Mysterious nights [part 27]

दोपहर का समय है, दो  व्यक्ति छुपते- छुपाते खेतों से होते  हुए , आगे बढ़ रहे हैं । जैसे वे उस स्थान को पहले से जानते  हैं  किंतु ऐसा नहीं है , वह किसी के द्वारा बताए गए ,रास्ते का अनुसरण कर रहा है किन्तु साथ ही उसे यह भय भी है, उसे कहीं कोई देख न ले। उसके साथ उसका मित्र भी है जो इस स्थान पर किसी अजनबी के तोेर पर यहाँ पहले भी आ चुका है। अब लगता है, अब यह गांव उसके लिए अजनबी नहीं है क्योंकि वह जब पहले यहां आया था तो इन रास्तों से परिचित हो गया था। इसी बात का लाभ उठाते हुए, वह अपने मित्र के साथ निश्चित स्थान पर जाने के लिए तत्पर था।

 कुछ देर पश्चात ही, वह स्थान भी आ गया जहाँ उनकी मंजिल थी हालांकि राह में, उन्हें कई अजनबी मिले थे और उन्होंने पूछा भी था -कहां जा रहे हो ? कहां से आए हो ? किसके घर जाना है ?


किंतु उन्होंने ऐसे ही, गोल-मोल जवाब देकर उनसे अपना पीछा छुड़ाया। तेजस ने तो मुँह को कपड़े से ढांपा हुआ था कि कहीं  कोई उसे पहचान न ले, कि यह तो अपने सरपंच जी के होने वाले दामाद हैं। ये यहां क्या कर रहे हैं ? 

''ये इश्क़ ही ऐसा है ,जो न करा दे, वही कम है ,अपने इश्क़ की ख़ातिर तेजस को मुँह छुपाकर ,अपने इश्क़ से मिलने ,उसके गांव जाना पड़ रहा है। क्या करे ? इंतज़ार होता ही नहीं,छुप -छुपकर मिलने का मजा कुछ और ही होता है। जब तक घबराहट में दिल की धड़कनों के तार बुरी तरह कांपने न लग जाएँ। उस उलझन भरे संगीत का असर जीवनभर की यादगार बनकर रह जाता है।'' 

वे निश्चित स्थान पर पहुंच कर, आसपास के वातावरण का जायज़ा ले रहे थे,तब तेजस अपने मित्र से बोला -यह सब मत देख ! यह देख जिसे बुलाया है वह यहां उपस्थित है या नहीं। 

अभी तो कहीं भी नहीं दिख रही, यहीं आने के लिए कहा था ,भरी दोपहर में कोई आता -जाता भी नहीं।तब वह बोला - लो !यहां चारपाई भी पड़ी है ,इस पर बैठकर प्रतीक्षा कर लेते हैं ,प्रखर उसके साथ बैठते हुए कहता है। इस गांव के मेहमान आये हैं और इनके स्वागत में कोई व्यवस्था नहीं ,उसके पश्चात वह आसपास देखता है और उस कोठरी के अंदर जाता है। वहां एक मटके में पानी रखा हुआ था। तब दोनों पानी पीते हैं ,पानी पीते हुए, तेजस पूछता है -वो आएगी भी या हमें मूर्ख ही बना दिया। 

भाई !उसकी सहेली ने तो कहा था ,वो धोखा दे गयी तो, मैं क्या कर सकता हूँ ?

तूने उसकी सहेली को देखा है। 

हाँ ,वही तो तुम्हारा प्रेम -पत्र लेकर गयी थी, और जबाब भी वही लेकर आई थी ,तभी दीवार के पीछे से आते हुए परी बोली। 

दोनों ने पीछे मुड़कर देखा ,तब प्रखर बोला -यही तो परी है। 

तेजस उसे देखकर मुस्कुराते धीमे स्वर में बोला -ये तो चलकर आई है ,उड़ कहाँ रही है ?खूबसूरत तो है। 

भाई !तुम अपनी पर ध्यान दो !

वो तो कहीं नहीं दिख रही ,लगता है ,हमारा आना व्यर्थ ही गया। क्या वो नहीं आईं ?तेजस ने झिझकते हुए पूछा। 

हँसते हुए परी बोली -वो आना तो चाहती थी किन्तु जब हम आ रहे थे ,तभी उसकी माँ बोली -इतनी दोपहर में कहाँ जा रही है ? इसीलिए उसने मुझसे संदेश पहुंचाया है ,वो आ गए होंगे ,उनसे कहना -मैं मिलना तो चाहती थी किन्तु माँ से क्या कहती ?इसीलिए आ न सकी ,मुझे माफ कर दीजियेगा। 

परी की बात सुनकर तेजस थोड़ा उदास हो गया ,व्यर्थ में ही, इतनी मेहनत की ,किन्तु प्रखर उससे लड़ने लगा -तुम चाहती तो ,कोई भी बहाना बनाकर ,उन्हें यहाँ ला सकती थीं ,तुम्हारे कहने पर ही मैं भाई को यहाँ लाया। 

इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ?जब वो आई नहीं ,बच्ची तो नहीं है ,जो गोद में उठाकर ले आती। 

अच्छा !तो तुम यहाँ छुपी हो ,तेजस की आवाज सुनकर पेड़ के पीछे छिपी हुई खड़ी, शिखा डर गयी ,उसके दिल की धड़कने न जाने कौन सी ताल सुना रही थीं ?तेजस के मिलने की ख़ुशी या अचानक पकड़े जाने का ड़र !उसका चेहरा लाल पड़ गया। मुझसे मिलने भी आईं और छुप भी गयीं, क्या मिलना नहीं चाहती थीं ? या मुझसे खेल खेल रहीं थीं। देखो !मैंने तुम्हें ढूंढ़ लिया। 

नजरें नीची किये ,शिखा बोली -आपको कैसे पता चला ?मैं यहां हूँ। 

तुम्हारा ये दुपट्टा !जो लहरा -लहराकर मुझे निमंत्रण दे रहा था। तुम तो छुप गयीं किन्तु यह तुम्हारी चुगली कर गया।भोंहे हिलाते हुए बोला - अच्छा बताओ !क्या तुम मुझसे मिलना नहीं चाहती थीं ?पत्र में तो तुमने लिखा था ,मैं भी तुम्हारे लिए....... तभी एकदम से शिखा ने उसके होठों पर अपनी अंगुली रख दी और शरमाते हुए बोली -बस कीजिये !

अच्छा एक बात बताओ ! क्या तुम्हारी इच्छा मुझसे मिलने की नहीं हुई थी ? जब से मैंने तुम्हें देखा था , तुमसे मिलना चाहता था। तुम्हें मैं पसंद तो हूँ , उसकी तरफ देखते हुए तेजस ने पूछा। 

शिखा ने हाँ में गर्दन हिलाई, यदि मैं तुम्हें पसंद था, तो तुमने उस दिन सबके सामने क्यों नहीं कह दिया ? तुम तो उठकर अंदर भाग गयीं। 

ऐसी बात कोई अपने मुंह से कहता है, वह भी मम्मी -पापा के सामने। 

क्यों ?' प्यार किया तो डरना क्या ?' 

हमने प्यार कब किया ? हमारा तो रिश्ता तय हुआ है। 

रिश्ता तो तभी तय होता है, जब एक दूसरे को पसंद कर कर लेते हैं, क्या तुम्हें मैं पसंद नहीं हूँ ?

बार-बार एक ही बात ! पसंद हो, तभी तो, विवाह की बात आगे बढ़ी है।

 तब तुम मुझे परेशान क्यों रही थी ?

 अपने दुपट्टे को उंगली में लपेटे हुए , कभी पेड़ के तने को नाखूनों से खरोंचते हुए , नीचे नजर किए हुए शिखा बोली -मैंने आपको कब परेशान किया ?

अभी, थोड़ी देर पहले !

वह तो मेरी, सामने जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। 

 क्यों ? मैं भी तो इंसान ही हूं, इसमें साहस की आवश्यकता तो नहीं थी,बस प्यार होना चाहिए।  

आप नहीं जानते हैं , मैं कितनी मुश्किलों से, यहां तक आई हूं ? मम्मी से झूठ बोला था-परी के घर जा रही हूँ। 

हूं......  हमारी हिम्मत को देखो ! किसी दूसरे गांव में, उस गांव की लड़की से चोरी से मिलने आए हैं जो हमारी पत्नी बनने वाली है। कोई देख लेता तो क्या कहता ?

आप तो फिर भी लड़के हैं। 

हां भाभी ! यह बात आपने सही कही। यह लड़का है, इस बात का हमें आज ही पता चला। पीछे से प्रखर  की आवाज आई। जब प्रखर और परी वे दोनों लड़ रहे थे, तब उदास होते हुए , तेजस इधर-उधर देख रहा था। वे दोनों लड़ने में व्यस्त थे और तभी तेजस ने  पेड़ के पीछे एक हिलता हुआ दुपट्टा देखा जिसके कारण उसे लगा, जैसे वहां कोई छुपा हुआ खड़ा है और उन्हें लड़ते हुए वहीं छोड़कर, शिखा के पास आ गया। जब वह दोनों लड़ रहे थे, तब उन्होंने देखा कि तेजस वहां नहीं है। परी तो जानती थी, कि शिखा आई हुई है किंतु प्रखर नहीं जानता था इसलिए उसे चिंता सताने लगी कि  न जाने अचानक तेजस कहां गया ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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