कविता जब ,उस लड़की के संग पार्टी में पहुंची ,वहां का वातावरण देखकर,अचम्भित रह गयी ,वह पहली बार ऐसी पार्टी में आई थी। वहां पहले से ही बहुत से लड़के -लड़कियां थे जो 'डीजे' पर एक -दूसरे की बाँहों में थिरक रहे थे। उन लड़कियों को देखकर लग रहा था, कि वह उस कॉलेज की नहीं हैं। अभी कविता ने उसे लड़की का साथ नहीं छोड़ा था, उसके लिए यह अलग ही वातावरण था।कविता उसके संग -संग ही घूम रही थी। उसे लग रहा था जैसे वो इस भीड़ में कहीं खो जाएगी।
किसी को चाहना ,उससे मिलना एक अलग बात है किन्तु ऐसे वातावरण में अपने को ढालना, आसान नहीं है विशेषकर उस जैसी लड़की के लिए, तब वह उस लड़की से बोली -क्या ये नितिन के बाहर के दोस्त हैं ?
मुझे नहीं मालूम ! उसने हमें बुलाया है और हम आ गए ,वैसे तुम भी तो उसकी दोस्त हो तभी तो उसने तुम्हें भी बुलाया है ,तुम्हें तो पता होना चाहिए।
नहीं ,मेरी अभी तक नितिन से कोई विशेष बात नहीं हुई ,तुम अब तक कितनी बार यहां पार्टी में आई हो ?
मैं यहाँ दूसरी बार आई हूँ , सुना है ,यह इसी तरह की पार्टियां करता है।
क्या, इसके पापा बहुत अमीर हैं ?
यह क्या बच्चों वाली बातें कर रही हो ? यह खुद इतना कमा लेता है।मैंने तो सुना है ,इसके परिवार के लोग अत्यंत साधारण लोग हैं। जब ये यहां आया था ,तब ये भी ऐसा नहीं था।
यह पार्टी उसने किस खुशी में दी है ?
वह तो मुझे भी मालूम नहीं है, देखते हैं आगे क्या होता है ?
अरे तुम दोनों यहाँ क्या कर रही हो ?आओ !पार्टी को एन्जॉय करो !एक लड़का उनके क़रीब आकर बोला।
कविता को अटपटा सा लग रहा था ,वो तो न जाने क्या सोचकर आई थी ?और यहाँ क्या हो रहा है ?वह भीड़ में नितिन को ढूंढती है। ये इतनी सारी लड़कियां यहाँ कहां से आई है ? इन्हें देखकर तो लग रहा है , जैसे हम किसी गांव से उठकर चले आए हैं। इनके कपड़े तो देखो !उफ्फ़ !
इस तरह की पार्टियों में ऐसे ही कपड़े पहने जाते हैं,क्या इससे पहले तुम कभी ऐसी पार्टियों में नहीं गयीं।
क्यों ? हमने क्या खराब कपड़े पहने हैं ? कविता ने पूछा।
वह कविता की तरफ देखकर मुस्कुराई। कविता को लग रहा था, वह इस वातावरण के योग्य नहीं है वह अपने को यहां के वातावरण में ,घुलमिल नहीं कर पा रही थी। मन ही मन सोच रही थी- मैंने सुना है, सौम्या भी शायद उसकी ऐसी पार्टी में आई थी। नितिन आखिर ऐसी पार्टियाँ क्यों करता है ? तभी कुछ लड़कियां आगे आईं , जिनके वस्त्र देखकर , कविता की स्वयं ही नजरें झुक गईं और वह फिल्मी गानों पर, भद्दा नृत्य करने लगीं। नितिन भी उनके साथ, नाचने लगा, बार-बार कविता की तरफ देखता ,तब वो उसके समीप आया और बोला - तुमने कुछ लिया ही नहीं।
कविता को तो समझ ही नहीं आ रहा था, इतने तरीके के पेय पदार्थ थे जिनका वह नाम भी नहीं जानती थी। उसके लिए क्या सही है, क्या गलत ! वह तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी।वह नितिन से प्यार करती है ,उसका साथ चाहती है किन्तु उसके रहन -सहन ,ऐसी पार्टी देख उसे लग रहा था। वह उसके क़ाबिल नहीं है। उसके क़ाबिल बनना भी चाहती है किन्तु उसके संस्कार इससे ज्यादा की उसे इजाज़त नहीं देते।
तब वह झिझकते हुए नितिन से बोली -मैं समझ नहीं पा रही हूं, मुझे क्या लेना चाहिए ?
तुम एप्पल का जूस ले सकती हो, नितिन ने कहा -और उसने वेटर से , कविता के लिए एक एप्पल का जूस लाने के लिए कहा। कविता अपने को धीरे-धीरे उसे वातावरण में,घुलने -मिलने का प्रयास कर रही थी। वह अपने हाव-भाव से यह दिखला देना चाहती थी , यह सब उसके लिए आसान है किंतु अंदर से वह , बेहद डरी हुई थी। न जाने वह लड़की भी कहाँ चली गयी ? धीरे-धीरे वह खुलकर सामने आने लगी, उसे लग रहा था,जैसे ये सब उसी के लिए है। धीरे-धीरे वह खुलने लगी, गाने की धुन पर, उसके पैर में थिरकने लगे, सुमित उसे देखकर बोला -नितिन ,यार !तेरा इश्क सर चढ़कर बोल रहा है।
जब कविता की आंख खुली, तो उसने अपने को,होटल के बिस्तर पर पाया, मैं कहां हूं ? यह सोचकर तुरंत ही बिस्तर से उठ खड़ी होती है और बाहर झांकने का प्रयास करती है , उसके सर में हल्का दर्द था। यह मुझे क्या हुआ था ? मैं यहां क्यों हूँ ? बाकी के सब लोग कहां गए ?मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा। तभी उसका ध्यान अपने कपड़ों की तरफ गया ,उसके तन पर जालीदार एक गाउन था जिसमें से उसके अंग झांक रहे थे। मेरे कपड़े कहाँ गए ? ये गाउन कहाँ से आया ? अनेक प्रश्न उसके मन में थे।
तभी नितिन वॉशरूम से बाहर आया और बोला - अरे तुम उठ गईं , कल तो तुमने बहुत मस्ती की , तुम तो कमाल की हो , मेरा ध्यान, अब तक तुम पर क्यों नहीं गया ?व्यंग्य से वो मुस्कुराया।
तुम यहां क्यों हो और हम यहां क्या कर रहे हैं ? बाकी के लोग कहां हैं ?
कॉलेज में होंगे, तो जहां से आया था वहीं चला गया होगा।
तब हम यहां क्या कर रहे हैं ?
जैसे तुम चाहती थीं , ऐसा ही हुआ।
क्या मतलब !
मेरा प्यार तुम्हें पाना था, रात्रि में तुम कुछ ज्यादा ही....... कहते हुए मुस्कुराया।
यह क्या कह रहे हो ?
रात्रि में हम दोनों एक दूजे के प्रेम में डूबते चले गए ,तुम्हारे प्रेम से मैं सराबोर हो गया तुम तो ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रहीं थीं , तुम मुझसे किसी बेल की तरह लिपटती चली गई,और हम इस कमरे में आ गए। अपने तन के गाउन को देखकर कविता ने पूछा -मेरे कपड़े......
मैंने ही बदले हैं ,अब हमारे बीच कुछ भी नहीं छुपा रह गया है,अब हम दोनों एक हैं।
घबराते हुए , कविता बोली -मैं तुमसे प्यार करती हूं, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि शादी से पहले हम इस तरह, अपने आपको कपड़ों में समेटते हुए बोली।
प्यार क्या है ? एक आकर्षण , जो तुम्हारा मेरे प्रति था, तुम मुझे छूना चाहती थीं , मुझे पसंद करती थीं। मेरे करीब आना चाहती थीं , यही तो प्यार है, मैंने तुम्हें वह सब कुछ दिया जिसकी तुम्हें चाहत थी।
नहीं ,ऐसा नहीं है ,यह तुम क्या कह रहे हो ? तुम्हारी नजरों में, एक दूसरे को पा लेना ही ,क्या यही प्यार है ?भावनाओं का कोई महत्व नहीं।
इसमें भावनाएं क्या करेंगी ? मान लो ! हमें भूख लगी है ,तब हम भोजन करेंगे या भावनाओं से महसूस करेंगे कि हमारा पेट भरा हुआ है , क्या इससे पेट भर जायेगा ?उसके लिए रोटी खानी पड़ती है। बस यही प्यार है।
नहीं मेरा प्यार सच्चा है ,मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ।
अच्छा !तब तो मैं जब भी तुम्हें बुलाऊंगा तुम दौड़ी चली आओगी।
क्यों नहीं ,किन्तु कभी धोखा मत देना !तुम मुझसे प्रेम तो ,है न....