[अधूरी दुल्हन ] पच्चीस वर्षों के पश्चात भी, ठाकुरों की हवेली, आज भी उसी शान से खड़ी हुई है। भले ही उस हवेली में अनेक रहस्य छुपे हुए हो। अनेक रातें रहस्यमई रही हैं, आज भी वह हवेली, रहस्यमई होकर भी, समाज के सामने, शान से खड़ी है। बाहर धुआंधार बारिश हो रही थी, अंधेरा हो रहा था , सभी अपने घरों में दुबके हुए थे किंतु हवेली के कुछ लोग अब भी जाग रहे थे। कानों कान इस बात की किसी को खबर भी नहीं होने देना चाहते थे कि इस हवेली के अंदर क्या घटनाएं घट रही हैं ? जो भी रहा हो, इस हवेली की एकता को, इसके घर के लोगों की एकता को, कोई नहीं तोड़ पाया इसी कारण, यह हवेली आज भी जिंदा खड़ी है हालांकि कुछ लोग दबी- दबी आवाज में , इसका कुछ का कुछ अर्थ निकाल लेते हैं लेकिन सच्चाई आज तक किसी को कुछ भी मालूम नहीं हुई है। कोई नहीं जानता कि इस हवेली की सच्चाई क्या है ?
बाहर से एक व्यक्ति आता है और बोला -गौरव अब बरसात कम हो गई है, अब हमें अपना काम निपटा देना चाहिए। तभी सब लोग तत्परता से अपना कार्य करते हैं। अंधेरे में, कुछ परछाइयां, चुपचाप जा रही हैं। किसी को कानों कान खबर नहीं हो सकती। इससे पहले की गांव के लोग जाग जाएं, या किसी को कुछ भी पता चले। वे लोग शमशान की ओर बढ़े चले जा रहे थे। कुछ ही देर में वहां पर,पहुंच जाते हैं , तैयार चिता पर , उस शव को लिटा देते हैं।
यह सब क्यों करना है ?अरे वहीं नहर में फ़ेंक देते ,बह जाती ,किसी को कुछ भी पता नहीं चलता।
चुप कर !यदि किसी को इसकी लाश मिल जाती तो क्या होता ? कुछ पता है ,माँ ने जैसा कहा है ,वही करना है।
तभी एक ने उन लकड़ियों पर मिटटी का तेल डाला ,और माचिस की तीली से आग लगाने का प्रयास किया किन्तु वह बुझ गयी ,ऐसा उसने दो -तीन बार किया ,तब परेशान होकर बोला -इस बारिश को भी आज ही होना था। लकड़ियां थोड़ी गीली हो गयीं हैं।
अरे और मिटटी का तेल डालो !दूसरे ने समझाया।
डाल चुका हूँ ,तभी दूर से एक सूखी लड़की और कुछ कागज के टुकड़े लेकर आता है।
जल्दी करो !क्या कर रहे हो ?उतावलेपन से एक व्यक्ति बोला।
कर तो रहा हूँ ,उसने फिर से प्रयास किया और धीरे -धीरे अग्नि सुलग उठी। अग्नि की तीव्र ज्वालाओं ने अपना असर दिखाया ,वो लोग थोड़े पीछे हटे और बोले -अब बाक़ी का कार्य यह अग्नि कर देगी अब चलते हैं।
जैसे ही वो लोग जाने के लिए तैयार हुए ,वह मुर्दा अपनी चिता पर उठ बैठा , शायद !अभी भी उसमें जान बाकी थी या फिर ईश्वर अपना ही कुछ अलग चमत्कार दिखाना चाहता था किंतु अपना पाप छुपाने के लिए उन पापियों ने उसे मुर्दा समझ लिया था। हो सकता है, भगवान की भी यही इच्छा हो ,इसीलिए उसे पुनः जिंदा कर दिया। वह जलता हुआ शव जलती लकड़ियों पर था। अग्नि के तेज ज्वलन के कारण ,उसके अंतर् गहरी दर्दभरी विदारक चीख़ निकली।
उस दृश्य को देखकर वो लोग भयभीत हो गए , और डरकर भाग खड़े हुए , कुदरत का करिश्मा देखिए ! बरसात भी तेज हो गई। वह कंकाल हुआ, तन थोड़ा जल गया था किंतु न जाने, उस ऊपर वाले ने क्या सोच रखा था ? जो उसके प्राण लौटा दिए या फिर उसे'' जिन्दा प्रेत''बना दिया इसीलिए उसके जलते तन को शांत करने के लिए, पुनः बारिश तेज़ होनी आरंभ हो गई। शरीर के कुछ हिस्से जल चुके थे,उसकी चीखें सम्पूर्ण श्मशान को गुंजा रही थीं। उसकी चीखों से सोये मुर्दे भी करवटें बदलने लगे थे।
तभी 'श्मशान का डोम' अपनी झोपडी से निकलकर बाहर आता है वह देखता है ,एक महिला उस श्मशान में चीखते हुए इधर -उधर दौड़ रही है। वह उसके करीब गया, और उससे पूछा -ऐ..... तुम कौन हो ?
उस युवती ने ,रुककर उसकी तरफ देखा ,उसकी भयानक शक्ल देखकर वह भी सहम गया। उसने 'डोम' की तरफ देख ,इधर -उधर देखा ,उसे एहसास हुआ अब वह उनकी कैद से बाहर है।वह श्मशान से बाहर की तरफ भागी। वह बेचारी किसी को क्या डराएगी ? क़िस्मत ने उसके साथ न जाने कैसा ख़ेल खेला ?वो स्वयं ही ऐसे जंजाल में फँस गयी ,जहाँ से उसका निकलना मुश्किल था। आखिर वह कौन थी ? वे कौन लोग थे जो उसे चुपचाप इस श्मशान में जलाने आए थे। उसकी मृत्यु कैसे हुई थी ?या जिन्दा ही जला रहे थे। किंतु यह प्रश्न पूछने के लिए भी, यहां -वहां पर कोई नहीं था।
घबराये हुए वे लोग, हवेली के अंदर प्रवेश करते हैं , तभी दमयंती ने पूछा -क्या हुआ ? सभी कार्य ठीक-ठाक हो गए।
हां, पता नहीं।
क्यों क्या हुआ ? कठोर शब्दों में दमयंती ने पूछा।
हम उसे जला ही रहे थे, तभी वह उठ बैठी , उस अर्धजली लाश को देखकर हम डर गए और भाग आए।
तुमसे एक कार्य भी सही से नहीं होता, वह क्रोध से बोली। यदि वह जिंदा रह गई, तो इस हवेली के सभी रहस्य बाहर आ जाएंगे।तुम्हें तो किसी ने नहीं देखा।
नहीं ,वह जिंदा कैसे हो सकती है ? मुझे लगता है वह' प्रेत 'बन गई है।
यदि वह प्रेत भी बन गई है तो अपना बदला लेगी, अब हमें उससे और भी सतर्क रहने की आवश्यकता है , कहीं ऐसा तो नहीं यह सब तुम्हारा भ्रम ही हो तुम डर गए हो इसीलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है। तुम ऐसे कर्म करते ही क्यों हो ?
लगभग ,एक वर्ष पहले उत्तर प्रदेश से 'खेड़ा ''गांव में भी ''कोरोना'' सम्पूर्ण भारत के साथ -साथ ,इस गांव में भी अपना असर दिखला रहा था। सभी लोग अपने घरों में दुबके हुए बैठे थे। इस गांव के सरपंच की बेटी ''शिखा '' बाहरवीं की तैयारी कर रही थी किन्तु ''कोरोना ''फैलने के कारण परीक्षाएँ न हो सकीं।
एक दिन 'ठाकुर साहब' का उनके घर फोन आया ,सरपंच साहब !अब क्या इरादा है ?क्या सोचा है ?
ठाकुर साहब ! ये आप क्या कह रहे हैं ?आप हालात तो देख ही रहें हैं।
आखिर ये ठाकुर साहब कौन हैं ?इनका सरपंच साहब से क्या रिश्ता है ?ये उनसे क्या चाहते हैं ?सभी सवालों के जबाब पाने के लिए अब हमें आगे बढ़ना होगा।