Chay ki chuski

चाय की अब क्या कहें ?

चाय बन गयी है ,नशा !

चाय न मिले तो लगता ,

मिली है,आज हमें सजा !


थकावट है ,चाय ले आओ !

बिन चाय, और न सताओ !

नाश्ता! बिन चाय कैसे पूर्ण हो ?

सफ़र से थककर ,जब चूर हों ,

नहाकर थोड़ी चाय मिल जाये,

तन औ मन तरोताज़ा हो जाये। 

सर्दी में ,'ठंडी' का बहाना है। 

गर्मी में 'सिर दर्द मिटाना'  है। 

चाय की चाहत कहाँ तक ले आई ? 

मस्ती में ,चुस्की चाय की हो जाये भाई !

 पकौड़ो संग, चाय हो जाये। 

अदरक, इलायची की खुशबू मन में समाये।  

डॉक्टर ने बतलाया -चाय गैस बनाती है। 

नहीं...... यह जिव्ह्या का स्वाद बढ़ाती है।

दिनभर रखती, तरोताज़ा अंदाज़ दिखलाती है। 

चाय अदरक की हो या इलायची,सभी चल जाएँ !

बस एक कप चाय मिल जाये ,वरना........ 

'' चाय की चुस्की बिन''काम में मन न लग पाए  !  


अकेले हों या मित्रगण ! चाहत यही ,एक चाय की चुस्की मिल जाये। 

चाय -नाश्ते संग ,अपनों का साथ मिल जाये ,जीवन सफ़ल हो जाये।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post