Mysterious nights [part 13]

 सुंदर भारी जरी की साड़ी में लिपटी ,भारी गहनों से लदी, दमयंती को एक बड़े से कमरे में किसी ऊँचे स्थान पर, किसी सजी हुई पुतली की तरह बैठा दिया गया। बाहरी सज्जा भी हो चुकी थी, किन्तु उसके मन का क्या ? मन में तो किसी भी तरह की कोई ख़ुशी नहीं थी बल्कि उसका मन अनेक सवालों से जूझ रहा था। जब ह्रदय में कोई प्रसन्नता ही नहीं तो, चेहरे पर कैसे प्रसन्नता आ सकती है ?उसका मन कर रहा था ,वो बहुत जोर से चीखे ,चिल्लाये और कहे -ये सभी रस्में झूठी हैं ,मुझे कोई रस्म नहीं करनी ,जो रात्रि में मेरे साथ था वो मेरा पति नहीं था ,जिससे मेरा विवाह हुआ है वो न जाने कहाँ गया ?कहीं इन लोगों ने उसे, कुछ कर तो नहीं दिया।  उसकी नजरें आस -पास निगाहें ड़ालकर उसे [ज्वाला ]ढूंढ़ रहीं थीं किन्तु वो कहीं भी नजर नहीं आ रहा था। एक बार वो दिख जाये किसी को भी नहीं छोडूंगी। 


तभी मन में विचार आया ,कहीं ऐसा तो नहीं ,जहाँ मेरा विवाह हुआ, वहां से आते समय दूल्हा बदल गया हो। तभी विचार आया- किन्तु ये लोग तो वही हैं। अब मैं क्या करूं किससे पूछूं ?अपने हाथों को बार -बार एक -दूसरे से हाथ से दबा रही थी। धीरे -धीरे वह स्थान गांव की महिलाओं से भरने लगा ,जो भी आती,पहले बहु के पास आती उसका घूंघट उठाकर देखती, उसे देखकर उसके हाथों में कोई लिफ़ाफा या उपहार देकर बैठ जाती।

 तब एक महिला बोली -सुनयना !तुम्हारी बहु तो बहुत सुंदर है।

जी, सब उपरवाले की मेहरबानी है। 

ऊपरवाले की मेहरबानी तो है किन्तु अपने 'जगत' की किस्मत भी अच्छी है ,देर से ही सही किन्तु उसे बहुत सुंदर बहु मिली है। 

अब क्या यूं ही बातें करती रहोगी ? कुछ गाना -बजाना नहीं होगा कहते हुए सुनयना ने ढोलक, एक महिला की ओर कर दी और बोली -बहन जी ! आप ढोलक बहुत अच्छी बजाती हैं , हमारी बहू को भी तो पता चलना चाहिए कि यहां भी हुनर की कोई कमी नहीं है। आपकी ढोलक के माध्यम से ही, आपका परिचय भी हो जाएगा। 

जहां भी मैं जाती हूं मुझे ढोलक ही दे देते हैं, उसने मुंह बनाते हुए कहा। 

इसमें मुंह बनाने की क्या बात है ? जि सको जो चीज आती है, उसके लिए ही, उसे पूछा जाता है , सारे गांव में तुमसे अच्छी ढोलक कोई नहीं बजाता , सुनयना के शब्दों में, उस महिला के प्रति खुशामद थी। उस महिला ने ढोलक बजाना आरंभ ही किया था तभी दूसरी ने , गाना शुरू कर दिया - ''बन्ने  से बनड़ी फेरो पर झगड़ी ,तू क्यों नहीं लाया रे सोने की तगड़ी। ''

उस समय तो सभी ने उस गाने में साथ दिया किंतु गाना समाप्त होते ही, मजाक करते हुए बोली -तुम्हारी यह मांगे कभी पूरी नहीं होंगीं, कम से कम आने वाली बहू को तो मत बताओ ! आते ही, झगड़ा करवाओगी। 

अजी, मेरे कहने से क्या होता है ? जिसे झगड़ना होता है, वह तो झगड़ता ही है अपने मर्दों से पूछो ! वे   झगड़े  का कारण पैदा ही क्यों करते हैं ?''रात में तो आसमान से तारे तोड़ लाने''  की बातें करते हैं और दिन में ऐसे देखते हैं ,जैसे कोई भूतनी का मुँह देख लिया हो।''मतलब निकल गया है ,तो पहचानते नहीं''  जब उन्हें रात की बातें याद दिलाती हूँ तो कुछ याद नहीं रहता। 

तू उसे इतना क्यों सताती है ?दिन में भी ऐसी ही रहा कर..... तभी एक बूढी महिला बोली ,जो एक कोने में बैठी उनकी बातें सुन रही थी। 

अच्छा यह बताओ ! नई बहू कैसी लगी ?

बहू में कोई कमी नहीं है, सुंदर है. पढ़ी-लिखी है और क्या चाहिए ?बस घर में रच बस जाये। 

 किंतु मुझे लगता है, यह कुछ परेशान है , बहू के चेहरे पर खुशी नहीं है ,क्या अभी तक हमारे देवरजी से नहीं मिली ?या कोई ओर बात है दमयंती की तरफ देखते हुए उसने पूछा। 

क्या बात कर रही हो ? दया ! सुनयना जी उसके समीप आकर बोली - तुम लोगों की बातें सुनकर बोर हो रही होगी, तुम ही गाए जा रही हो ,उसे भी तो मौका दो ! देखें तो सही, उसके कंठ में सरस्वती विराजती है या नहीं। 

अपने ऊपर बात आती देखकर,दमयंती थोड़ा विचलित हो गई , थोड़ा- बहुत गाना तो गाओ ! किंतु दमयंती ने मुंह नहीं खोला , तब सुनयना जी ने इशारे से वंदना से कहा -अपनी भाभी से कहो ! थोड़ा ,बहुत कुछ भी सुनाये। 

वंदना तुरंत ही उठकर,दमयंती के पास गई, और बड़े ही प्रेम से बोली -भाभी ! कोई गाना सुना दीजिए। 

मुझे नहीं आता, रूखे स्वर में दमयंती बोली। 

यहां पर सभी ऐसे ही है, किसी को कुछ नहीं आता, कोई बड़ा सिंगर नहीं है , गा -बजाकर ऐसे ही खुश हो लेते हैं, आपको जैसा भी, जितना भी आता है गाइये ! 

इसे हमारे जैसे गाने कहां आते होंगे ? यह तो फिल्मी गाने गाती होगी। 

कुछ भी गाए, गाए तो सही। 

तभी बहुत महीन सी आवाज, उसे घुंघट के अंदर से आई - तुझको पुकारे मेरा प्यार ! हो...... 

बहु ने तो बहुत ही अच्छा गाना गया है, किंतु यह किसे पुकार रही है ? क्या रात 'जगत' इसके पास नहीं था ? कहते हुए सभी महिलायें ठठाकर हंसने लगीं। यह सब देखकर, दमयंती को क्रोध आ रहा था, न जाने कहां से बेहूदी औरतें उठा लाये हैं। उसका रोने का दिल कर रहा था, तभी वंदना जो उसके करीब बैठी थी, जो उसकी हिम्मत बढ़ाने का प्रयास कर रही थी बोली -भाभी ! एक गाना और गा दीजिए बहुत ही प्यारा गाना गया है। 

नहीं, मुझे कोई गाना नहीं आता, यह भी मैंने बहुत पहले सुना था इसलिए गा दिया। यदि मेरी नुमाइश हो गयी हो तो,क्या मैं अब जाऊं ?

नहीं, ऐसे अच्छा नहीं लगता है, अंदर जाकर ही क्या हो जाएगा ? यहां कम से कम आपका ध्यान तो बंटा  रहेगा। शायद वंदना उसकी मनःस्थिति को समझ रही थी इसलिए उसने यह सुझाव दिया। चार लोगों में बैठकर मन  जो विभिन्न  उलझनों में उलझा रहता है वह सब थोड़ी देर के लिए, भूल जाते हैं।

 किंतु मुझे कुछ भी ,भूलना नहीं है, मुझे मेरे प्रश्नों का जवाब चाहिए। वह सामने टंगी घड़ी में समय देख रही थी, क्या इन लोगों ने पापा को अभी तक खबर नहीं की ? मुझे फोन भी तो नहीं दिख रहा। मैं भी कैसी अंधी हूं, बस ज्वाला की चाहत में, बिना कुछ सोचे  समझे ही विवाह करके यहां आ गई। अब ऐसा लगता है, जैसे यहां आकर फँस गई हूं। मन में तो आ रहा था -चीख -चीखकर कहे -ये लोग मेरे लिए अजनबी हैं ,तुम सभी औरतें यहाँ से भाग जाओ !किन्तु उसे सुनयना जी की चेतावनी भी स्मरण हो आई। उसने झीने घूंघट में से इधर -उधर देखा ,सुनयना जी उसे ही घूर कर देख रहीं थीं। 

यह बात भी सही थी ,वो कार्य करने के साथ -साथ अब दमयंती पर भी नजरें जमाएं थीं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post