Samay yatri

''समय'' के पंखों पर सवार निकला इक राही। 

उम्र का बंधन नहीं ,उम्र उसकी कम ही रही। 

अवस्था बालपन की,चुलबुलापन चंचलता लिए , 

न जाने कब पहुंचा ? ''किशोरावस्था'' के द्वार,

लिए कल्पनाओं की उड़ान बढ़ता गया सवार। 



कर लूँ दुनिया को  मुठ्ठी में, जूनून बनता गया। 

''समय'' को भूल वो रंगीन सपनों में खो गया। 

'समय 'ने उसका हाथ थामा और बढ़ता गया। 

समय संग जो चला ,हमेशा आगे बढ़ता गया। 

 

न जाने कितने रिश्ते छूटे बिछड़ गए ,अपने ,

उन्होंने भी ,''समय यात्रा ''का लाभ उठाया।

बचपन छूटा ,जवानी खेलते संघर्षों में बीती। 

बुढ़ापे में ,''समय  यात्रा'' में हिचकोले खाता।


'समय' जाने कब उम्र से आगे निकल जाता ?

पीछे रह जातीं  कुछ यादें ! कुछ अनुभव !

 यात्रा में ',समय' उसे बहुत कुछ दिखलाता। 

राही थककर ,ठहर पंचतत्व में मिल जाता।

 

''समय'' अपने पंख खोल ,नवीन यात्री ले आगे बढ़ गया ।

समय यात्रा का राही जीवन को संवारने उस पर चढ़ गया।     

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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