Mysterious nights [part 15]

दमयंती के घर से उसके परिवार के लोग उसे विदा कराने के लिए आये। दमयंती अभी इसी उधेड़ -बुन में थी ,तभी उसने ऐसा कुछ देखा जिसे देखकर वो बेचैन हो उठी।  इस बेचैनी में, वह कभी बाहर झांकती तो कभी अंदर आ जाती। यहां बहू को परदा करना पड़ता है, बाहर जाएगी तो न  जाने क्या बवाल हो जाए ? तभी उसे वंदना की स्मृति हो आई, उसने अपने रिश्ते के भाई से कहा -यहां पर एक लड़की  वंदना है, जरा उसे बुलाकर तो लाना ! मुझे उससे कुछ बात करनी है। 

आप मुझे बता दीजिए ! मैं कह दूंगा। 

ओफ्फो ! यह लड़कियों की बात है,झल्लाते  हुए बोली। 


वह चुपचाप, बाहर गया और पूछते हुए वंदना के पास पहुंच गया। आपको दीदी ने बुलाया है। 

 अभी आती हूँ , कहते  हुए , वह अपना कार्य पूर्ण करने लगी। 

आप शीघ्र चलिए ! कोई आवश्यक कार्य है। तब वंदना ने अपना कार्य छोड़ा और उसके साथ चल दी। 

कमरे में प्रवेश करते ही, दमयंती से पूछा -भाभी !कुछ चाहिए, आपने बुलाया था। 

वंदना को अपने सामने देखकर, अब वह सोचने लगी, किस तरह से, उसके विषय में पूछूं ?

पास ही गिलास में रखें पानी को पीते हुए बोली -क्या बाहर और भी लोग आए हैं ? 

हां, बहुत से मेहमान हैं ? क्या यही बात पूछने के लिए आपने मुझे बुलाया था ?

नहीं, मैंने यहां किसी को देखा कहते हुए खिड़की की तरफ जाते हुए बोली। 

किसको देखा ?क्या  आप उसे जानती हैं ?जल्दी बताइये !मौसीजी नाराज होंगी कि काम छोड़कर कहाँ चली गयी। 

दमयंती दुविधा में फंसी, मन ही मन सोचने लगी , इसे कैसे बताऊं ? सिर्फ उसका नाम जानती हूं, उस होटल में रहने वाले व्यक्ति का नाम जानती हूं किंतु नाम लेना नहीं चाहती थी, तब वह बोली -मैंने नीली जैकेट में एक चश्मे वाले किसी लड़के को देखा है , वह कौन है ? वंदना सोचने लगी।

तब दमयंती बोली - उनके 'सुनहरे 'से  बाल भी हैं। 

ओह! तो आप ज्वाला भैया की बात कर रही हैं। 

ज्वाला भैया ! आश्चर्य से दमयंती ने पूछा। 

हाँ , वही तो ऐसे टिप टॉप रहते हैं , भौंहें मटकाते हुए बोली- क्या आपसे अभी तक उनका परिचय नहीं हुआ ? जो आपके पति देव हैं, उनके ही छोटे भाई हैं। 

क्या ?ज्वाला के और भी भाई हैं ?

ज्वाला के नहीं ',जगत' भइया के तीन भाई और हैं। 

यह लोग कितने भाई हैं ?

 यह बात आप अब पूछ रही हैं, आपने पहले जानने का प्रयास नहीं किया कि जहाँ मेरा विवाह हो रहा है वे कौन और परिवार में कितने लोग हैं ?

 दमयंती अपनी मूर्खता पर, मन ही मन शर्मिंदा हुई ,तब बोली -वो तो पापा इस परिवार के विषय में अच्छे से जानते हैं इसीलिए मैने यह जानने का प्रयास नहीं किया। पापा ने बताया था -कि लड़का ''राय बहादुर होटल ''के मालिक का बेटा है। अब इससे ज्यादा और क्या पूछती ?

हँसते हुए , तब वंदना बोली -यह लोग चार भाई हैं -पहले जगत सिंह , जिनसे आपकी शादी हुई है, हरिरामभैया , बलवंत सिंह, जो पहलवान हैं और सबसे छोटे ज्वाला सिंह ! यही अधिकतर शहर में रहकर, होटल का कार्य संभालते हैं। 

मन ही मन दमयंती अपने आपको कोस रही थी, यह सब क्या हो गया ? पापा ने बताया था, इस होटल के मालिक का बेटा है किंतु यह नहीं बताया था कि वह इन सबसे छोटा बेटा है या उनके और भी बेटे हैं। यह मेरे जीवन में क्या हो गया ? प्यार सबसे छोटे से किया विवाह सबसे बड़े से हो गया। अभी वह यही सोच रही थी, तभी वंदना यह कहते हुए तेजी से बाहर निकल गई , आपके देवर का आपसे परिचय कराती हूं। 

  मुझे उसकी पत्नी बनना था, उसकी भाभी बन गई, यह जिंदगी ने मेरे साथ कैसा खेल खेला है ? अब मैं उसका सामना कैसे करूंगी ? कहीं वंदना उसे लेकर यही न आ जाए , यही सोचते हुए उसके दिल की धड़कनें बढ़ गईं , कैसे उसके सामने आकर खड़ी होउंगी ? चलो ! मुझसे  तो गलतफहमी हो गई, किंतु क्या उसे भी गलतफहमी हो गई ? या उसे मुझसे प्यार ही नहीं था। क्या उसने मुझे अपनी भाभी के रूप में चुना ? फिर से अनेक प्रश्न उसके सामने आ  खड़े हुए।कुछ देर पश्चात ,वंदना, ज्वाला को साथ ही आ गयी ,घबराकर दमयंती ने घूंघट कर लिया।ये क्या भाभी !ये तो आपके देवर हैं ,इनसे कैसा पर्दा ?भाई !क्या आपने भी भाभी को नहीं देखा ?

कैसे देखता ?जब भी देखा ,ये पर्दा ही मेरा दुश्मन रहा , अब भी देख लो !यही हमारे बीच है। 

भाभी आप पूछ रहीं थीं ,वो सुनहरे बाल वाला कौन है ?अब उसे ले आई तो आप पीठ किये खड़ी हो,अब तो आप अपने मायके चली जाओगी ,अभी भी चेहरा नहीं दिखाया तो आपके देवर को पता नहीं चलेगा ,मेरी भाभी कैसी है ?शायद पहचान भी न पाए। वैसे भइया आपने भाभी की तस्वीर तो देखी ही होगी ,उससे ज्यादा खूबसूरत हैं। 

अच्छा !किन्तु हमने कोई तस्वीर नहीं देखी ,न ही दिखाई गयी। पापा ने बताया था -मैंने लड़की को देखा है ,बहुत सुंदर है। हमने तस्वीर मांगी भी थी ,तो बोले -मैंने लड़की को देखा है ,तस्वीर की कोई आवश्यकता नहीं है। सुंदर है ,पढ़ी -लिखी है ,भला मेरी पसंद क्या कभी गलत हो सकती है ?

हाँ ,ये बात तो सही कह रहे हैं  ,मौसाजी !की पसंद लाजबाब है। अब मेरी मौसी को ही देख लो !कोई कह देगा ,तुम जैसे चार मुश्टण्डों की माँ है और अब तो सास भी बन गयी कोई कह नहीं सकता ,उनकी इतनी उम्र होगी ,आज भी चेहरे पर वही दमक है।अब तुम यूँ ही घूंघट लिए खड़ी रहोगी या अपने देवर को मुँह भी दिखाओगी या नहीं। तभी जैसे उसे कुछ याद आया ,तब ज्वाला से बोली -''मुँह दिखाई ''लाये हो !

क्या ?

''मुँह दिखाई '' क्या तुम्हें इतना भी नहीं मालूम दुल्हन का मुँह देखने से पहले ,उसको ''मुँह दिखाई ''भी देनी होती है। 

मुझे कैसे मालूम होगा ?हमारे घर में ये पहला ही विवाह है। अच्छा !कहते हुए बोला -चंदा सी मेरी भाभी ,जो मेरे भाई का जीवन संवार दे ,उन पर सब कुर्बान !

इन बड़ी -बड़ी बातों से काम नहीं चलेगा ,चुपचाप' मुँह दिखाई' निकालो !मेरी भाभी खड़े -खड़े थक गयी होगी। 

ये क्या हो रहा है ? ज्वाला ''मुँह दिखाई ''में क्या देने वाला है ?और जब मुँह देखेगा तो क्या होगा ?वह उस सच्चाई को स्वीकार कर भी पायेगा या नहीं ,चलिए आगे बढ़ते हैं। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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