समुन्द्र तट पर बैठ ,सागर की हलचल करती लहरें !
जीवन के उतार -चढाव दिखलातीं,हिलोरे लेती लहरें !
सागर कग़ार परआ टकराती फिर लौट जाती लहरें !
खुले गगन के,रंगों संग मिल ,अक्श दिखलाती लहरें !
मन की बेचैनी से , मिलती -जुलती कुछ गहरी लहरें !
दिनभर की थकन से,सुकूँ का एहसास दिलाती लहरें !
जीवन सा दिवस, ढल जाना उसे एहसास कराती लहरें !
कभी थकती नहीं, निरंतर चलती रहतीं सागर की लहरें !
'तट' जो उसकी चंचलता को बांधे ,रखता सीमाओं में ,
शांत रहें तो ,कितनी मासूम मर्यादित सी लगतीं लहरें ?
दूर क्षितिज पर कहीं, नील गगन से मिल आतीं लहरें !
शोले बरसाता' दिनकर', उसकी अग्नि से तपती लहरें !
दिनभर की थकन मिटा,उसको आगोश में लेती लहरें !
'सागर तट', शाम के मिलन,थकन का संदेश सुनाता ,
हर जीव , मानव ,दिवाकर , जब सागर तट पर आता।