यह सूचना दमयंती के पास भी पहुंच गई, कि अब उसका बेटा 'तेजस 'अब जिंदा नहीं रहा है। यह खबर सुनकर, अचानक से दमयंती सन्न रह गई किंतु कुछ देर पश्चात ही जैसे, उसने कुछ निर्णय लिया हो, उसने अपने पति को फोन किया और बोली - बहु को विदा कराकर ले आओ !
पत्नी की यह बात सुनकर, जगत सिंह अचंभित रह गए और बोले -यह तुम क्या कह रही हो ? इस तरह कैसे हो सकता है ? अभी तो विवाह भी पूरा नहीं हुआ था, उसने न ही मांग भरी है और न ही मंगलसूत्र पहनाया है।
हमारे यहां' मंगलसूत्र' का चलन नहीं है, क्या यह बात आप जानते नहीं हैं , दमयंती दृढ़ता से बोली -हमारे यहां फेरों को ही पूरी शादी मान लिया जाता है , मेरे बेटे के फेरे तो पूरे ही हुए हैं। उसकी इच्छा थी, कि यह लड़की हमारे घर की बहू बने , इस समय उसे, शिखा पर क्रोध भी था इसलिए क्रोध के कारण उसने शिखा का नाम नहीं लिया। उस लड़की के घर वालों से बात कीजिए और विदा कराकर ले आइये ! वरना मुझे वही आना होगा।
तुम कुछ भी मत करना, मैं बात करता हूं ,क्या करना है, यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया।
अच्छा, सरपंच जी !अब हम चलते हैं,इस' मृत देह' को ज्यादा देर तक तो नहीं रख सकते , बेटी को विदा कीजिए !
''जगत सिंह'' की बात सुनकर, किशोरी लाल जी आश्चर्यचकित होकर उनका चेहरा देखने लगे और बोले -मैं मानता हूं, कि हम सभी पर यह ब्रजपात हुआ है , किंतु अब बेटी को विदा कराने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। जिसके साथ उसे जाना था , वह तो अब रहा ही नहीं , क्या मृत देह के साथ, बेटी को विदा करवाएंगे ?
अब वह हमारे घर की बहू हो चुकी है, जिंदा था, तब भी वह हमारे घर ही जाती और अब नहीं है, तब भी उसके साथ ही जाएगी।
यह तो कोई बात नहीं हुई, अब हमारी बेटी, आपके घर क्यों जाएगी ?
क्योंकि वह अब हमारे घर की बहू बन चुकी है , बेटे ने बाकायदा उसके साथ फेरे लिए हैं।पंडित जी के सामने और अग्नि को साक्षी मानकर वचन भरवाएं गए हैं।
सरपंच जी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था ,तब वो बोले -आप लोगों ने हमें धोखे में रखा, कम से कम एक बार तो कहना चाहिए था कि बेटे को बुखार है या उसे 'कोरोना' हो गया है।
हमें भी कहां मालूम था ? हमने सोचा था मामूली सा बुखार है, ठीक हो जाएगा। हमें क्या मालूम था ? कि उसका यह विवाह उसकी जान लेकर जाएगा किंतु उसका प्यार, उसकी चाहत, उसकी आखिरी इच्छा आपकी बेटी शिखा है, उसे विदा करिए !
क्या कभी ऐसा हुआ है ? मृत्यु के साथ , बेटी को विदा किया जाएगा। मेरी बेटी, वहां किसके लिए जाएगी ? उसका वहां कौन है ?
जिससे आपकी बेटी का विवाह हुआ है , वहां पर उसका भरा -पूरा परिवार है। मेरे बेटे की आखिरी इच्छा है वो तो आपको पूर्ण करनी ही होगी। बाद की बाद में देखेंगे ! अभी तो वही कार्य पूर्ण होना है जो वह होकर रहेगा।
सरपंच जी,उनकी बातें सुनकर घबरा गए, यह क्या नई मुसीबत आन पड़ी है ? देखिए ! पहले आप मेरी बात ध्यान से सुनिये ! यह छुआछूत की बीमारी है, आप अपने बेटे को यहां से ले जाइए और अपना और परिवार का बचाव करिए ! कम से कम अन्य लोगों को तो यह बीमारी ना लगे।
हमारी हम देख लेंगे,आप तो बस बेटी को विदा कराने की तैयारी कीजिए।
मैं अभी आता हूं, कहते हुए सरपंच जी, घर के अंदर गए और पत्नी से बोले -वे लोग कह रहे हैं,' बेटी को विदा' कीजिए !
वह तो पहले से ही परेशान थी, बेटी का विवाह भी अभी पूरा नहीं हुआ और वह विधवा हो गई, लड़के वालों की मांग सुनकर झल्ला उठी और बोली -अरे ! काहे की विदाई ! किसके साथ विदा करें ? जिसके साथ उसे जाना था वह तो चला गया , कहते हुए रोने लगी।
रोने का समय नहीं है, तुम मुझे अपना निर्णय सुनाओ ! क्या बेटी को ऐसे विदा किया जा सकता है ?
बेटी के जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, अभी तो वह बेसुध है , उसकी जिंदगी का कितना बड़ा हादसा हुआ है ? वह भी तो परेशान है। अब आप उनसे कहिए ! वह अपने बेटे को ले जाएं ! और अपने बेटे का ठीक से ''अंतिम संस्कार'' करें !
बेटे को ले जाना ही नहीं चाहते हैं, कह रहे हैं - बेटे के साथ, बहू भी जाएगी।
अरे क्या बेतूकी बात है ? जब बेटा ही नहीं रहा, तो बहू कैसे जाएगी ? अब हमारी बेटी का उनसे कोई संबंध नहीं है।
तभी पीछे से एक आदमी की आवाज आई और बोला -कैसे संबंध नहीं है ? हमारे बेटे का उसके साथ विवाह हुआ है और जब विवाह हुआ था तो यह जिंदा था , दोनों ने मुड़कर देखा उनके पीछे बलवंत सिंह जी खड़े थे।
भाई साहब !आप स्वयं ही सोचिए ! कहीं बेटी को मुर्दे के साथ विदा किया जाता है। क्या इसकी मां,अब मेरी बेटी को बहू के रूप में स्वीकार कर पाएंगी ?
यह उन्हीं का संदेश है, वह चाहती हैं , जैसे बेटा, विवाह करने गया था और बहू को विदा कराके लाता इस तरीके से अब भी बहु को विदा करा कर ले आइये !
विवाह तो पूरा ही नहीं हुआ, न ही, लड़के ने मांग भरी है, न ही मंगलसूत्र पहनाया है।
हमारे यहां फेरों को ही पूर्ण विवाह मान लिया जाता है। रही बात, सिंदूर की, वह अभी भी भर सकता है।
यह क्या हो रहा है ? एक मुर्दा मेरी बेटी की मांग में सिंदूर भरेगा। आप लोगों का दिमाग फिर गया है। ऐसा कहीं नहीं होता है, आप लोग, अपने बेटे को लेकर जाइए, हम अपनी बेटी को विदा नहीं करेंगे।
सरपंच जी ! सोच लीजिए ! बहुत बुरा हो जाएगा, गांव वालों को इकट्ठा किया जाएगा।
जो भी होगा देखा जाएगा, शिखा की मां बोली -किंतु मेरी बेटी, किसी मुर्दे के साथ विदा नहीं होगी।
मुर्दा भी तो वह तुम लोगों के कारण ही बना, तुमने ही जिद की थी कि विवाह होना चाहिए।
इस बात को सुनते ही शिखा की मां के'' कान खड़े हो गए ;, और बोली-कहीं आप हमसे इसी बात का बदला तो नहीं ले रहे।
क्या शिखा की माँ का सोचना गलत है ? क्या वे लोग ,सच में ही शिखा को अपने घर की बहु मान बैठे हैं ?क्या ऐसा कहीं होता है ? क्या वे लोग ,शिखा ले जाने में सफल हो पाएंगे या फिर सरपंच जी कुछ और उपाय सोचेंगे। क्या किसी मृत शरीर के साथ ,लड़की विदा हुई है ?अनेक प्रश्न इस कहानी में मिलेंगे इसीलिए पढ़ते रहिये और आगे बढिये !