Shaitani mann [part 81]

आज भी अर्धरात्रि में ,नितिन कमरे से बाहर जा रहा था ,तभी रोहित भी उठ जाता है ,तब वह सुमित को उठाता है और उसके मुँह पर हाथ रखता है ,इशारे से कहता है -वह कोई आवाज  न करे और चुपचाप उठकर उसके पीछे आये। नितिन के पीछे, उसके दोनों सहपाठी और मित्र सुमित और रोहित चले जा रहे थे। उन्होंने देखा ,नितिन बड़ी फुर्ती से उस दीवार पर चढ़ा और दूसरी तरफ कूद गया। दोनों के मुँह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए।  ऐसा लग रहा था जैसे वह पहले से ही, ऐसे खेल करता आया हो। सुमित ने रोहित से शांत रहने के लिए कहा और बोला -आज हम जानकर ही रहेंगे आखिर यह कहाँ जाता है ? यह नींद में है या फिर....... सोचते हुए उसके बदन में झुरझुरी सी आ गयी। 


इस तरह अंधेरे में तीन साये आगे बढ़ रहे थे ,देखा जाये तो हॉस्टल के मुख्य द्वार, पर चौकीदार था किन्तु इस बात की उसको भी खबर नहीं थी कि कॉलिज की पिछली दीवार के समीप क्या चल रहा है ?हॉस्टल के तीन छात्र हॉस्टल से बाहर हैं। वे साये ,आगे बढ़ते जा रहे थे ,पीछे दो साये आगे तो बढ़ रहे थे किन्तु किसी अनजाने भय से डरे हुए भी लग रहे थे। ऐसे में ,उनका  साथ देने वाला कोई नहीं था। उन्हें ज्यादा दूर तक चलना नहीं पड़ा शीघ्र ही ,वो मिटटी का घर आ गया और नितिन उसके अंदर चला गया। पीछा करते हुए ,वे दोनों भी वहां पहुंचे ,वह मिटटी का बना हुआ एक कमरा था।एक भी ईंट नहीं लगी हुई थी।  उसके मध्य में एक हवनकुंड बना हुआ था। जैसा कि उन्हें नितिन ने बताया था ,वे चौकन्ने आसपास देख रहे थे किन्तु उन्हें कहीं भी नितिन दिखलाई नहीं पड़ा। कमरे के दूसरे छोर पर, एक बड़ा सा माट उन्हें दिखलाई दिया।हम नितिन से पहले कॉलिज में आये थे किन्तु हमने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया और ये कल का आया लौंडा हमसे काफी आगे निकल गया।  

देख !वैसा ही 'माट '[मिटटी का बड़ा मटका ]शायद ये वही रास्ता है ,जो उस तहखाने में जाता है ,आज हम भी तो देखें ये रास्ता किधर जाता है ? किसी ने इसे अपने किस निजी स्वार्थ  के लिए बनाया होगा ? फुसफुसाते हुए सुमित बोला। 

दोनों जैसे ही आगे बढ़ते हैं ,तभी एक जोरदार मुक्का सुमित के चेहरे पर पड़ता है ,इस अचानक हुए हमले की तो उन्हें, जैसे उम्मीद ही नहीं थी सुमित, लड़खड़ाकर नीचे गिर गया। सुमित !सुमित !क्या हुआ ?तू ठीक तो है रोहित ने उसकी तरफ देखकर पूछा ,तभी उस बड़े से 'माट 'के पीछे से नितिन बाहर आया और मुस्कुराते हुए बोला -तुम लोग मेरा पीछा कर रहे थे। 

तूने ये क्या किया ?रोहित नितिन से बोला -तूने सुमित पर हाथ उठाया है। वो हमारा दोस्त है किन्तु नितिन का व्यवहार ऐसा रहा, जैसे वो उन्हें जानता ही नहीं। इससे पहले कि वो कुछ और कहता ,एक मुक्का रोहित पर भी पड़ा किन्तु तब  तक दोनों सम्भल गए थे। रोहित ने अपने को बचाते हुए कहा -क्या तू पगला गया है ? 

देख !तू ये ठीक नहीं कर रहा है ,अब तक हम तुझे अपना दोस्त समझकर ,कुछ नहीं कह रहे थे ,तेरे लिए ही तो हम यहाँ आये हैं किन्तु उनके ये शब्द जैसे उसके कानों में नहीं पड़ रहे थे। वो तो बस लगातार उन्हें मारने का प्रयास कर रहा था और वो अपने को बचा रहे थे। तब दोनों को उसके व्यवहार से कुछ गलत लगता है। तब सुमित कहता है -ये अपने आपे में नहीं है ,यह हमारा आखिरी साल है किन्तु मुझे लगता है ,ये हमसे मार खाकर ही मानेगा। कहते हुए ,दोनों एक दूसरे को इशारा करके एक साथ उस पर टूट पड़ते हैं और उसे पकड़ लेते हैं। किन्तु न जाने नितिन में इतनी ताकत कहाँ से आ रही थी ?उसे रोकना मुश्किल लग रहा था। तब रोहित बोला -अब इसका क्या करना है ?

तहखाने का पता चले या न चले किन्तु अभी तो इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो रहा है ,ये अपने आपे में नहीं है, यह हमें मार डालेगा। 

अब सोचता क्या है ? पहले अपनी जान बचाकर भागते हैं , उसके बाद जो होगा, देखा जाएगा अभी तो फिलहाल यही लग रहा है कि यह हमें मार कर ही छोड़ेगा। कहते हुए दोनों उसका हाथ छोड़ते हैं, और उसे धकेलते हुए , मिट्टी के कमरे से, बाहर की तरफ दौड़ लगाते हैं। दोनों ही लगातार भाग रहे थे, जब तक कि वे अपने हॉस्टल की दीवार के करीब नहीं पहुंच गए। वहां जाकर उन्होंने थोड़ी गहरी सांस लीं और पीछे मुड़कर देखा, कहीं उनके पीछे नितिन तो नहीं आ रहा है, किंतु ऐसा कुछ भी नहीं था, अब वे निश्चिंत होकर, उस दीवार को पार करके अपने हॉस्टल के अंदर प्रवेश करते हैं। 

यार ! यह क्या था ?वो  तो हमें मार ही डालता, हो सकता है उसके पास कोई चाकू या बंदूक होती तो मार ही देता। 

वह हमारी सुन ही कहाँ रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे कंप्यूटर से चालित  किया गया है, कहीं ऐसा तो नहीं उसे किसी ने सम्मोहित कर लिया हो। वह कुछ ऐसा ही तो कह रहा था। 

कोई भला ऐसा क्यों करेगा ? अभी भी उनकी स्वाँसें  तेज चल रही थीं, तभी उन्हें लगा जैसे किसी की आहट  हुई है, दोनों एक खंभे के पीछे छुप जाते हैं, और देखने का प्रयास करते हैं कि  कहीं नितिन ही तो हमारे पीछे नहीं आ रहा है किंतु उन्हें वहां वार्डन दिखलाई दिया। 

अब रोहित फुसफुसाकर बोला -यदि इसने हमें देख लिया तो हमारी शिकायत कर देगा और जुर्माना भरना होगा। 

वे चुपचाप बचते -बचाते आगे बढ़ते हैं। इतनी नीरव रात्रि में, उनके पदचापों का एहसास वार्डन को हो जाता है। वहां कौन है ? यह कहते हुए वह बार-बार इधर-उधर देखता है। दोनों एक कोने में छुपे खड़े थे। उसके चले जाने के पश्चात बड़ी मुश्किल से बाहर आकर , अपने कमरे में प्रवेश करते हैं गहरी सांस लेते हुए कहते हैं आज तो' बाल- बाल बचे ''! सुमित कमरे की लाइट जलाना चाहता है किंतु रोहित कहता है -अभी सर आसपास ही हैं कमरे  की लाइट जलते हुए देखेंगे, तो उनका ध्यान इधर ही जाएगा। 

एक मिनट के लिए ही सही, यह कहकर सुमित लाइट जला देता है , लाइट जलाते ही कमरा दूधिया रौशनी से नहा जाता है और जब वह कमरे में देखता है  तो आश्चर्य से उनकी चीख़ निकल जाती है किंतु उससे पहले, रोहित, सुमित के मुंह को पकड़ लेता है और वह जानना चाहता है कि वह  किसलिए चीखा था ? सुमित, रोहित को आंखों के इशारे से, नितिन के बिस्तर की तरफ देखने के लिए कह रहा था। जब उसने देखा तो वह भी हतपतभ रह गया। दोनों की आंखें फटी की फटी रह गई, और वह सोच रहे थे -ऐसा कैसे हो सकता है ? नितिन पहले से ही अपने कमरे में मौजूद था और सोया हुआ था। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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