जिंदगी को बोझ समझे हुए हैं,
रिश्तों, जीवन कतराए हुए हैं।
'अविश्वास 'के भंवर में डूबे हैं।
''अपनों से ही' घबराये हुए हैं।
समझ आता नहीं, ज़िंदगी कहाँ जा रही है ?
कभी लगता, असमंजस में फंसी जा रही है।
अविश्वास की डोर खींचती चली जा रही है।
न जाने क्यों मजबूर हैं ?रिश्ते निभा रहे हैं।
आजकल -
बोझ बन गए, रिश्ते भी आजकल,
मौक़े की तलाश में रहते हैं, आजकल।
किसी पर टूटा ग़म साया है ,
किसी के मन में सुकून है , आजकल।
मुँह छिपा, मुस्कुरा रहे हैं ।
वार करते हैं ,''पीठ पीछे 'आजकल।
मौका मिले तो गैर के कांधे,
पर रख दोनाली चलाते हैं,आजकल।
न जाने क्यों ?रिश्ते बौरा गए हैं ,
झूठे रिश्ते निभा रहे हैं ,आजकल !
किसी से न पूछेंगे- हाल क्या है ?
मौत पर झूठे आंसू बहा रहे, आजकल।
''अर्थ'' के पुजारी हो गए हैं ,
सिक्कों की खनक न मिले,तो पूछते नहीं, आजकल।
डरे -सहमे से रिश्ते हैं ,झूठा साथ निभा रहे आजकल।