इतने वर्षों पश्चात, मुझे कोई कार्य नहीं है, सेवानिवृत जो हो चुका हूँ , अब तो कुछ पुरानी यादें हैं, जिनको याद कर लेता हूं और कभी-कभी उन यादों को यादकर कर रो भी लेता हूं। इंसान जब जन्म लेता है, बालपन में उसे कुछ भी एहसास नहीं होता किंतु धीरे-धीरे यौवन अवस्था की ओर बढ़ता है, तो उसे अपने उत्तरदायित्व भी समझ में आने लगते हैं, रिश्तों को भी समझने लगता है किंतु कई बार ऐसा भी होता है, उन रिश्तों को वह ठीक से समझ ही नहीं पाता उसकी अपनी एक अलग ही सोच हो जाती है। जिसके चलते, वह उन रिश्तों को कोई महत्व नहीं देता जो उसके साथ हैं, उसके पास हैं।
मेरी चांदनी भी तो ऐसी ही थी , हमेशा मेरे इर्द-गिर्द मंडराती रहती थी, मुझसे अपेक्षा रखती थी मैं उसकी तरफ ध्यान दूं उसकी बातों को ध्यान से सुनूँ किंतु कभी मैंने उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। कभी किसी से कहते सुना -''त्रिया चरित्र के विषय में ,ये जो भी काले सिर की आती हैं ,त्रिया चरित्र दिखलाकर घर का सर्वनाश कर देती हैं, उसे ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए।
'' चांदनी'' मेरी जिंदगी में आई, वे बातें स्मरण रहीं , मैं उसे हमेशा शक की नजरों से देखता, कभी उसे चोट भी लग जाती तो लापवाही से कह देता ,मुझे बताने की क्या है ?दवाई लगा लो !ठीक हो जायेगा मुझे बताने से नहीं होगा। कभी अपनी बुद्धि से नहीं सोचा -हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता, हर इंसान का स्वभाव सोच अलग-अलग होती है। मेरी मां भी तो एक नारी ही थी और मैं उनका आज्ञाकारी पुत्र !
चांदनी ने मेरे उस घर को अपना लिया था और अपना घर समझ, सभी कार्य करती थी। मुझसे भी बहुत प्रेम करती थी और मुझसे भी अपेक्षा रखती थी कि मैं उसकी बातों पर ध्यान दूं। दुख- सुख में उसके साथ खड़ा रहूं किंतु मुझे लगता था -उसकी आवश्यकताएँ पूर्ण करना ही, मेरा कर्त्तव्य है, इससे ज्यादा उस पर ध्यान नहीं देता था। कभी-कभी वह रूठ भी जाती थी, अपने को अकेला महसूस करती। कभी कहती -मुझ पर ध्यान नहीं देते हैं, मेरी बातों को ध्यान से नहीं सुनते हैं।
मैं लापरवाही से कहता-'तुम्हारी सभी आवश्यकताएं तो पूर्ण हो रही है और तुम क्या चाहती हो ?
अब मैं महसूस करता हूं, हम ऐसी छोटी-छोटी बातों पर ही झगड़ा कर जाते हैं जो आज के समय में सोचते हुए लगता है,उनका कोइ औचित्य नहीं था,वे इतनी महत्वपूर्ण भी नहीं थीं। मूल्यहीन शब्दों पर झगड़ने लगते थे। कभी उस समय की कीमत को समझा ही नहीं कि यह जो समय है, यह वापस नहीं आएगा इसमें कुछ खूबसूरत यादें हमें संजो लेनी चाहिए किंतु हम सारा जीवन कमाने में, और व्यर्थ के झगड़ों में ही गँवा देते हैं अपने को ज्यादा समझदार, और दूसरे को मूर्ख साबित करने में लगे रहते हैं।
कभी यह नहीं सोचा, कि साथ बैठकर, उस विषय पर बातचीत की जा सकती है। अभी उसने जिंदगी के 40 वर्ष ही तो देखे थे, जब उसे पता चला, कि उसे' कैंसर' हो गया है। उसे लगता था कि वह मेरे जीवन में आई है और मेरे मन में अपनी वो जगह नहीं बन पाई और उसके जाने का समय आ गया। अपने उत्तरदायित्व पूर्ण करते हुए, मैंने उसका इलाज करवाया।
जब मैं उसके लिए खर्च करता था तो उसे दुख होता था ,कभी मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया, कभी मेरी सुनी नहीं, कहती थी -' पड़ोस के शर्मा जी की बहू अपने लिए' करवा चौथ 'पर पायल और बिछुवे लाई है अबकि बार मुझे भी ला दीजिए ,मेरी बहुत इच्छा है।
ऐसा नहीं है कि मेरे पास पैसे नहीं थे किंतु उसकी इच्छा का मान नहीं था इसलिए मैंने कभी उसकी इच्छाओं पर ध्यान ही नहीं दिया शायद उस पैसे को मैं भविष्य के लिए जोड़ रहा था किंतु किस भविष्य के लिए ,वह तो जा रही थी। उसकी बीमारी में बहुत पैसा लग चुका था अब मन पछताता है, कम से कम जीते जी, उसे खुश कर दिया होता। मैं साथ रहकर भी उसके साथ ,उसके पास नहीं था। वह मेरी पसंद ना पसंद, क्या मुझे पहनना है, क्या नहीं ? सब जानती थी, किंतु मैं उसके विषय में कभी कुछ जान ही नहीं पाया।
अब मैं सेवा निवृत हूं, उसके विषय में सोचता हूं- जिंदगी में हम कितनी बड़ी-बड़ी गलतियां कर जाते हैं ?कई बार उन गलतियों के चलते रिश्ते भी टूट जाते हैं यहां तक की बात तलाक और मार- पिटाई तक भी आ जाती है किंतु क्या हमने ठीक से उन रिश्तों को निभाने का प्रयास किया ? अब जब भी बेटा, लापरवाही से बहू के लिए कुछ भी कह देता है, तो मुझे अपनी चांदनी का एहसास होता है , वह भी ऐसे ही, मेरे व्यवहार को देखकर टूट जाती होगी। वह भी मुझसे चाहती थी कि उसे भी लगे कि वह मेरे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है ? किंतु मैंने कभी उसे एहसास ही नहीं कराया। हर रिश्ता, अपने महत्व को समझना और जानना चाहता है कि जो हमारे अपने हैं उनका हमारे जीवन में या उनके जीवन में हमारा कितना महत्व है ? आज यह सभी बातें खाली बैठे मुझे,उसकी याद दिलाती हैं किंतु जिसके लिए मुझे यह सब करना चाहिए था सोचना चाहिए था, 'वह तो चली गई'।