शिखा की मां ने जब सुना, कि वह लोग कह रहे हैं -उनके कहने पर ही हमारा बेटा, विवाह के लिए तैयार हुआ वरना हम तो, इस विवाह को पीछे टाल रहे थे , उनकी ऐसी बातें सुनकर, शिखा की मां को लगा कहीं ये लोग,किसी योजना के तहत, मेरी बेटी को यहां से तो नहीं ले जा रहे ,उनसे रुका नहीं गया और बोलीं -क्या आप इस बात का बदला तो नहीं ले रहे ?
ऐसे समय में, आप ऐसी बातें कैसे सोच सकती हैं ? हमारा बेटा गया है और बहू यहां पर है , और आपकी मन में इतनी दुर्भावना भरी हुई है जगत सिंह ने जवाब दिया। गांव के कुछ लोग दूर से ही खड़े होकर तमाशा देख रहे थे लेकिन किसी को कुछ भी बात समझ में नहीं आ रही थी कि यहां क्या हो रहा है और यह लोग अपनी बेटे को लेकर क्यों नहीं जा रहे हैं ?
तब गांव के कुछ बड़े-बड़े आगे आए, कुछ दूरी बनाते हुए बोले -देखिए !यह दुख की घड़ी है, ऐसे समय में आपका यहां ठहरना उचित नहीं है , अन्य लोगों को भी इस बीमारी का डर बना रहेगा। बेटे की गति को दुर्गति में मत बदलो ! और अपने बेटे को लेकर उसके संस्कार पूर्ण कीजिए।
तब दुखी होते हुए सरपंच जी बोले -यह लोग चाहते हैं कि बेटी को भी इनके साथ विदा किया जाए।
ऐसा कैसे हो सकता है ? सभी आश्चर्यचकित होकर बोले। क्या कभी किसी की बेटी मुर्दे के साथ विदा हुई है ? यह अनहोनी रीत मत कीजिए !
यह 'अनहोनी रीत' नहीं है, रीत तो उसी तरह से बनी हुई है , इन्हें बेटी को विदा करना है , यदि हमारा बेटा जिंदा रहता तब भी तो यह उसे विदा करते। हो सकता है, घर पहुंच कर उसकी हालत बिगड़ जाती या वहां पर उसकी मृत्यु होती , तब आप लोग क्या करते ? हम तो अपने बेटे की इच्छा की पूर्ति के लिए यह सब कर रहे हैं। वही चाहता था कि इनकी बेटी, हमारे घर की बहू बने ! इसीलिए वह बुखार में भी, विवाह करने के लिए यहां आ गया। उसे क्या मालूम था ? यहां आकर उसे मौत मिलेगी। आप लोग समझ नहीं रहे हैं, हम पर कितना बड़ा दुख का पहाड़ टूटा है ? ऐसे में, हम चाहते हैं कि हमारी बहू भी, उस घर में हो ताकि हमारे बेटे की अंतिम इच्छा पूरी हो सके।
जगत सिंह ने बड़े दयनीय शब्दों में जब यह कहा तो, गांव वाले सोचने पर मजबूर हो गए और बोले -तुम्हारी बात अपनी जगह ठीक है, हो सकता है यह हादसा , वहां जाकर भी हो सकता था। बेटी के नसीब में' विधवा' होना लिखा था, तो उसे कोई कैसे बदल सकता हैं ? अभी आप लोग दुख में हैं, उस बेटी पर भी क्या बीत रही होगी ? जिसका विवाह हुआ है और विवाह पूर्ण भी नहीं हुआ और वह विधवा हो गई।
वह'' विधवा ''नहीं है, जब शिखा की मां ने सुना तो क्रोध से बोली -आप लोग मेरी बेटी को 'विधवा' क्यों कह रहे हैं ? अभी उसका विवाह ही ठीक से कहां हुआ था ?फेरे तो हुए हैं, मांग में सिंदूर भी नहीं भरा।
तब जगत सिंह जी बोले -हमारे यहां फेरों साथ फेरे पूरे होते ही, विवाह को संपूर्ण मान लिया जाता है , हमारे आधार पर आपकी बेटी हमारे घर की बहू बन चुकी है। मैं गांव वालों, यह बात कहना चाहता हूं। उस लड़की पर क्या बीत रही होगी ? और यदि, जब उसे पता चलेगा कि उसके होने वाले पति को लेकर, हम लोग चले गए और उसके 'अंतिम दर्शन' भी हमने, उसे करने नहीं दिए तो वह क्या सोचेगी ? उस बालक पर क्या बीतेगी ? कम से कम हमारे बेटे की आखिरी इच्छा तो पूर्ण हो जाए। उसके पश्चात क्या करना है ?वह हम बाद में मिल - बैठकर सोच लेंगे। एक बार बेटी से भी पूछ लीजिए, क्या वह हमारे साथ जाना चाहेगी या नहीं।
अभी उसे होश ही कहाँ आया है ,शिखा की माँ क्रोध से बोली।
कोई बात नहीं ,वो बच्ची भी हमारी ही है ,उस पर भी तो मुसीबतों का पहाड़ टूटा है ,उसको होश में ले आइये !बेचारी ! बच्ची ने ,न जाने, कितने सपने सजाये होगें ?बेटा भी, जब उसे फोन करता था ,उसके चेहरे पर मुस्कुराहट होती थी। आज देखो ! कैसा पड़ा है ? क्या उसने कभी सोचा होगा ? यह बीमारी उसे ले डूबेगी। कहते हुए जगतसिंह जी रो दिए।
गांववालों को भी उनसे हमदर्दी हुई। तभी एक बोला - सही तो कह रहे हैं ,शिखा की चाहत में ,वो तबियत बिगड़ जाने पर भी ,बारात लेकर आया ,वैसे उसकी इच्छा पूर्ण तो होनी ही चाहिए। सरपंच जी ने उसे घूरा और बोले -जाओ !तुम्हारे घरवाले तुम्हारी प्रतीक्षा में होंगे।
आप भी जाइये !और अपनी बेटी को होश में लाइए और हमारे साथ विदा कीजिये !रात्रि हो गयी तो हमें यहीं ठहरना होगा ,इसका संस्कार भी नहीं हो पायेगा ,अपने बेटे की तरफ देखते हुए जगतसिंह जी बोले।
उनकी यह बात सुनकर, सरपंच जी ऊपर से नीचे तक काँप गए और पत्नी को लेकर अंदर चले गए , तब वह अपनी पत्नी से बोले- तुम शिखा को होश में लाओ ! और जब यह होश में आ जाए, तो इससे कह देना -कि यह उन लोगों के साथ जाने से इनकार कर दे ! इन लोगों को यहां से, भेजने का बस अब यही हल मुझे नजर आ रहा है।
ठीक है, कहते हुए शिखा की मां ने, उसके मुंह पर पानी के छींटे मारे और उसे होश में लाने का प्रयास करने लगी। उसके हाथ -पैर मले उसकी हालत देखकर रोने लगी , मेरी बच्ची की क्या हालत हो गई है ?ऐसे में भी वह लोग, उसे छोड़कर जाना नहीं चाहते, वहां इसका कौन ध्यान रखेगा ? सोचकर रोने लगी। धीरे-धीरे शिखा को होश आ रहा था , उसकी आंखें बुझी-बुझी सी थीं , होश में आते ही ,उसे सम्पूर्ण बातें फिर से स्मरण हो आईं और वह फिर से रोने लगी और बोली-अब मेरा क्या होगा ?
किंतु उसकी मां को भी होश नहीं था, वह अपनी बच्ची को ठाकुर परिवार से बचाना चाहती थी, तब उसने शिखा को समझाया -बेटा ! यह रोने का समय नहीं है , जो होना था हो गया। अब तुझे हिम्मत करनी होगी, इस तरह कमजोर पड़ने से काम नहीं चलेगा। तू तो यह सोच ! यदि तेरा विवाह उससे पूर्ण हो जाता, तो क्या होता ? अब कम से कम हम यह तो कह सकते हैं -'कि विवाह पूर्ण ही नहीं हुआ। यदि यह परेशानी बाद में आती तो जीते जी' विधवा' बन जाती,सारी उम्र विधवा का चोला ओढ़ जीना पड़ता।'' जो करता है भगवान अच्छे के लिए ही करता है,' उसने भी तेरे लिए कुछ अच्छा ही ,सोचा ही होगा।'' हिम्मत कर मेरी बेटी हिम्मत कर ! कमजोर बनने से कुछ नहीं होगा।'' बेटी पर मां की बातों का थोड़ा असर हुआ उसने रोते हुए मां की तरफ देखा , उसे लगा जैसे उसकी मां उससे कुछ कहना चाहती है।
वह कुछ भी पूछ न सकी और ''मम्मी'' कहकर, अपनी मां के गले से लिपट गई।
क्या शिखा अपनी माँ की बातों का सार समझ पायेगी ?और वो ठाकुर परिवार के साथ जाने से इंकार कर देगी या नहीं ,आइये !आगे क्या होता है ?