Shaitani mann [part 79]

सुमित जब अर्धरात्रि को उठा तो उसने देखा, नितिन कहीं बाहर जा रहा है ,वह उसे रोकना चाहता था किंतु अर्धरात्रि में आवाज से कोई दूसरा न उठ जाए या हॉस्टल के वॉर्डन को यदि कुछ भी आभास हुआ तो सजा मिलनी तय है ,हालाँकि वो ऐसे ड़रने वाले छात्र नहीं हैं ,''कार्तिक भइया ''की छत्र छाया में उनका सिक्का चलता है किन्तु कुछ बातें ऐसी हैं जो वे भी मानना चाहते हैं।बैठे बिठाये किसी प्रकार की परेशानी में नहीं पड़ना चाहते इसलिए सुमित ने नितिन को जोर से आवाज लगाना उचित न समझा। इससे तो सभी जाग जायेंगे। 


जब सुमित कुछ कह नहीं सका और नितिन के पीछे अकेले जाने की, उसकी हिम्मत नहीं हुई इसलिए वह रोहित को जगाने आता है दोनों ही जैसे बाहर आते हैं और उसे ढूंढते हुए दीवार के नजदीक जाते हैं तभी उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई परछाई उस दीवार से नीचे कूद रही है। यह देखकर उन्हें आश्चर्य होता है, इतनी ऊंचाई से कोई कैसे कूद सकता है ? वे लोग ,उस दीवार के करीब जाते हैं और उसे देखने का प्रयास करते हैं कि वहां से कोई ऊपर चढ़ने का साधन है भी या नहीं और स्वयं भी, उस पर चढ़ने का प्रयास करते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं। उन्हें आश्चर्य होता है कि क्या यह परछाई, नितिन की थी ? अब नितिन कहां है ? तब वे दौड़कर एक टूटी हुई दीवार की तरफ जाते हैं, जो कुछ वर्षों से, आंधी तूफान के कारण कमजोर होकर टूट चुकी थी किन्तु अभी भी ,एक आदमी के बराबर ऊँची थी। वे दोनों ,उधर से दूसरी तरफ देखने का प्रयास करते हैं किंतु उन्हें दूर-दूर तक कोई भी दिखलाई नहीं देता है क्योंकि अभी भी बाहर खूब अँधेरा था ,खम्बों की रौशनी से थोड़ा बहुत कुछ दिख रहा था। 

यार ! यह क्या हो रहा है ? कुछ समझ नहीं आ रहा। क्या वह नितिन ही था, रोहित ने सुमित से पूछा -तूने ध्यान से देखा था। 

हां, हां मैंने उसे जाते हुए देखा था और इस समय कौन जाएगा ?

बात तो तुम्हारी सही है, अब हमें क्या करना चाहिए ?

मैं सोच रहा हूं, हमें उसका पीछा करना चाहिए ,तभी कुछ पता चल पाएगा आखिर ये कहाँ जाता है ?किससे  मिलता है ,इसके मन में क्या चल रहा है ? 

मैं तो जूते पहनकर भी नहीं आ पाया, तेरे कहने पर सीधे भागा चला आया।

मैंने भी कहाँ पहने हैं ?उसके पीछे यूँ ही चल पड़ा किन्तु आगे तक जाने का साहस नहीं हुआ ,सोचा एक से भले दो। 

 क्या पता, वहां जंगल में, कीड़े मकोड़े , सर्प इत्यादि कुछ भी हो सकते हैं। मैं अभी जूते पहन कर आता हूं कहते हुए वापस अपने कमरे की ओर बढ़ गया। जब वह अपने कमरे में पहुंचा तो वहां नितिन पहले से ही मौजूद था। अरे तू यहां है ? हम तुझे कहां- कहां ढूंढ रहे हैं ? तू कहां गया था। 

मैं कहीं भी नहीं गया था, मैं तो यहीं पर था। 

क्या बात कर रहा है ? अभी हम दोनों ने, तुझे दीवार से बाहर कूदते हुए देखा। 

रोहित कहां है ? रोहित को देखा होगा। 

जब सुमित नहीं आया तो रोहित स्वयं ही, कमरे में वापस आया और सुमित से बोला -तू यहां क्या कर रहा है, अब तक तूने जूते नहीं पहने किंतु तभी नितिन को वही कमरे में देखकर आश्चर्य चकित रह गया और बोला -अबे तू यहां है। तू कहां गया था ? अभी तो हमने तुझे बाहर जाते हुए देखा। 

शायद! तुम दोनों, पागल हो गए हो, मैं तो  कब से यहीं  पर था। 

दोनों ही हैरान, परेशान उसे देख रहे थे, और नितिन चुपचाप लेट गया। दोनों ने आपस में एक दूसरे को दे खा और धीरे से सुमित ने रोहित से पूछा - दीवार से जो परछाई कूदी थी, वह किसकी परछाई हो सकती है ?

यह मैं कैसे बता सकता हूं ? मैं भी तो तेरे ही साथ था किंतु इस लड़के में जरूर कोई गड़बड़ है। हम दोनों ने ही देखा था ,इस कमरे में वह मौजूद नहीं था। अचानक यहां कैसे आ गया ?

कहीं ऐसा तो नहीं यह नितिन ही न हो, बल्कि उसका भूत हो, कहते हुए रोहित मुस्कुराया। 

क्या इसे छूकर देखें, भूत को हम छू नहीं सकते अगर यह भूत हुआ तो.....  

चल, हम भी न जाने क्या-क्या सोचने लगे हैं ? यह लड़का हमें पागल कर देगा किंतु इसका पता तो लगाना ही होगा ,आखिर यह यहाँ से गया तो इतनी जल्दी वापस कैसे आ गया ? और यदि ये वहां नहीं था ,तो हमने किसे देखा ?सोचते हुए दोनों ही सो जाते हैं।

 प्रातः काल उठ कर दोनों ही नितिन को देख रहे थे, वह प्रतिदिन की तरह ही शांत था और अपने दैनिक कार्य, कुशलतापूर्वक कर रहा था उसे देखकर लग नहीं रहा था कि वह रात में कहीं जंगल में भटकने गया था अब तो रोहित और सुमित को भी एहसास होने लगा कहीं हम स्वप्न तो नहीं देख रहे थे।

इंस्पेक्टर साहब !आज की खबर पढ़ी,इंस्पेक्टर कपिल को थाने में प्रवेश करते हुए देखकर तिवारी ने समाचार -पत्र मोड़ते हुए कहा। 

क्यों ?आज क्या विशेष है ?अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कपिल बोला - रोज़मर्रा की तरह वही खबरें होंगी ,चोरी ,लूटपाट ,बलात्कार इत्यादि ,हमारी जिम्मेदारियां कहें या काम बढ़ जाता है।  

हाँ ,ऐसा कह सकते हैं ,है तो वही, किन्तु विशेष यही है कानपुर के इंजीनियरिंग कॉलिज की एक छात्रा ग़ायब हो गयी थी। 

क्यों गायब हुई ?क्या कुछ पता नहीं चला ?मिल गयी या नहीं। 

वही तो बताने जा रहा हूँ ,वह छात्रा ग़ायब हुई और जब मिला तो उसका वही कटा हुआ हाथ !

क्या ? आश्चर्य से जैसे कपिल अपनी कुर्सी से उछल गया ,क्या उसकी लाश भी मिली ? 

एक लाश मिली तो है किन्तु उसका चेहरा इतनी बुरी तरह से कुचल दिया गया है ,उसकी शिनाख़्त नहीं हो पाई किन्तु वहां की पुलिस को शक़ है ,शक़ ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है यह उसी लड़की का हाथ है। 

इसका अर्थ है ,जिसने भी उस हत्या को अंजाम दिया है ,उसका इन पहली हत्याओं से और इस हत्या से अवश्य ही कोई न कोई संबंध है। गुनहगार हमारे इर्द -गिर्द ही घूम रहा है ,कुछ पता चला वो लड़की कब और कैसे गायब हुई ?वहां की पुलिस क्या कहती है ?

अब नए -नए रहस्य खुलने वाले हैं ,कौन क़ातिल है और क्यों ये हत्याएं हो रहीं हैं ?किसी की साज़िश या किसी का बदला ,आइये आगे बढ़ते हैं। 


 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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