चाय की अब क्या कहें ?
चाय बन गयी है ,नशा !
चाय न मिले तो लगता ,
मिली है,आज हमें सजा !
थकावट है ,चाय ले आओ !
बिन चाय, और न सताओ !
नाश्ता! बिन चाय कैसे पूर्ण हो ?
सफ़र से थककर ,जब चूर हों ,
नहाकर थोड़ी चाय मिल जाये,
तन औ मन तरोताज़ा हो जाये।
सर्दी में ,'ठंडी' का बहाना है।
गर्मी में 'सिर दर्द मिटाना' है।
चाय की चाहत कहाँ तक ले आई ?
मस्ती में ,चुस्की चाय की हो जाये भाई !
पकौड़ो संग, चाय हो जाये।
अदरक, इलायची की खुशबू मन में समाये।
डॉक्टर ने बतलाया -चाय गैस बनाती है।
नहीं...... यह जिव्ह्या का स्वाद बढ़ाती है।
दिनभर रखती, तरोताज़ा अंदाज़ दिखलाती है।
चाय अदरक की हो या इलायची,सभी चल जाएँ !
बस एक कप चाय मिल जाये ,वरना........
'' चाय की चुस्की बिन''काम में मन न लग पाए !
अकेले हों या मित्रगण ! चाहत यही ,एक चाय की चुस्की मिल जाये।
चाय -नाश्ते संग ,अपनों का साथ मिल जाये ,जीवन सफ़ल हो जाये।