आज खेड़ा गांव के, सरपंच के यहां, उनकी बेटी 'शिखा' को देखने कुछ लोग आएंगें। जब गांव में किसी बेटी का विवाह होता है या फिर कोई रस्म भी होती है तो गांव के सभी लोग मिलकर सहयोग करते हैं और आज तो सरपंच किशोरी लाल जी की बेटी को देखनेवाले आ रहें हैं। घर में ही नहीं, गांव में भी ,अच्छी चहल-पहल है कोई शरबत बना रहा है, तो कहीं पकोेड़े तले जा रहे हैं तो कोई बाजार से सामान ला रहा है। सरपंच जी मेहमानों के साथ आने से पहले ही, सब तैयारी कर लेना चाहते थे।
सरपंच जी ! कितने लोग आ रहे हैं ? एक व्यक्ति ने पूछा।
कम से कम बीस -पच्चीस लोग तो आएंगे ही।
बेटी को देखने के लिए इतने लोग बुलाये हैं, मुझे तो ठीक नहीं लग रहा।
वे ठाकुर लोग हैं, उनके सभी कार्य बड़ी शान से होते हैं।
आ[प ,किंन ठाकुरों की बात कर रहे हैं ?
मैं उनके विषय में, ज्यादा तो कुछ नहीं जानता किंतु उनमें से एक उनका भाई पहलवानी करता है ठाकुर बलवंत सिंह ! एक बार उनसे अखाड़े में मुलाकात हुई थी। बड़े अच्छे आदमी लगे। बातों ही बातों में पता चला, उन्हें अपने पुत्र के लिए, पुत्रवधू की तलाश है इसीलिए हमारी बात हुई, और उनके बेटे के लिए मैंने अपनी बेटी शिखा का प्रस्ताव रख दिया।
कुछ ही देर में एक लड़का दौड़ता हुआ आता है और कहता है -चाचा ! लगता है, वह लोग आ गए।
जाओ !जाओ ! तुम सब तैयारी देखो ! मैं यहां पर उनका स्वागत करता हूं कहते हुए सरपंच जी, उनके स्वागत के लिए द्वार की तरफ बढ़ गए। वह उन सभी लोगों में'' पहलवान बलवंत सिंह'' को ही जानते थे इसीलिए बोले - ठाकुर साहब ! आपका स्वागत है, आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई।
नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है ,अब आप इनसे मिलिए -यह हमारा सबसे बड़ा बेटा ''तेजस'' है उस छोटे गर्वित और गौरव, और यह पुनीत और सुमित हैं । आप हमारे बड़े भाई साहब ! जगत सिंह, हरिराम और मैं उनसे छोटा हूं। सबसे छोटे वाले का आना नहीं हुआ।
आईये ! आपका स्वागत है, क्या घर में कोई महिला नहीं थी ? उन्हें भी साथ ले आते तो अच्छा लगता।
घर में हमारी पत्नी है, बहुएं अभी तक आई नहीं हैं , उनके उत्तरदायित्व बहुत हैं इसीलिए हम उन्हें ला न सके बलवंत सिंह जी ने, उन्हें अपनी बात समझाइ। घर में बहू आ जाएगी, तो उसके पश्चात, उनका भी बाहर निकलना हो जाया करेगा।
सही कह रहे हैं, सरपंच जी बोले। तभी कुछ प्लेटों में, नाश्ते का सामान आता है और मेज को खाने की सामग्रियों से भर दिया जाता है। सभी खाने पर ध्यान दे रहे थे किंतु सरपंच जी का ध्यान सिर्फ ''तेजस'' की तरफ था वह देखना चाहते थे कि जिस लड़के के हाथों में मैं, अपनी बेटी का भविष्य सौंप रहा हूं वह लड़का कैसा है ?' तेजस'' देखने में बहुत ही सुंदर था ,देखने से कम उम्र का होनहार बच्चा लग रहा था ,अभी बारीक़ -बारीक़ मूछें ही आईं हैं ,शहर में जाकर स्नातक की पढ़ाई भी कर रहा था।पीली चैक की कमीज़ में उसका रंग और निखर आया था। सरपंच जी को अपनी ओर देख वह शर्मा गया।
तब सरपंच जी बोले -बेटा !तुम भी खाओ !मैं अभी आया। किशोरी लाल जी, घर के अंदर गए और अपनी पत्नी से पूछा -क्या तुमने लड़के को देखा ?
नहीं, मैंने अभी नहीं देखा, आओ ! तुम्हें दिखलाता हूं कहते हुए ,वो उनका हाथ पकड़कर उन्हें एक झरोखे की तरफ ले गए, जहां से उन लोगों को आसानी से देखा जा सकता था। तब वह बोले वह जो पीली कमीज में लड़का बैठा है वही' तेजस 'है।
किंतु इसका चेहरा तो दिख नहीं रहा है , शिखा की मां इधर-उधर गर्दन घुमाकर देख रही थी, शायद उसका चेहरा दिख जाये, किंतु वह सभी लोग खाने में व्यस्त थे और किसी न किसी का चेहरा अथवा उसका सिर बार-बार उसके आगे आ जाता था जिसके कारण शिखा की मां उसे नहीं देख पा रही थी।
अच्छा ये सब छोडो !जब शिखा को दिखाने की बात आएगी ,तुम उसे ले आना और लड़का भी देख लेना। तब सरपंच जी बोले-मैं बाहर जाता हूं ,नहीं तो वो लोग कहेंगे -हमें बुलाया और न जाने सरपंच जी कहां चले गए ?वापस लौटकर आये और बोले -तुम उसे यहीं से देखने का प्रयास करना ,यदि तुम्हें लड़का पसंद आता है तो फिर इन्हें हम अपनी बेटी दिखा देंगे और यदि पसंद नहीं आता है। तो नाश्ता करवा कर, इन्हें भेज देंगे।
मेरी पसंद क्या कहते हो ? क्या आपको लड़का पसंद है ? यदि आपको पसंद है तो अच्छा ही होगा।
हां, मुझे तो अच्छा लग रहा है, लड़का सीधा और सज्जन भी लग रहा है। सुना है, उनकी बहुत बड़ी हवेली है, पैसे की कोई कमी नहीं है, शहरों में भी इनके कई व्यापार हैं। यदि हमारी शिखा का विवाह इस परिवार में हो गया, इसके तो भाग्य ही खुल जाएंगे। ऐसा अमीर घराने का रिश्ता, घर बैठे- बिठाये आ गया इससे अच्छी और क्या बात होगी ? कहते हुए वे बाहर चले गए।
अरे सरपंच जी ! आप कहां चले गए थे ? देख लीजिए, बच्चों ने नाश्ता हाथों हाथ निपटा दिया। बहुत ही स्वादिष्ट था, यह सब किसने बनाया है ? हमारी धर्मपत्नी और मोहल्ले की महिलाओं ने मिलकर बनाया है।मैंने कहा था -हलवाई बुला लेते हैं किन्तु मानी ही नहीं , वैसे हमारी बिटिया भी अच्छा खाना बना लेती है।
हमारे घर में तो नौकर- चाकर हैं खाना बनाने के लिए भी, रसोईया लगा हुआ है किंतु कभी-कभी आपकी बिटिया के हाथ का भोजन भी कर लिया करेंगे। मन ही मन किशोरी लाल जी बहुत ही प्रसन्न हो रहे थे। उनकी बिटिया को तो कुछ भी कार्य करना नहीं पड़ेगा। भोजन के लिए भी रसोईया लगा हुआ है, वैसे तो हमारे घर में भी कोई कमी नहीं है किंतु हमारे यहां तो घर के सभी कार्य महिलाएं ही करती हैं। नाश्ता करने के पश्चात बलवंत सिंह जी बोले - क्या सोच रहे हैं ?अब जरा बेटी को बुला दीजिए ! जिसके लिए आए हैं, अभी तक उसको ही नहीं देखा कहते हुए हंसने लगे।
किशोरीलाल जी सोच रहे थे -पत्नी की तरफ से कुछ इशारा मिल जाता तो..... किन्तु सबके सामने दुबारा कैसे उठकर जाएँ अथवा किसको भेजें ?यही सोच रहे थे ,जैसा सोचते हैं या योजना बनाते हैं ,जरूरी नहीं समय पर ऐसा ही हो,तब समयानुसार निर्णय लेना पड़ता है। उन सबको अपनी तरफ देखते हुए देखकर बोले -जी ,जी, अभी बुलवाए देते हैं, किशोरी लाल जी ने अपनी पत्नी को आवाज दी -शिखा की मां ! जरा बिटिया को ले आओ !
कुछ देर की प्रतिक्षा के पश्चात, अपनी मां के साथ, शिखा ने उस कमरे में प्रवेश किया, शिखा की सुंदरता देखकर, सभी अत्यंत प्रसन्न हुए, आंखों ही आंखों में सबने अपनी सहमति जतला दी।