऐसी हरकतें कर जाते हैं जिनको समझना मुश्किल हो सकता है, न जाने, अन्य छात्रों को क्या दिखलाना चाहती थी ? अब तो वह मगरमच्छों का शिकार हो चुकी है, किंतु हमारे अन्य छात्रों को आप क्यों परेशान कर रहे हैं ? शक की कोई वजह बनती ही नहीं है, क्यों व्यर्थ में इस केस को बढ़ा रहे हैं ?यह एक हादसा है ,समझकर इस केस को रफा- दफा कीजिए।
तभी प्रधानाचार्य जी ने अपने कक्ष में प्रवेश किया ,सुधांशु को अपने ऑफिस में देखकर, प्रधानाध्यापक उनसे नज़रे चुराते हुए बोले - इंस्पेक्टर साहब ! कैसे आना हुआ ?
क्या आप नहीं जानते हैं? सुधांशु ने सीधे-सीधे उनसे प्रश्न किया। आपके कॉलेज में यह दूसरी दुर्घटना हुई है , इसे आप क्या कहेंगे ? आपके छात्र कहीं भी जाकर पार्टियां करते हैं, घूमते- फिरते हैं, आपको पता ही नहीं रहता है। यह कैसी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, आपके कॉलिज की एक छात्रा की हत्या हो जाती है और आपको पता ही नहीं।
देखिये..... !
क्या कॉलेज को इस पार्टी की कोई जानकारी थी ?
बच्चे हैं, और इतने बच्चे भी नहीं है कि उन्हें हाथ पकड़ कर रोका जाए , किसी का जन्मदिन होगा, या किसी के लिए कोई विशेष दिन होगा उसी के लिए किसी ने पार्टी दी होगी, इसमें कॉलेज क्या कर सकता है ?या हम क्या कर सकते हैं ?
जो बच्चे हॉस्टल में रहते हैं उनके प्रति तो कुछ उत्तरदायित्व बनता है ,वे अपने परिवार से दूर हैं, अच्छा -बुरा जो भी करते हैं इसमें कॉलिज का उत्तरदायित्व भी बनता है। कल को यदि बच्चा किसी की हत्या कर देता है, अथवा किसी को नुकसान पहुंचाता है या कोई भी गैर कानूनी कार्य कर रहा है तब भी क्या कॉलेज के लोग , उसका उत्तरदायित्व नहीं उठाएंगे। उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वह यह देखें कि बच्चा कहां और क्या कर रहा है ?
सर !आप कौन सी दुनिया में है ? आजकल के बच्चे अपने माता -पिता की नहीं सुनते, हम लोग इतना बड़ा कॉलेज संभाल रहे हैं कुछ नियम भी बनाए हुए हैं किंतु हर बच्चा एक जैसा नहीं होता है कोई ना कोई तो लीक से हटकर कार्य करता ही है, अब इसको आप क्या कहेंगे ?
अब आप बताइये ! हम आपके लिए क्या कर सकते हैं ?
नाराज होते हुए सुधांशु कहता है -आप हमारी इतनी सहायता कर दीजिए, उस दिन पार्टी में जो लोग गए थे उन छात्रों की एक सूची मेरे पास भेजिए और यह पार्टी किस खुशी में दी गयी थी ? उनका उद्देश्य क्या था ? और किसने यह पार्टी दी थी ? इस सब की जानकारी आप मुझे, मेरे पास भिजवा दीजिए।
सुधांशु के इस तरह जानकारी मांगने पर प्रधानाध्यापक को अच्छा तो नहीं लगा किंतु क्या कर सकते थे ? कानून की सहायता नहीं करेंगे, तो हम परआंच आ सकती है ,हमें भी गलत ठहरा दिया जाएगा लगेगा कि हम भी अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं। एक मन कह रहा था, यह गलत तो हुआ ही है, अब यह किसने किया है ? जो भी करेगा, उसका दंड उसको भुगतना ही होगा यह सोचकर, प्रधानाध्यापक ने दयाराम को बुलाया और उससे कहा- इंस्पेक्टर साहब !जो कुछ भी, सहायता मांगते हैं , उनकी सहायता करिए। इतने बड़े कॉलेज में इंस्पेक्टर को एक कमरा दे दिया गया कुछ देर की प्रतीक्षा के पश्चात इंस्पेक्टर सुधांशु के सामने उन बच्चों की सूची थी जो उस रात्रि पार्टी में गए थे। पार्टी नितिन नामक लड़के ने दी थी। उसको बुलाया गया, किंतु वह नहीं आ पाया।
वह क्यों नहीं आया है ?सुधांशु ने दयाराम से पूछा।
सर ! उसकी तबीयत खराब है।
क्यों उसकी तबीयत को क्या हुआ है ? मैं चाहूं तो उसे थाने में भी बुला सकता हूं किंतु मैं सोच रहा हूं। पूछताछ का कार्य यहीं पर समाप्त हो जाए तभी कुछ आगे बढ़ा जाए वरना थाने में जाकर कैसी पूछताछ होती है वह तो तुम समझते ही हो दयाराम की तरफ घूरते हुए इंस्पेक्टर सुधांशु ने कहा।
जी ,मैं एक बार और कह कर देखता हूं।
कहकर नहीं देखना है, उससे कहना है , जैसे भी और जिस भी हालत में है, वह यहां चलाएं मुझे उससे कुछ प्रश्न पूछने होंगे , उसे ज्यादा कुछ नहीं करना है।
नितिन क्यों नहीं आ रहा है ? क्या वह बीमारी का बहाना बना रहा है ? अथवा कोई और कारण है, नितिन आएगा या नहीं यह जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।