Najuk rishte

 जिंदगी को बोझ समझे हुए हैं,

 रिश्तों, जीवन कतराए हुए हैं।

 'अविश्वास 'के भंवर में डूबे हैं। 

 ''अपनों से ही' घबराये हुए हैं।

समझ आता नहीं, ज़िंदगी कहाँ जा रही है ?

कभी लगता, असमंजस में फंसी जा रही है। 

अविश्वास की डोर खींचती चली जा रही है।

न जाने क्यों मजबूर हैं ?रिश्ते निभा रहे हैं।

आजकल - 

बोझ बन गए, रिश्ते भी आजकल,

मौक़े की तलाश में रहते हैं, आजकल। 

किसी पर टूटा ग़म साया है ,

किसी के मन में सुकून है , आजकल। 

 मुँह छिपा, मुस्कुरा रहे हैं ।  

वार करते हैं ,''पीठ पीछे 'आजकल। 

मौका मिले तो गैर के कांधे,

पर रख दोनाली चलाते हैं,आजकल। 

न जाने क्यों ?रिश्ते बौरा गए हैं ,

 झूठे रिश्ते निभा रहे हैं ,आजकल !

किसी से न पूछेंगे- हाल क्या है ?

 मौत पर झूठे आंसू बहा रहे, आजकल। 

''अर्थ'' के पुजारी हो गए हैं ,

सिक्कों की खनक न मिले,तो पूछते नहीं, आजकल। 

डरे -सहमे से रिश्ते हैं ,झूठा साथ निभा रहे आजकल। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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