Ek chingari

यू तो ''चिंगारी'' छोटी सी होती है किन्तु बड़े -बड़े भूसे के ढेरों को राख कर सकती है।'चिंगारी ' से तात्पर्य है - एक छोटा सा आग़ का टुकड़ा या फिर , भड़कते हुए शोलों से , टूट- टूटकर गिरने वाले कुछ कण ! उन्हें भी हम' चिंगारी' कह देते हैं। 'चिंगारी' बुझते ही राख़ हो जाती है किन्तु तनिक भी जली रह गयी तो उसे भड़कने में समय नहीं लगता। बस उसे तलाश है ,तो सिर्फ़ सही मौक़े की ,तनिक भी हवा उसके अनुकूल हुई नहीं ,वह अपना असली रंग दिखला देती है।' चिंगारी' दोस्ती की हो ,प्रेम की हो या फिर दुश्मनी की या फिर बदले की आग की हो, जब भी वो शोला बनेगी ,सर्वनाश अथवा अपना प्रचंड रूप दिखलाकर ही जाएगी। 


  ' चिंगारी' कई तरीके से जीवन में प्रवेश कर जाती है, यह दुश्मनी के रूप में भी आती है और कभी दोस्ती के रूप में दुश्मनी निभा जाती है।'' एक तरह से देखा जाए, तो मृत्यु में जीवन में कह सकते हैं ,''साँस में आस ''जब तक साँस है ,तब तक आस है।  जीवन का कोई अंश बाकी रह गया है , जो भड़क कर आक्रामक रूप भी ले सकता है। छोटी सी 'चिंगारी' घर के घर जला देती है। दबी हुई राख में छोटी सी चिंगारी भी जीवन का अनुमान दे देती है।

 वैसे तो चिंगारी का सीधा-साधा अर्थ है -''अग्निकण''  किंतु कभी-कभी यह अग्निकण उग्र रूप भी ले लेते हैं। एक छोटी सी माचिस की तीली से ही वह अग्नि प्रज्वलित होती है जो प्रचंड़ ज्वाला का रूप ले लेती है। यही अग्नि मंदिर के दिये में भी होती है और यही हवन कुंड में भी होती है। यही अग्नि अपने प्रखर रूप में आ जाये तो सर्वनाश कर सब कुछ स्वाहा कर डालती है ,जैसे -सोने की लंका जलाई ,या फिर 'होलिका दहन ' हुआ।बदले के भाव में दबी' चिंगारी ' वो तो सम्भलने का मौक़ा ही नहीं देती ,विश्वासघात कर जाती है।भड़कते हुए 'शोले ' सभी को दिखलाई देते हैं और इंसान बचकर रहता है किन्तु' चिंगारी' धीरे -धीरे सुलगती रहती है जिससे मानव बेपरवाह हो जाता है और जब तक उसे पता चलता है ,वह ठगा सा रह जाता है। 

एक बार कुछ कृषक खेतों में कार्य करके बीड़ी -सिगरेट का आनंद उठा रहे थे ,प्रातः काल से लगे हुए थे। थककर चूर हो चुके थे। नींद की ख़ुमारी भी थी ,किसी ने बीड़ी सुलगाई और तीली बुझाकर समीप ही फ़ेंक दी। कुछ देर और कार्य किया और सभी अपने -अपने घर चले गए। मौसम अच्छा था ,थोड़ी हवा भी चल रही थी। वो लोग प्रसन्न होते हुए जा रहे थे और कह रहे थे -कल ऐसी ही हवा रही तो गेहूं अच्छे से निकल जायेगा। तड़के ही ,हो हल्ला मचने लगा ,उनकी भी नींद खुली और पता चला,सभी के लाख [गेहूं के गड्डियां ]में आग लग गयी है। सभी उधर दौड़े ,शायद कुछ बच जाये ,नजदीक ही नहर के पानी से अग्नि बुझाने का प्रयास किया। किन्तु तब तक वो कई घरों के जीवन के आहार को अपना आहार बना चुकी थी। तनिक सी लापरवाही से उस'' चिंगारी'' ने उन्हें ''दिन में तारे दिखला दिए।'' 

अब तो आप समझ ही गए होंगे ,दबी हुई कोई भी 'चिंगारी 'भड़कते हुए शोलों से ज्यादा ख़तरनाक है।  

  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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