एक दिन कविता के पास,एक संदेश पहुंचा,जिसने संदेश दिया ,उसने बताया -नितिन ! एक पार्टी दे रहा है ,अपने कुछ ख़ास दोस्तों को ही बुलाया है।
कविता इस बात से बड़ी प्रसन्न हुई कि वह नितिन के ख़ास दोस्तों में शामिल हो गयी है लेकिन वह यह नहीं जानती थी नितिन ऐसा क्यों कर रहा है ?क्या सच में ही, उसने मुझे अपना दोस्त माना है। यह तो इंसानी फ़ितरत है ,आशा और उम्मीद वह कभी नहीं छोड़ता।
आज कविता बहुत अच्छे से तैयार हो रही है, उसने अपनी सबसे अच्छी ड्रेस निकाली ,अपने को आईने में निहारा ,मुस्कुराकर थोड़ा मेकअप करने लगी उसे तैयार होते देखकर ,तपस्या बोली -आज तू कहीं जा रही है ,अच्छी लग रही है।
हाँ ,नितिन ने अपने कुछ ख़ास दोस्तों को पार्टी में बुलाया है इठलाते हुए कविता ने जबाब दिया।
तू भी जा रही है ?
हाँ.....
तेरा दिमाग़ तो ठीक है ,तू कबसे उसकी ख़ास दोस्त हो गयी ?तू जानती भी है ,वो कैसा है ?
मैं ही क्या ?कॉलिज में सभी को मालूम है ,वो कैसा है ?किन्तु इतना बुरा भी नहीं है ,वो तो सौम्या और उसके दोस्तों के साथ रहकर ऐसा हो गया है।
तू उसके विषय में जानती ही कितना है ? तब वह बोली -शराब !वो पीता है ,नशीले पदार्थ वो बेचता है ,पढ़ता था ,ये बहुत पुरानी बात हो गयी ,अब तो पेपर ही, उसके पास आ जाते हैं यानि की उसकी गुंडागर्दी पूरी तरह से कॉलिज में चल रही है। दो बार कॉलिज छोड़कर भाग चुका है ,न जाने कहाँ गया ?उनके घरवालों को सूचित किया गया तो उन्हें भी मालूम नहीं था।
तब क्या हुआ ?कविता ने पूछा।
क्या होता ?उसके बाप का कॉलिज है ,अपने आप ही आ गया।
किसी ने उससे पूछा नहीं, कि वह कहाँ गया था ?
उससे पूछकर ,किसी को मुसीबत मोल लेनी है। अपनी मर्जी का मालिक है ,उसने कॉलिज वालों से कह रक्खा है कि उसके विषय में घर पर कोई शिकायत न पहुंचने पाये।अपने आप ही न जाने कहाँ चला जाता है ?आ जाता है।
यह सब उस सौम्या के कारण हुआ ,कविता ने जबाब दिया। अपने आपको समझाते हुए कविता,खड़े -खड़े एक गिलास पानी पी जाती है,जो कुछ भी तपस्या कह रही थी,देखा जाये तो, सच ही कह रही थी किन्तु ऐसे समय में कविता को तपस्या का नितिन को कुछ भी कहना अच्छा नहीं लग रहा था। सुनने में तो लग रहा था ,कि नितिन जो कुछ भी कर रहा है ,बहुत गलत है किन्तु कविता को लग रहा था ,ये नितिन के विषय में कुछ ज्यादा ही बढ़ा -चढ़ाकर उसकी बुराई कर रही है। इसको मुझसे ईर्ष्या हो रही होगी उसने मुझे बुलाया ,इसे नहीं बुलाया।
तभी तपस्या बोली -तू जानती नहीं है, मुझे तो लगता है, सौम्या का रिश्ता भी नहीं हुआ है , वह तो इससे पीछा छुड़ाने के लिए उसने ऐसा झूठ बोला है।
तू क्या कह रही है ? हमारे कहने पर भी, उसने नितिन से दोस्ती की थी उसके साथ भी रही, किंतु धीरे-धीरे उसे नितिन के असलियत का पता चलने लगा और वह उससे हट गई, अब भी उसके मन में डर समाया रहता है जितना वह शांत दिखता है, उतना है नहीं। सौम्या अगले, वर्ष ही इस कॉलेज को छोड़ देगी। यह बात तू किसी को मत कहना, मैं तुझसे ही बता रही हूं, क्योंकि मुझे लगता है तुझ पर नितिन के इश्क का भूत सवार जो हो गया है।
मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं , इतनी भी नादान नहीं हूं कि कोई भी मुझे बहका लेगा। हर बुरे इंसान के अंदर भी एक अच्छा और सच्चाई छुपी होती है मुझे लगता है, कि वह शीघ्र ही मेरे प्यार को समझेगा और जब उसे समझ आएगी तो वह सभी बुरे कार्य भी छोड़ देगा। कॉलेज के यहां, ज्यादातर लड़के अपना खर्च चलाने के लिए कुछ ना कुछ कार्य करते ही हैं , उसने यह कार्य अपना लिया इसमें गलत क्या है ?
क्या तुझे कुछ भी गलत नजर नहीं आ रहा ? आश्चर्य से तपस्या ने पूछा -उसने आज तक तुझे कभी ठीक से बात भी नहीं की, कभी तुझसे प्रेम का इजहार भी नहीं किया। तुझे क्या लगता है? कि वह तुझे प्रेम करने लगा है। यह तूने बहुत बड़ी गलतफहमी पाल ली है ,उसको समझाते हुए तपस्या बोली - यदि आज ही सौम्या, उसे बता दे ! कि उसका रिश्ता नहीं हुआ है, या उसे विश्वास दिलाए वह उससे प्रेम करती है तब देखना, वह कितनी शीघ्र तुम्हें छोड़ देगा और भूल जाएगा।
कविता के मन में एक उम्मीद जगी थी, उस उम्मीद को तपस्या टुकड़े-टुकड़े किए दे रही थी। तब वह बोली - चुप करो ! जो भी मन में आए जा रहा है, कहे जा रही हो , उसने मुझे अकेली को नहीं बुलाया है उसके अन्य दोस्त भी हैं। ऐसे में मेरा कौन, क्या अहित कर सकता है ? जब तक मैं उससे मिलूँगी नहीं, तब तक मुझे उसके विषय में कैसे जानकारी होगी ? तुम मेरे साथ कमरे में रहती हो किन्तु मैंने तुम्हें मेरी ज़िंदगी में दखलंदाजी करने की इजाजत नहीं दी। अपने आपको आईने में निहारा ,मन ही मन बुदबुदाई -अच्छा -ख़ासा तैयार हो रही थी ,चलते समय मूड़ खराब कर दिया।
मेरा इरादा तुम्हें दुःखी करने का नहीं था,मैं तुम्हारी बड़ी बहन जैसी हूँ इसीलिए बड़ी बहन की तरह समझाने का प्रयास कर रही थी।
मुझे नहीं समझना है ,कुछ लोगों को हमारी खुशियां देखी नहीं जाती कहते हुए वो उठी और अपना पर्स उठाकर कमरे से बाहर निकल जाती है। मन में तपस्या ने दुविधा भर दी थी। दिल जो पहली नजर में ही नितिन का हो गया था किन्तु तपस्या के शब्द उसे बार -बार सचेत कर रहे थे। कुछ देर वो हॉस्टल के बैठी रही। तब कुछ लड़कों को उसने तैयार होकर जाते देखा ,तभी एक लड़की आई और बोली -तुम यहाँ तैयार होकर क्यों बैठी हो ?क्या तुम्हें भी पार्टी में बुलाया गया है ?
हाँ ,उत्साहित होते हुए कविता बोली।
तब तो तुम मेरे साथ ही चलो ! मैं भी जा रही हूँ।
तुम क्यों ?
मतलब !मैं क्यों नहीं ?
मेरा मतलब है ,हकलाते हुए कविता बोली -उसने कुछ खास दोस्तों को ही बुलाया है।
तो क्या मैं ख़ास नहीं हो सकती ?वो बोली।
वैसे वो ये पार्टी किसलिए दे रहा है ?
मुझे नहीं मालूम ,अब तो उसका जन्मदिन भी नहीं ,जब भी उसके पास पैसा आता है ,वो ऐसे ही उड़ाने के लिए पार्टी दे देता है ,हँसते हुए बोली -हमें इससे क्या ?हमें तो मौज -मस्ती से मतलब है। तुम आ रही हो या मैं जाऊँ ,उसने प्रश्न किया।
